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नोटबंदी तो झांकी थी, लॉक डाउन की पिक्चर तो अभी बाकी है!
- इस बार लॉक डाउन से देश की अर्थव्यवस्था और व्यापार को होने वाले नुकसान के अनुमान में आर्थिक विशेषज्ञ भी खा सकते हैं गच्चा
- महज 21 की संपूर्ण बंदी से किया जा रहा आंकलन मगर लॉक डाउन की पिक्चर तो अभी बाकी ही है
- नोट बंदी में तो सिर्फ नोट ही बंद हुए थे, यहां तो बिना किसी प्लानिंग के सब कुछ बंद करके पूरे देश की अर्थव्यवस्था और कारोबार को सरकार ने धकेला अनिश्चितता के अंधे कुएं में
एक खबर अभी मैंने पढ़ी, जिसमें आर्थिक विशेषज्ञों के हवाले से यह बताया गया है कि लॉक डाउन से भारत की अर्थव्यवस्था को सात- आठ लाख करोड़ का नुकसान पहुंचेगा। जबकि मेरा यह आंकलन है कि नुकसान इससे कहीं ज्यादा होगा बल्कि अकल्पनीय होगा.... क्योंकि हमारे इतने विशाल देश में कंप्लीट लॉक डाउन अनप्लांड तरीके से अचानक किया गया इसलिए इसका चौतरफा असर हुआ है और यह असर बेहद दूरगामी भी है।
वैसे भी, अभी इस लॉक डाउन में सब कुछ बंद होने से नुकसान की गणना करने वाले शायद इस तथ्य को इग्नोर कर रहे हैं कि लॉक डाउन खत्म होते होते या सामान्य बिजनेस गतिविधियां शुरू होने में अभी महीनों का समय लगना बाकी ही है। अर्थात, सात- आठ लाख करोड़ के नुकसान की गणना तो इस गणितीय आधार पर की जा रही है कि लॉक डाउन से देश को रोजाना 35-40 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है तो 21 दिन में देश की अर्थव्यवस्था को कितने का नुकसान होगा।
हालांकि मैं कोई आर्थिक विशेषज्ञ तो नहीं हूं मगर अपने जीवन का एक बड़ा समय अर्थशास्त्र पढ़ने और फिर इकोनॉमी व बिजनेस को समझने में लगाया है इसलिए मुझे भी देश की या दुनिया की अर्थव्यवस्था की थोड़ी बहुत समझ है। चूंकि देश के शीर्ष मीडिया समूहों में बतौर आर्थिक पत्रकार मैंने बरसों तक अर्थव्यवस्था और बिजनेस से जुड़ी हर छोटी बड़ी खबर, लेख आदि पर माथापच्ची की है तो मैं इतनी समझ तो अपने भीतर डेवलप कर ही चुका हूं कि कोई आर्थिक विशेषज्ञ अगर कुछ बताता है तो उस पर सवाल पूछ सकूं।
यही वजह है कि महज 21 दिन के कैलकुलेशन के आधार पर यह कह देना कि देश को सात- आठ लाख करोड़ का नुकसान होगा, यह जल्दबाजी और गलत आंकलन है। नुकसान इससे कई गुना ज्यादा होना है क्योंकि लॉक डाउन पार्ट टू में भी देश में कारोबारी गतिविधियां सामान्य नहीं हो पाएंगी।
दरअसल, अगर लॉक डाउन को प्लान करके किया गया होता तो यह नुकसान बेहद कम होता। क्योंकि तब सरकार अपने ही काबिल अफसरों या विशेषज्ञों से विचार विमर्श में इस बात को भी समझ जाती कि मैन्युफैक्चरिंग, सप्लाई आदि की चेन या निर्माण गतिविधियों को जारी रखकर भी यह लॉक डाउन किया जा सकता है। कंट्रोल्ड और प्लांड लॉक डाउन करने से देश में इतनी अराजकता भी न फैलती और अर्थव्यवस्था भी गर्त में न जाती।
मगर अब सरकार के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह आनी है कि लॉक डाउन को चरणबद्ध तरीके से वह कैसे खोले ताकि देश में और अराजकता न हो जाए, साथ ही चरणबद्ध तरीके से देश की अर्थव्यवस्था और व्यापार को भी पटरी पर लाया जा सके। जाहिर है, कितनी भी समझदारी से इसे खोला जाएगा तो भी इसे अब एक सामान्य प्लांड लॉक डाउन का रूप देने में भी सरकार को महीना दो महीने का समय तो आराम से लग ही जाएगा।
फिलहाल, मेरा यह मानना है कि नोटबंदी का मास्टर स्ट्रोक अब इस अनप्लांड लॉक डाउन वाले मास्टर स्ट्रोक के सामने बहुत छोटा नुकसान साबित हो जाएगा। नोट बंदी ने अगर देश की जीडीपी में दो प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट की है तो आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि अब आने वाला आर्थिक परिदृश्य कैसा होने वाला है। बाकी अभी सरकार के पास तो 2024 तक का समय है ही.... कम से कम एक मास्टर स्ट्रोक भी अगर सालाना मारा तो चार तो अभी भी बाकी ही हैं... इसलिए हमें भी कोई अंतिम अनुमान लगाने से पहले सरकार के बाकी मास्टर स्ट्रोक भी देख लेने चाहिए....