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किशनगंज के 37 स्कूलों में सरकारी आदेश का उल्लंघन, रविवार की जगह शुक्रवार को हो रही छुट्टी
पटना/किशनगंज. झारखंड में मुस्लिमों की बड़ी आबादी वाले जिलों के 100 से अधिक सरकारी स्कूलों में रविवार की जगह शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश की खबरें हाल में ही सामने आई थीं. अब झारखंड की तरह बिहार के 37 स्कूलों में रविवार की जगह जुमे यानी शुक्रवार को अवकाश रखे जाने की बात सामने आई है. इन स्कूलों में बच्चे रविवार को पढ़ने आते हैं और शुक्रवार को छुट्टी मनाते हैं. बिहार के किशनगंज जिले में के 19 स्कूलों का मामला सुर्खियों में बना हुआ है जहां शुक्रवार को छुट्टी दी जाती है.
बिहार के किशनगंज जिले में मुस्लिम समुदाय के लोग अधिक हैं; इसलिए यहां शिक्षा के मंदिर को भी धर्म के आधार पर चलाया जा रहा है. यहां नियम सरकार नहीं बल्कि आबादी नियमों को बना रही है; और यह खेल बहुत लंबे समय से चला आ रहा है. सबसे खास बात यह है कि शिक्षा विभाग को इसकी भनक तक नहीं है. किशनगंज मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. लगभग 80 % मुस्लिम आबादी है और यहां आबादी का दबाव सरकारी नियमों व संविधान पर भारी पड़ रहा है. जहां पूरे हिंदुस्तान में स्कूल रविवार को बंद होते है. वहीं किशनगंज में नियम सबसे अलग हैं. यहां के कई स्कूलों में जुमे की छुट्टी होती है.
बता दें कि यह केवल मौखिक रूप पर नहीं चल रहा है बल्कि सरकारी दस्तावेजों में इसका जिक्र है. इन दस्तावेजो में साफ-साफ लिखा गया है कि किस-किस स्कूल में जुमे का अवकाश होता है. ये अपने आप में चौंकाने वाला दस्तावेज है कि पूरे किशनगंज जिले में जुमे के दिन स्कूलों को बंद कर रविवार को खोला जाता है. सबसे खास यह कि स्कूल के साथ उर्दू शब्द लग गया तो वह मुस्लिम स्कूल हो गया और अवकाश जुमे का हो गया. सवाल उठने लगे हैं कि अगर शिक्षा का आधार ही धर्म के आधार पर हो गया तो हम समाज में धर्म की समानता को कैसे बनाए रख पाएंगे ?
बजरंगदल के सदस्य गणेश झा ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि पूरे भारत में विद्यालय सरकारी हो या निजी; सभी रविवार को बंद होते हैं. लेकिन, किशनगंज मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है जहां की लगभग 80 % मुस्लिम आबादी है. इस कारण यहां पर स्कूल रविवार की जगह जुमे को बंद किए जा रहे हैं. रविवार की जगह शुक्रवार को छुट्टी का आदेश केवल इसलिए है क्योंकि यहां मुस्लिम अधिक है.
शिक्षा विभाग के अधिकारी सुभाष कुमार गुप्ता किशनगंज के डीईओ हैं. इनका कहना है कि कोई आदेश नहीं मिला है. ऐसा लंबे समय से चलता आ रहा है. उनको खुद इस बात की जानकारी नहीं है कि यह सब हो कब से रहा है. किशनगंज डीईओ ने कहा कि पहले यह पूर्णिया का जिला का अंग हुआ करता था; इसलिए पूर्णिया सेल से संपर्क करने का प्रयास किया जा रहा है. उनके साथ कोई पत्राचार हुआ हो जिसके आधार पर शुरुआत हुई हो.
बहरहाल, सवाल यही है कि जिले में रविवार की जगह जुमे की छुट्टी हो रही और शिक्षा अधिकारी को कुछ पता ही नहीं. स्कूलों को बंद करने का कोई सरकारी आदेश, अधिसूचना या दस्तावेज किसी के पास मौजूद नहीं है; पर छुट्टी जुमे की हो रही है. आंकड़ों की मानें तो जिले में 37 सरकारी स्कूलों को रविवार की जगह शुक्रवार को बंद किया जाता है.
आंकड़ों में चौकाने वाला एक और तथ्य निकल कर सामने आया है.आश्चर्य की बात है कि यह कोई निजी स्कूल या मदरसा नहीं है बल्कि यह साधारण सरकारी स्कूल है और सरकार के पैसों से चलते हैं. इन स्कूलों में उर्दू की भी पढ़ाई होती है, लेकिन इनमें पढ़ने वाले बच्चे केवल मुस्लिम समुदाय के नहीं है बल्कि इन स्कूलों में दूसरे धर्म के बच्चे भी पढ़ते हैं. मगर अब आबादी के अनुसार यहां धर्म के आधार पर नियम तय किए जा रहे हैं.
किशनगंज में धर्म; शिक्षा के मंदिर पर इस कदर हावी है कि कुछ समय पहले यहां के एक उर्दू विद्यालय, जिसमें उर्दू केवल विषय के रूप पढ़ाई जाती है. इसे मुस्लिम स्कूल घोषित कर दिया गया है. इस विद्यालय में एक प्रिंसिपल की पोस्टिंग के बाद उनकी जॉइनिंग पर जमकर हंगामा मचा था. स्कूल में बतौर प्रिंसिपल जॉइनिंग के विरोध में यहां के स्थानीय लोग, स्थानीय विधायक और मेयर सहित तमाम नेता उतर आए थे. उनका कहना था कि उर्दू स्कूल में हिंदू प्रिंसिपल की बहाली नहीं होनी चाहिए. मगर यह स्कूल सरकारी विद्यालय है.
बहरहाल, सवाल यह है कि जिस तरह से आबादी के हिसाब से शिक्षण संस्थानों के नियम और कानून बदले जा रहे हैं, व्यवस्थाओं को बदला जा रहा है, वो दिन दूर नहीं जब संविधान में भी बदलाव देखने को मिल सकता है. यह कहना गलत नहीं होगा.
जिला शिक्षा पदाधिकारी का कहना है कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. जिसे अब तक बदला नहीं गया. वो इन दस्तावेजों को तलाश रहे हैं. अब जब यह मामला सामने आया है तो इस बात की जानकारी ली जाएगी कि स्कूलों को बंद करने का आदेश पहले कब दिया गया, किस आधार पर दिया गया.
हालांकि, उन्होंने ये बात जरूर कही कि ये स्कूलों को शुक्रवार को बंद करने का कोई अधिकारिक दस्तावेज उनके पास नहीं है. पर अब सवाल आता है कि क्या धर्म के आधार पर नियम तय होंगे. व्यवस्था धर्म के आधार पर चलेगी. नियम सरकार के चलेंगे या मन मर्जी से चलेंगे. अगर बचपन की शिक्षा ही धर्म के नियम पर दी जाएगी तो संविधान में समानता की बात तो खत्म ही हो जाती है.
Source : News18