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क्या अक्षय कुमार के इन दस सवालों का जबाब दे पायेंगे पीएम मोदी?
साथियों, गांधीजी के नेतृत्व में किसानों के चंपारण सत्याग्रह के 104 साल बीत जाने के बाद भी भारत के किसानों को खेती - किसानी के सवाल पर आंदोलन करना पड़ रहा है। तब और अब में फर्क सिर्फ इतना आया है कि तब अंग्रेज शासन कर रहे थे और अब भारतीय। उस समय नील की खेती और उसके दाम को ब्रिटिश कंपनियां नियंत्रित कर रही थी । अब दुबारा से खेती को कंपनियों को देनी की साजिश है ।
तीनों काले कानून के विरोध में और एम. एस. पी के गारंटी के कानून के लिए देशभर के किसान पिछले आठ महीनों से दिल्ली के बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के सामूहिक नेतृत्व में आंदोलित हैं , लेकिन सरकार है कि उसके कानों में जूं तक नहीं रेंग रही।लोगों द्वारा चुनी गयी सरकार का ऐसा रवैया लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं।
ऐसे दौर में हम सब लोगों का कर्तव्य है कि किसान के इस जीवन- मरण प्रश्न को देश भर में और नीचे तक जोर - शोर से अहिंसक सत्याग्रह के माध्यम से ले जाया जाए। जनजागरण के लिए सत्याग्रह के तौर पर हम साथियों ने उसी चंपारण से पद यात्रा करने का निर्णय किया है जहाँ गांधी जी ने किसानों के लिए 1917 में सत्याग्रह किया था।
यह यात्रा किसानों के साथ -साथ समाज के उन तबकों को भी जोड़ेगी जो व्यवस्था में असहाय होकर पड़े हैं।
हमारी यात्रा खेती- किसानी के साथ- साथ आम आदमी के स्वास्थ्य यानी दवाई, छात्रों के भविष्य यानी पढ़ाई, नौजवानों के रोजगार यानी कमाई और परिवारों के खर्चे यानी महंगाई को मुख्य मुद्दा बनायेगी।
साथियों आपने देखा है कि पिछले एक साल में कोरोना और लॉकडाउन के समय सरकार की लापरवाही और दवाई की अनुपलब्धता और प्रायोगिक चिकित्सा ने लाखों जिंदगियां हमसे छीन ली हैं। पूरा सरकारी तंत्र नकारा साबित हुआ है।
ऐसा ही छात्रों के पढ़ाई और नौजवानों के रोजगार के विषय में भी सरकारी अमला पूरे तरीके से फेल साबित हुआ है। सरकार के पास नौजवानों के लिए ना तो दिशा है और ना ही कोई ठोस प्रस्ताव । बेरोजगारी हटाने के नाम पर लंबा इंतजार और सरकारी लाठियां ही नौजवानों के हिस्से आ रहीं हैं ।
महंगाई पर तो सरकार ने लोगों की मेहनत से की गई कमाई को लूटने का मानो पूरा इंतजाम कर रखा है। पहले नोटबंदी, उसके बाद जीएसटी मानो कम थे की अब दैनिक जीवन भी आसमान छूती महंगाई से त्रस्त है। गैस के दाम, बिजली बिल, डीजल और पेट्रोल के साथ-साथ दैनिक उपभोग की चीजों में टैक्स की इतनी वृद्धि कर दी गई है कि अमीरी और गरीबी की खाई बढ़ती चली जा रही। गरीब मेहनत करके पिस रहा है और किसी के चंद पूँजीपति मित्रों की सम्पति दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। व्यवस्था में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है , प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबाट वाली लूट मची हुई है। कुलमिलाकर हालत यह है कि जनता त्रस्त, साहेब मस्त।
ऐसे दौर में नव निर्माण किसान संगठन ने निर्णय लिया है कि हम देश के लोगों को जगाने और एकजुट जनमत के सवाल को प्रधानमंत्री जी से पूछने के लिए उनके संसदीय क्षेत्र बनारस तक चंपारण से शुरू हुई पदयात्रा लेकर जायेंगे। यह पदयात्रा देश के सवालों के जवाब के लिए गांधी के बताये रास्ते "लोकनीति सत्याग्रह" के माध्यम से चंपारण (बिहार) से प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (उत्तर प्रदेश) तक 324 किलोमीटर की दूरी पदयात्रा की माध्यम से जन जागरण करते हुए पूरा करेगी । यात्रा गांधी- शास्त्री जी के जन्मदिवस दो अक्टूबर से शुरु कर के लगभग अठारह दिनों में बनारस उन्नीस अक्टूबर को पहुंचेगी।
प्रधानमंत्री सवाल यात्रा के दस सवाल-
1.लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक निर्णय क्यों? 500 से ज्यादा मौतों के बाद भी किसानों से मिलने के लिए आपकी संवेदना क्यों नहीं जगी?
2. तीनों काले कानून कब वापस होंगे?
3. एम. एस. पी. पर कानूनी गारंटी क्यों नहीं?
4. नौजवानों के रोजगार पर फैसला कब?
5.महिलाओं और परिवार को महंगाई से राहत क्यों नहीं?
6.करोना से दिखाई दिए विफल स्वास्थ्य सिस्टम की जिम्मेदारी किसकी?
7.पढ़ाई, दवाई, कमाई, महंगाई, उचित मूल्य जैसे जरुरी सवाल सत्ता में आने के इतने साल बाद भी आपके एजेंडे में क्यों नहीं?
8.मजदूरों के पलायन और बढ़ती अमीरी- गरीबी असमानता का जिम्मेदार कौन?
9. कॉर्पोरेट और विदेशी कंपनियों के हाथ की कठपुतली सरकार कब तक बनी रहेगी?
10.प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंन लूट की छूट कब तक?
इन 10 सवालों को लेकर हम यह "प्रधानमंत्री से सवाल पदयात्रा" शुरू करने जा रहे हैं आपका जो भी सुझाव यात्रा के कार्यक्रम या सवालों और स्वरुप लेकर होगा वो हमें जरूर अवगत कराएं यह शुरुआती संवाद पत्र है विस्तृत और अंतिम पत्र आपके सुझावों के बाद कुछ दिनों में जारी करेंगे।