बिहार

मलिन बस्ती की महिलाओं ने बनाई बांस की राखियां पांच देशों में पहुंची

सुजीत गुप्ता
16 Aug 2021 3:53 PM IST
मलिन बस्ती की महिलाओं ने बनाई बांस की राखियां पांच देशों में पहुंची
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रंग ला रही है चंद्रपुर की मीनाक्षी की कोशिश...

आप माने या न माने झुग्गी में दस बाई तेरह के किराए के झोपड़े में रहनेवाली बांस कारीगर की बांबू राखिया और अन्य कुछ कलाकृतियां दुनिया के पांच देशों में पहुंची है। बीते वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सराहना पा चुकी बांबू राखी इस वर्ष सीधे इंग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड, फ्रांस, नेदर्लांड और स्वीडन पहुंची है। हैरत की बात है कि दो वर्ष पूर्व इसी गरीब बांस कारीगर महिला को इजरायल के जेरुसलेम की एक बड़ी आर्ट स्कूल में वर्कशॉप लेने का निमंत्रण भी मिला था, पर आर्थिक कारणवश वह नहीं पहुंच पाई थी।

इस वर्ष उनकी राखियों ने सीधे पांच देशों की यात्रा कर ली है। भारत में बांबू राखी को लोकप्रियता दिलाने के साथ ही इस तरह से दुनिया भर में इन राखियों को पहुंचनेवाली यह कारीगर देश की पहली महिला है। मीनाक्षी मुकेश वालके ऐसा इनका नाम है।

मीनाक्षी मुकेश वालके महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल और नक्सल प्रभावित चंद्रपुर के बंगाली कॅम्प झोपडपट्टी में रहती है। वे बांबू डिजाइनर और महिला सशक्तीकरण कार्यकर्ता है। बांस क्षेत्र में उनके अद्वितीय सेवा कार्य की सराहना करते हुए इसी वर्ष कनाडा की इंडो कॅनडीयन आर्ट्स अँड कल्चर इनिशिएटिव संस्था ने महिला दिवस पर वुमन हीरो पुरस्कार से सम्मानित भी किया था।


लॉक डाउन की भीषण मार सहने के बाद इस वर्ष रक्षा बंधन पर मीनाक्षी और उनकी साथी महिलाओं ने बड़े साहस से काम शुरू किया। द बांबू लेडी ऑफ महाराष्ट्र के नाम से मशहूर मीनाक्षी वालके ने 2018 में केवल 50 रुपयों में सामाजिक गृह उद्योग अभिसार इनोवेटिव की स्थापना की थी। उसी समय उन्होंने पहली बार बांबू की राखियां भी बनाई थी। अब राखी और अन्य कलात्मक वस्तुएं सात समुंदर पार पहुंची है।

स्विट्जरलैंड की सुनीता कौर ने मीनाक्षी की बांबू राखियों के साथ ही बांस से बना ख़ास भारत का तिरंगा भी वहां बिक्री हेतु मंगाए है। स्वीडन के सचिन जोंनालवार समेत लंदन की मीनाक्षी खोडके ने भी अपने ग्लोबल बाप्पा शो रूम के लिए राखी तथा बांबू तिरंगा व अन्य की खरीद की है। पूर्णतया इको फ्रेंडली ऐसी बांबू राखियों में प्लास्टिक का तनिक भी अंश न होना, यह मीनाक्षी वालके की विशेषता है और राखियों को सजाने वे खादी धागे के साथ तुलसी मणी एवम् रुद्राक्ष का प्रयोग करती है।

मीनाक्षी इस संदर्भ में बताती है कि अपनी पावन संस्कृति का शुद्ध एहसास इस भावनिक संस्कार में महसूस होना चाहिए। प्रकृति को वंदन करते हुए आध्यात्मिक अनुभूती मिलनी चाहिए, ऐसा हमारा प्रयास रहता है. स्वदेशी, संस्कृती और पर्यावरण संदेश का प्रेरक संयोग करने की कोशिश इससे हम कर रहे है, ऐसा मीनाक्षी ने बताया. बतौर मीनाक्षी, उनका काम ही मुख्य रूप से प्लास्टिक का प्रयोग न्यूनतम हो इस दिशा में चलता है। वसुंधरा का सौदर्य अबाधित रहे, इस हेतु वे समर्पित हैं। इस लिए उनका हर काम, कलाकृति शुद्ध स्वरूप में होती है.

ज्ञातव्य हो, लॉक डाउन में मीनाक्षी और सहयोगियों का बड़ा नुकसान हुआ। कुछ कारीगरों पर किराणा किट लेने की नौबत आई। ऐसे संकट में कोई भी साथ में खड़ा नहीं रहा। डेढ़ वर्ष से काम ठप है। इस बिकट प्रसंग में अब राखी के बंधन ने आर्थिक अड़चनों से मुक्ति दिलाने में बड़ा साथ दिया है, ऐसी भावुक प्रतिक्रिया भी मीनाक्षी ने व्यक्त की। किसी भी प्रकार की परम्परा या विरासत नहीं, समर्थन या मार्गदर्शन नहीं, बेहद गरीबी में मीनाक्षी ने अभिसार इनोव्हेटिव्ज यह सामाजिक उद्यम शुरू किया। झोपडपट्टी की महिला व लड़कियों को मुफ्त प्रशिक्षण देकर रोजगार देते हुए मीनाक्षी का काम बढता जा रहा है। यहां बता दे, बीते वर्ष मीनाक्षी की राखी महाराष्ट्र के तत्कालीन वित्त एवं वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी थी!

मीनाक्षी ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने पचास हजार राखियों का लक्ष्य रखा था। विदेशों से मांग बढ़ने के बाद अब स्थानीय स्तर से भी पूछ परख बरबस ही बढ़ गई । लॉक डाउन से मीनाक्षी व उनकी सहयोगी महिलाओं पर भुखमरी ही नहीं, कर्ज की नौबत अाई है। ऐसे में अब राखी ने उन्हें नव संजीवनी देकर उम्मीदें काफी बढ़ा दी है.

भाजपा के सुधीर मुनगंटीवार महाराष्ट्र के वनमंत्री थे तब बल्लारपुर में स्टेडियम का उद्घाटन अमीर खान के हाथों हुआ था। इस बीच सैनिक विद्यालय में अमीर खान के अल्पाहार की व्यवस्था की थी। उस समय मीनाक्षी के बांबू राखी का लोकार्पण भी नियोजित था परंतु समयाभाव में वह टल गया था. देर से ही सही उसके बाद अमीर खान के ही दंगल फिल्म की अभिनेत्री मिनू प्रजापती ने मीनाक्षी के बनाए बांबू गहनों की खरीदी कर प्रशंसा की थी। मीनाक्षी यह याद बड़े ही उत्साह से बताती है।

मीनाक्षी के मुताबिक इको फ्रेंडली फ्रेंडशिप बैंड वैसे उपलब्ध या प्रचलित नहीं था। मुख्य रूप से धातू, प्लास्टिक के ही स्वरूप में वह अधिकांश उपलब्ध है। मीनाक्षी ने इसी वर्ष जून माह में बांबू के फ्रेंडशिप बैंड बनाने का आविष्कार किया। इसके माध्यम से भी स्वदेशी, पर्यावरण से मित्रता ऐसा संदेश दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि आज तक बांबू के फ्रेंडशिप बैंड उपलब्ध व लोकप्रिय नहीं थे।


हेमलता म्हस्के

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