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जब प्रधानमंत्री मुरार जी देसाई को जयप्रकाश जी से मिलने आना पड़ा था पटना आना
शिवानंद तिवारी पूर्व राज्यसभा सांसद
जब प्रधानमंत्री मुरार जी देसाई को जयप्रकाश जी से मिलने पटना आना पड़ा था.
बात 1977 की है. दिल्ली और पटना दोनो जगह जनता पार्टी की सरकार बन गई थी. उन दिनों हम लोहिया विचार मंच के साथ जुड़े हुए थे. किशन पटनायक हमारे नेता थे. तय हुआ कि पटना से हम लोग एक मासिक पत्रिका निकालेंगे. किशनजी उसके संपादक होंगे और पटना को वे अपना मुख्यालय बनाएंगे. पत्रिका के प्रकाशन में सहयोग देने के लिए अशोक सक्सेरिया जी भी कोलकाता छोड़ कर पटना आ गये. पूर्वी लोहानीपुर में पत्रिका का कार्यालय बनाया गया. कंकड़बाग के पिपुल्स कोआपरेटिव कॉलोनी में दो कमरे का एक मकान लिया गया. किशन जी और अशोक जी का वही आवास बना.
तय हुआ कि सामयिक वार्ता के अंक की शुरूआत जय प्रकाश जी के इंटरव्यू से की जाए. इंटरव्यू किशन जी को लेना था. उनके साथ अशोक सेक्सरिया और मैं भी था. अन्य सवालों के अलावा एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी था कि-क्या सरकारें आपसे सलाह मशविरा करती हैं ! उलटकर जयप्रकाश जी का जवाब था कि मुझको कौन पूछता है.
सामयिक वार्ता का वह अंक प्रेस से कंपोज हो कर कंकड़बाग वाले घर में आ गया था. उन दिनों मुझको भी प्रूफ़ देखने का शौक़ लगा था. उसी बीच दो पत्रकार वहाँ मिलने चले आए. मैं उन लोगों के लिए चाय पानी का इंतज़ाम करने के लिए अंदर गया. तब तक दोनों में से एक की नज़र जेपी वाले इंटरव्यू पर चली गई. ‘मुझको कौन पूछता है!’ उन्होंने अपने अंग्रेज़ी अख़बार में इसको बड़ी खबर के रूप में छाप दिया. उस खबर को एजेंसियों ने पकड़ लिया.
मुझको कौन पूछता है-जयप्रकाश. देश भर के अख़बारों में यह खबर छप गई. जेपी तो जनता पार्टी की सरकारों के नायक थे. मुरार जी भाई को उन्होंने ही शपथ ग्रहण करवाया था. स्वभाविक है कि जेपी के उस बयान से सत्ता में हड़कंप मच गया. सफ़ाई देने और अपना आदर प्रदर्शित करने के लिए प्रधानमंत्री मुरार जी भाई पटना आये. महिला चर्खा समिति में जाकर जयप्रकाश जी से मिले. जयप्रकाश जी के व्यक्तित्व का वह नैतिक बल था जिसकी वजह से प्रधानमंत्री को पटना आना पड़ा था.