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जाति आधारित जनगणना कराने के लिए भाजपा को अगले लोकसभा चुनाव में सत्ता से बेदख़ल करना जरूरी है - शिवानंद तिवारी
देश में जाति आधारित जनगणना कराने के लिए भाजपा को अगले लोकसभा चुनाव में सत्ता से बेदख़ल करना आवश्यक शर्त बन गया है. ग़ैर भाजपाई राज्यों द्वारा जाति आधारित गणना की घोषणा से प्रधानमंत्री जी विचलित हैं. दिल्ली में रावण के पुतला दहन के कार्यक्रम के बाद उन्होंने अपने भाषण में देश की जनता से अपील किया है कि वह जातिवाद और क्षेत्रवाद के आधार पर देश को विभाजित करने वाली ताक़तों को मटियामेट कर दें. पहली बार जातिगत आधार पर जनगणना को उन्होंने देश के लिए विभाजनकारी बता कर इस पर ऐसा कठोर हमला किया है. बिहार की जातीय जनगणना के बाद देश भर के ग़ैर भाजपाइ राज्यों ने अपने अपने राज्यों में इसकी शुरुआत करने की घोषणा कर दी है.
आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री जी की नज़रों में सांप्रदायिकता विभाजनकारी नहीं है. जबकि सांप्रदायिकता की राजनीति ने अतीत में हमारे देश को विभाजित किया है. आज भी मणिपुर उसी की आग में जल रहा है. वहाँ लगभग दो सौ लोग मारे जा चुके हैं. ढाई सौ के लगभग चर्च जलाये जा चुके हैं. लेकिन रावण दहन के मौक़े पर भी प्रधानमंत्री जी ने वहाँ के लोगों से शांति की अपील तक करने की ज़रूरत महसूस नहीं की.
हमारे देश में जाति व्यवस्था सनातन है. हिंदू समाज व्यवस्था में एक बड़ी आबादी को मनुष्य का दर्जा भी प्राप्त नहीं है. इस विकृति ने हमारे देश को गंभीर नुक़सान पहुँचाया है. इसको दूर करने के लिए ही हमारे संविधान के मूल में ही दलित और आदिवासी समाज के लोगों की गिनती करने और उनकी आबादी के अनुपात में ही प्रत्येक कोटि की सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है. संविधान में ही अन्य पिछड़ी जातियों की पहचान कर पिछड़ापन से उनको बाहर निकालने के लिये उपाय सुझाने के लिए आयोग बनाने सुझाव दिया गया था. सन् 53 में ही भारत सरकार ने इसी मक़सद से काका कालेलकर आयोग का गठन किया था. काका कालेलकर आयोग के रिपोर्ट को नहीं लागू कराना पिछड़े वर्गों के विरूद्ध साज़िश थी. जन्मना अपने को श्रेष्ठ और प्रतिभावान मानने वाले तबके ने आयोग की उस रिपोर्ट पर चरचा तक नहीं होने दी. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि अगली यानी हर दस वर्ष पर होने वाली सन् 61 की जनगणना जाति आधारित हो. काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को अगर मान लिया गया होता तो आज देश की तस्वीर अलग होती.
ऐसा नहीं है कि जाति आधारित जनगणना की माँग सिर्फ़ ग़ैर भाजपाई लोग ही कर रहे हैं. सन् 2010 में भाजपा के बड़े नेता गोपीनाथ मुंडे ने जाति आधारित जनगणना की माँग की थी. सन् 2018 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की थी कि 2021 की जनगणना में पिछड़ी जातियों का डेटा इकट्ठा किया जाएगा.
लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दबाव में भाजपा जाति आधारित जनगणना की माँग को क़बूल नहीं कर रही है. जाति आधारित जनगणना कराने का एक ही रास्ता है. वह है 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदख़ल करना.