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....क्या सच है जिसको छिपा रही है उद्धव सरकार, जो आवाज उठाने पर कंगना, अर्णब और स्वामी से इतनी खफा क्यों?
- सुशांत की मौत की जांच के लिए आवाज उठाने पर कंगना, अर्णब और स्वामी से इतना खफा क्यों है उद्धव सरकार ?
- सुशांत की मौत की जांच रोकने और रिया को बचाने में मिली नाकामी का गुस्सा और खिसियाहट इन तीनों पर निकाल कर इसे भाजपा बनाम कांग्रेस/ शिव सेना की राजनीतिक लड़ाई व मुंबई पुलिस/ मुंबई के स्वाभिमान का नाम दे रही उद्धव सरकार
सुशांत की मौत की जांच पर लीपापोती करने और रिया को बचाने में नाकाम रही उद्धव सरकार खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर जांच की मांग उठाने वाले अर्णब गोस्वामी, सुब्रमण्यम स्वामी और कंगना रनौत से भिड़ गई है.... और दिलचस्प बात यह है कि अपनी इस निजी खुन्नस की लड़ाई को उसने मुंबई पुलिस और मुंबई की शान बचाने की लड़ाई का नाम भी दे दिया है.
जैसे-जैसे यह लड़ाई और गहराती जा रही है, वैसे-वैसे ही यह सवाल अब और भी और प्रासंगिक होता जा रहा है कि उद्धव सरकार आखिर सुशांत की मौत की जांच में इतने अड़ंगे क्यों अटका रही थी या रिया को बचाने के लिए इतना जोर क्यों लगा रही थी? यही राज जानने के लिए करोड़ों लोग बेकरार भी हैं. हालांकि एनसीबी द्वारा ड्रग्स मामले में रिया की गिरफ्तारी के बावजूद सीबीआई जांच के किसी निष्कर्ष तक पहुंच न पाने के कारण सुशांत की मौत का सच फिलहाल बाहर नहीं आ सका है.
इसलिए उद्धव ठाकरे की इस खिसियाहट को बहुत से लोग अभी भी भाजपा बनाम कांग्रेस - शिव सेना की राजनीतिक जंग भी मान रहे हैं..... और जब तक सच्चाई बाहर नहीं आ जाती , तब तक तो सुशांत को लेकर जांच रोकने और कराने के पक्ष में दो अलग-अलग राजनीतिक खेमे बन जाना ही इसे राजनीतिक लड़ाई मानने का वाजिब कारण है ही. इसी खेमेबाजी के चलते ही सुशांत की मौत का सच जानने की इच्छा रखने वाले ( सुशांत के परिवार और फैन्स) भाजपाई और सच छिपाने के लिए जांच रोकने, रिया को बचाने और अर्णब , कंगना , स्वामी आदि को प्रताड़ित करने के समर्थन में खड़े लोग कांग्रेसी- शिव सेना समर्थक माने जा रहे हैं.
ऐसी स्थिति बनने के लिए जिम्मेदार चाहे जांच की मांग करने वाले हों या जांच पर लीपापोती करने वाले, लेकिन यह भी नहीं भूला जाना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति की संदिग्ध हालत में हुई मौत का सच जानने का अधिकार उसके परिवार या करोड़ों फैन्स को होता है. अगर इसी राजनीतिक लड़ाई के चलते बन रहे दबाव से ही यह सच कभी बाहर आ सका तो देश के लोकतंत्र के इतिहास में सुशांत की मौत निसंदेह एक ऐसी घटना के रूप में दर्ज हो जाएगी, जिसने जनता की ताकत से सरकार को रूबरू करा दिया. इसके बाद भविष्य में शायद ही कोई और सरकार उद्धव सरकार की तरह लोकतंत्र में जनता की ताकत भूल जाने की गलती दोहराने की हिमाकत कर पाएगी.