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पिछले कुछ दिनों से एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें एक ड्राइवर बता रहा है कि कैसे उन्होंने बॉडीगार्ड को बचाने की कोशिश की थी जब IAS कृष्णैया का मर्डर हुआ था।
ड्राइवर ने बताया कि वह IAS कृष्णैया को उनके ऑफिस से लेकर घर तक ले जा रहा था। रास्ते में, उनकी कार के सामने से एक स्कूटर आगे बढ़ा और उनकी कार को रोक दिया।
ड्राइवर ने बताया कि स्कूटर पर से दो लोग उतरे, जिनमें से एक ने उनकी कार के बैक सीट पर बैठा और दूसरा उनके सामने खड़ा हो गया।फिर, जब उन्होंने अपनी कार को मोड़ा तो वह देखा कि एक आदमी खड़ा है जो अपने हाथों में एक बंदूक लिए हुए हैं।
ड्राइवर ने कहा कि वह उस आदमी से मिलने के लिए कार से उतरा, लेकिन जैसे ही वह कार से उतरा, बंदूकधारी आदमी ने उस पर हमला कर दिया।5 दिसंबर 1994 में हुई वारदात को याद करते हुए दीपक कुमार बताते हैं, "शायद मुझे उस दिन साहेब की बात नहीं माननी चाहिए थी." उन्होंने कहा, "हम 1994 में एक बैठक के बाद हाजीपुर से वापस आ रहे थे. तभी भीड़ ने हम पर हमला किया. यह जानना मुश्किल है कि इसमें कौन-कौन थे.
भीड़ ने सबसे पहले एम्बेसडर कार से कृष्णैया सर के बॉडीगार्ड को बाहर खींच लिया. मैंने कार नहीं रोकी और भीड़ से आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन सर ने मुझे कार रोकने के लिए कहा, क्योंकि वह अपने बॉडीगार्ड को बचाना चाहते थे, जो पीछे छूट गए थे."ड्राइवर ने कहा कि वह बॉडीगार्ड को बचाने की कोशिश की, परन्तु उसकी मदद करने वाला कोई नहीं था।
फिर बंदूकधारी ने बॉडीगार्ड को गोली मार दी और फिर उसने IAS कृष्णैया को भी गोली मार दी।इस वीडियो से पता चलता है कि बॉडीगार्ड को बचाने की कोशिश करने वाले ड्राइवर के हौसले को सलाम है। हमें सभी को यह समझना चाहिए कि हमें हमेशा सही कर्म करना चाहिए, ताकि हम समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायता कर सकें।आनंद मोहन की पार्टी के एक अन्य गैंगस्टर-राजनीतिज्ञ छोटन शुक्ला के शव के साथ प्रदर्शन कर रही भीड़ ने मुजफ्फरपुर शहर के बाहरी इलाके के एक गांव में 5 दिसंबर 1994 की शाम को आईएएस अधिकारी पर हमला किया था. छोटन शुक्ला की घटना के एक दिन पहले हत्या कर दी गई थी.5 दिसंबर को भीड़ के हमले में ही कृष्णैया की मौत हो गई थी.
दीपक कुमार ने कोर्ट में गवाही दी थी. परिणामस्वरूप आनंद मोहन सिंह को दोषी ठहराया गया था. हालांकि,आनंद मोहन सिंह को अब रिहा किया जा रहा है. इसके लिए बिहार सरकार ने जेल मैनुअल में कुछ बदलाव किए हैं. आलोचकों का कहना है कि यह उनके समुदाय के मतदाताओं को लुभाने का एक प्रयास है।