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बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तारूढ़ गठबंधन में कोई भी ,मुस्लिम चेहरा चुनाव नहीं जीत पाया है. बीजेपी ने तो किसी मुस्लिम को टिकिट ही नहीं दिया था जबकि जदयू ने की मुस्लिम चेहरों पर दांव लगाया था. लेकिन कोई भी चेहरा कोई चुनाव नहीं जीत पाया है.
बिहार प्रदेश में 18 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या होने के बाबजूद प्रदेश सरकार में कोई नुमाइन्दगी नहीं मिली है. आपको बता दें कि देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी 2017 में जब बीजेपी की सरकार बनी तब भी यही समस्या उत्पन्न हो गई थी. तब यूपी सरकार ने एक मुस्लिम चेहरे को विधान परिषद का सदस्य बनाया था. तब उनको राज्य में मंत्री बनाया गया है.
अभी बिहार सरकार को राज्य विधान पार्षद में 12 सदस्यों का मनोनयन करना है जिसका मनोनयन मुख्यमंत्री के इशारे पर राज्यपाल करता है. इन बारह सदस्यों में अब बीजेपी के सात सदस्य मनोनीत होने की उम्मीद है जबकि पांच सदस्य जदयू के खाते से होंगे. जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की मौत से खाली हुई राज्यसभा की सीट पर बीजेपी का उम्मीदवार होगा. हालांकि जदयू ने बीजेपी से साफ़ साफ़ शब्दों में कह दिया है कि उनका समर्थन लोजपा उम्मीदवार का नहीं करेगा.
बिहार चुनाव में इस बार नीतीश कुमार की सेकुलर छवि पूरी तरह नकार दी गई. मुस्लिम मतदाताओं ने राजद ओए ओवेसी का साथ दिया. जो मुस्लिम राजद को नहीं पचा पा रहे थे उन्होंने ओवेसी की पार्टी को वोट कर दिया. लिहाजा नीतीश का बीजेपी के साथ ने उनकी छवि को अंतिम समय में धोखा दे दिया.
हालाँकि चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में नीतीश कुमार ने एनआरसी और एनपीआर के नाम मुस्लिमों को देश से निकालने पर कहा कि मुसलमानों को भयभीत होने की जरूरत नहीं है किसी भी मुस्लिम को देश से निकाला नहीं जाएगा उनके रहते हुए किसी भी मुसलमान को घबराने की जरूरत नहीं है.
बता दें कि प्रदेश में जल्द ही किसी मुस्लिम चेहरे को किसी सदन का सदस्य मनोनीत करके मंत्रीमंडल में जगह दे दी जायेगी. जिससे मुस्लिम विरोधी होने का तमगा हटना मुश्किल होगा लेकिन सरकार में मुसलमानों को हिस्सेदारी जरुर मिल जायेगी.