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अंसार इमरान
अगर लोकसभा चुनाव के हिसाब से देखे तो बिहार, उत्तर प्रदेश के बाद सबसे महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है। अक्सर राजनीतिक हलकों में कहा जाता है कि जिसने बिहार और उत्तर प्रदेश को साध लिया वो केंद्र की सत्ता पर काबिज हो जायेगा।
मुसलमानों के लिहाज़ से भी देखे तो बिहार बहुत अहम है क्यूंकि यहां पर 17 फीसदी मुस्लिम आबादी के साथ राजनीतिक भागीदारी बाकि राज्यों के मुकाबले में बेहतर है। मुसलमानों का बिहार की राजनीती में हमेशा अच्छा खासा दखल रहा है। 1973 से 1975 तक अब्दुल गफूर साहब बिहार के मुस्लिम मुख्यमंत्री भी रहे है।
अगर मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार में भाजपा गठबंधन ने 40 सीटों में से 39 जीती थी। फ़िलहाल उस समय के भाजपा के सहयोगी रहे नितीश कुमार की पार्टी जदयू जो 16 सीटें जीती थी वो अपना पाला बदल चुकी है।
मुसलमानों के लिहाज़ से बात करें तो सीमांचल रीजन की सभी सीटों पर मुसलमानों का सीधा प्रभाव है जो नतीजों को बदलने की क्षमता रखते है। इसके अलावा सिवान, चम्पारण से ले कर दरभंगा तक के इलाके में मुसलमानों का हर लोकसभा सीट पर अच्छा वोट बैंक है जो नतीजों को प्रभावित करेगा।-
बिहार की राजनीती में मुसलमान लंबे समय से पिछले सीटों पर ही सवारी कर रहा है मगर फ्रंट पर आने का मौका नहीं मिला है। राजद, जदयू और कांग्रेस को अपने चुनावी समीकरणों को दरुस्त रखने के लिए मुसलमानों के एकतरफा वोट की जरूरत रहेगी।