पटना

उपेन्द्र कुशवाहा , लौट के बुद्धू घर को आए

मंत्री उपेंद्र कुशवाहा
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मंत्री उपेंद्र कुशवाहा
विधान सभा चुनाव से पहले जब आगाज यह है तो अंजाम क्या होगा यह देखने के लिए थोड़ा इंतजार तो करना ही पड़ेगा।

राजनीति भी गजब की चीज होती है। चढ़े तो चाखे सोम रस गिरे तो चकना चूर। आर एल एस पी सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा पर यह सटीक बैठती है। कभी बिहार में विरोधी दल के नेता रहे कुशवाहा विपक्षी दलों के रवैए से ही परेशान है।नीतीश की कृपा से जूनियर एमएलए होने के बावजूद विधान सभा में विपक्षी दल का नेता बनने के बाद कुशवाहा अपने को भावी सीएम मानने लगे थे।शायद यही वजह रही कि बिहार में नीतीश के तुरंत सीएम बनने के बाद ही जदयू छोड़ एनसीपी का दामन थामा था।

तत्कालीन महाराष्ट्र के गृह मंत्री उन्हें बिहार में स्थापित करने के लिए आर्थिक सहयोग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन कुशवाहा वहां भी नहीं टिके।फिर लौट के जदयू में आए। राज्य सभा पहुंचे। लेकिन फिर उनका मन नहीं लगा।जदयू के राजगीर सम्मेलन में नीतीश पर ही हमला बोला। फिर बाहर का रास्ता देखना पड़ा।अलग पार्टी बनाई 2014 के लोक सभा चुनाव में सौ फीसदी अंक लेकर केंद्र में मंत्री बने।

बिहार में 4 एमएलए भी। लेकिन फिर कहा वे रुकने वाले। 5 साल पूरा होने के पहले ही एनडीए को छोड़ा।फिर तेजस्वी के साथ आए। कभी गांधी मैदान में नागमणि के मुंह से बिहार का अगला सीएम बनने का सपना देखने वाले कुशवाहा आज चाचा नीतीश और भतीजा तेजस्वी के हाथों बुरी तरह पिटकर बहन जी की गोद में गिर गए है।बिहार की लव कुश राजनीति में यह पहले से तय है कि जब तक नीतीश है कुश मतदाता कहीं भला क्यों जाए। शायद अब तक इसे समझ नहीं पा रहे है।

भला तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने के लिए कोइरी जाति के मतदाता नीतीश को छोड़ तेजस्वी को वोट क्यों करे।यही वजह रही कि लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पिटने के बाद तेजस्वी ने कुशवाहा को जीरो पर आउट कर दिया है। पिछले एक दशक के बाद पहली बार कुशवाहा बैंक फुट पर है।जिस बसपा से उन्होंने समझौता किया है उसका जनाधार मध्य बिहार के कुछ इलाकों में रहा है।लेकिन उसके साथ मिलकर कुशवाहा बिहार की सत्ता की कौन कहे मुख्य विपक्ष भी नहीं बन सकते।

ऐसे में फिल हाल कुशवाहा की यह पारी भी संकट में दिख रही। एनडीए छोड़ने के वक्त कुशवाहा ने सपनों में भी नहीं सोचा होगा कि वे अपने कार्यकर्ताओं की कौन कहे अपने लिए एक अदद सीट का भी जुगाड नहीं कर सकते। शायद यही कारण कि उनको सीएम बनाने वाले नागमणि अब उनके लिए नाग और तेजस्वी के लिए मणि बन गए है तो उनके दाए बाये रहने वाले प्रदेश अध्यक्ष भू देव चौधरी और महासचिव माधव आंनद ने भी उनका दामन छोड़ दिया है। विधान सभा चुनाव से पहले जब आगाज यह है तो अंजाम क्या होगा यह देखने के लिए थोड़ा इंतजार तो करना ही पड़ेगा।

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