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अर्थ जगत की बड़ी ख़बर: अगले एक साल में आएगी मंदी
अमरीका की अर्थव्यवस्था से अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं। वहाँ आशंका जताई जा रही है कि अगले एक साल में मंदी आएगी। अमरीका के सरकारी बांड का दीर्घकालिक ब्याज़ अल्पकालिक ब्याज़ से कम हो गया है। आम तौर पर निवेशक तभी दीर्घकालिक बांड में निवेश करते हैं जब रिटर्न ज़्यादा मिलता हो। यह प्रक्रिया कई महीनों से चल रही है। पिछले साठ साल में देखा गया है कि जब भी ऐसा हुआ है उसके बाद मंदी आई है। इसे yield curve inversion कहते हैं। जब दीर्घकालिक रिटर्न गिरने लगता है। शुक्रवार को जब अमरीकी ट्रेज़री नोट के रिटर्न में गिरावट आई तब सबके कान खड़े हो गए। अभी ब्रेक्सिट के बाद यूरोप से जो तूफ़ान उठेगा उसका असर भी देखना बाकी है। बल्कि दिख रहा है।
2016 में हुए अमरीकी चुनावों में रूस के हस्तक्षेप को लेकर काफ़ी विवाद हुआ था। आरोप लगा था कि रूस ने बाहर से इस चुनाव में फ़र्ज़ी मुद्दे खड़ा किए जिससे ट्रंप की मदद हो। इस मामले की अमरीकी जस्टिस डिपार्टमेंट में 675 दिनों से जाँच चल रही थी जो अब पूरी हो गई है। स्पेशल काउंसल राबर्ट मुल्लर ने अपनी जाँच पूरी कर ली है। ट्रंप और रूस ने आरोपों से इंकार किया है। मुल्लर की जाँच का नतीजा यह हुआ है कि अभी तक इससे जुड़े मामले में पाँच गिरफ़्तारियाँ हुई हैं। सवा दो सौ आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। देखते रहिए कि यह रिपोर्ट पब्लिक में क्या गुल खिलाती है। सबकी नज़र यह जानने पर है कि आख़िर रूस ने यह सब कैसे किया। अभी तक रूस की कोई ठोस भूमिका तो सामने नहीं आई है मगर बहुत सारे अन्य आपराधिक पहलू उभर कर सामने आए हैं।
अमरीका H-1B वीज़ा वालों को विस्तार देने में देरी कर रहा है और अंत में मना कर दे रहा है। 2018 में पाँच आई टी कंपनियों के आठ हजार से अधिक वीज़ा विस्तार के आवेदन को नामंज़ूर किया गया है। इसके कारण हज़ारों इंजीनियरों को भारत लौटना पड़ा है। ट्रंप सरकार की नीतियों के कारण भारत के इंजीनियरों को भारी नुक़सान उठाना पड़ रहा है। उनके लिए असवर सीमित होते जा रहे हैं।
नार्वे सरकार का पेंशन ग्लोबल फ़ंड है। यह दुनिया के बड़े सरकारी फ़ंड में गिना जाता है। इसने पिछले साल कई भारतीय कंपनियों से अपने निवेश वापस खींच लिया है।पिछले साल निवेश पर रिटर्न कम हुआ। दस प्रतिशत की गिरावट आई। नार्वे के फ़ंड ने 275 कंपनियों में निवेश किया था जो अब घट कर 253 हो गई है।
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