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पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। कल शनिवार को मिली एक दिन की राहत के बाद आज रविवार को पेट्रोल-डीजल के दाम फिर से बढ़ गए। देशभर में विरोध के बावजूद पेट्रोल-डीजल की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही है। कोरोना और लाकडाउन से बेहाल जनता पर पेट्रोल के बढ़ते दामों ने अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। इससे हर रोज़ बढ़ने वाली महंगाई ने आम आदमी के घर का बजट बिगाड़ दिया है। रविवार को पेट्रोल के दामों में 29 पैसे तक की बढ़ोतरी हुई है। वहीं डीजल के दाम भी 30 पैसे तक बढ़े है। ऐसे में दिल्ली में पेट्रोल 97.22 रुपये प्रति लीटर और डीजल 87.97 रुपये प्रति लीटर हो गया है।
रविवार को पेट्रोल-डीज़ल के दामों में हुई बढ़ोतरी के बाद देश के 228 ज़िलों में पेट्रोल की क़ीमत 100 के पार पहुंच गई है। चार ज़िलों में डीज़ल के दाम भी 100 के पार पहुंच गए है। 10 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में पेट्रोल की और दो राज्यों में डीज़ल की क़ीमत 100 रुपए से ज़्यादा हो गई है। देश के पांच राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के सभी 168 ज़िलों में पेट्रोल के दाम 100 के पार पहुंच चुके हैं। इनमें मध्य प्रदेश के 52, महाराष्ट्र के 36, राजस्थान के 33, तेलंगाना के 31, आंध्र प्रदेश के 14 और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के दोनों ज़िले शामिल हैं।
पांच अन्य राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 60 ज़िलों में पेट्रोल शतक तगा चुका है। फिलहाल कर्नाटक के 24, बिहार के 23, ओडीशा के 5, तमिलनाडु के 3 और छत्तीसगढ़ का एक और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के 4 ज़िलों में पेट्रोल की क़ीमत सौ रुपए प्रति लीटर के पार पहुंच गई है। जल्द ही इन राज्यों के भी सभी ज़िलों में पेट्रोल 100 के पार बिकेगा। क्योंकि बाक़ी ज़िलों में पेट्रोल की क़ीमत 99 रुपए प्रति लीटर से ज़्यादा है। कुछ और राज्यों में भी पेट्रोसल के दाम 100 का आंकड़ा छूने को बेताब हैं। डीज़ल के दाम भी इस होड़ में पीछे नहीं हैं।
राजस्थान के गंगानगर में पेट्रोल-डीज़ल सबसे महंगा है। यहां पेट्रोल 108.38 रुपए प्रति लीटर और ड़ीज़ल 101.13 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है। राजस्थान के ही हनुमानगढ में भी डीज़ल के दाम 100.23 और ओडीशा के मलकानगिरी में 100.53 और कोरापुट में 100.17 रुपए प्रति लीटर पहुंच गए हैं। मध्यप्रदेश के अनुपपुर में पेट्रोल 108.33 और डीज़ल 99.33 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। ज़ाहिर है कि यहां भी डीज़ल बहुत जल्द शतक लगाने वाला है।
पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने की रफ्तार को देखते हुए लगता है कि अगले छह महीनों में पेट्रोल और साल भर के भीतर डीज़ल के दाम पूरे देश मे सौ के पार हो जाएंगे। 2 मई को चुनावी नतीजे आने के बाद 4 मई को पेट्रोल-डीज़ल के दाम पहली बार बढ़े थे। मई के महीने में कुल 16 बार दाम बढ़े। जून के महीने में 20 दिन में 11 बार दाम बढ़ चुके हैं। 4 मई से अब तक पेट्रोल की कीमत में 6.91 रुपये प्रति लीटर का इज़ाफ़ा हुआ है। वहीं, इस दौरान डीजल भी 7.21 रुपये प्रति लीटर तक महंगा हो गया है।
पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने का सबसे ज़्यादा असर आम आदमी पर पड़ता है। ख़ास कर समाज के निचले और मध्यम वर्ग पर। पेट्रोलियम कंपनियों के एक सर्वे के मुताबिक़ पेट्रोल की सबसे ज़्यादा 61.42 प्रतिशत खपत दो पहिया वाहन में होती है। उसके बाद छोटी और मध्यम कारों में 34 फ़ीसदी खपत होती है। जबकि एसयूवी और अन्य लक्ज़री गाडियों में पेट्रोल की सिर्फ़ 2.34 फीसदी ही खपत होती है। इस लिहाज़ से देखें तो विलासितापूर्ण जीवन जीने वालों पर पेट्रोल के बढ़तो दामों का उतना असर नहीं होता जितना कि ग़रीब और मध्यम वर्ग पर पड़ता है।
पेट्रोल के बढ़ते दामों की सबसे ज़्यादा मार स्कूटी, स्कूर और मोटर साइकिल इस्तेमाल करने वालों पर होती है। डिलीवरी ब्वाय का काम करने वालों पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ता है। ग़रीब और मध्यम वर्ग पर पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दामों से दोहरी मार पड़ती है। बार-बार दाम बढ़ने पर प्रत्यक्ष रूप से उनका पेट्रोल होने वाला ख़र्च बढ़ जाता है। पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने से रोज़मर्रा के इसेतमाल की चीज़ों के दाम बढ़ने से अप्रत्क्ष रूप से उनके घर का पूरा बजट बिगड़ जाता है। हर दूसरे-तीसरे दिन पेट्रोल के 25-30 पैसे मंहगा होने से आम लोगों का तेल निकलने लगा है।
मई के महीने में थोक और खुदरा महगांई दर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी है। पेट्रोल-डीज़ल की लगातार बढ़ती क़ीमतों की वजह से जून में इसके और ऊपर पहुंचने की आशंका है। महंगाई पर क़ाबू पाने का मोदी सरकार और रिज़र्व बैंक कोई क़म नहीं उठा रहे। सरकार के पास फिलहाल कोई ठोस उपाय दिख भी नहीं रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण महंगाई पर पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ज़रूर कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों को सलाह दे रहे हैं कि वो अपनी राज्य सरकारों से पेट्रोल-डीज़ल पर वैट करने को कहें। लेकिन पेट्रोल-डीज़ल लगने वाला केंद्रीय कर को कम करने के नाम पर पेट्रोलियम मंत्री और मोदी सरकार के दूसरे मंत्रियों को सांप सूंघ जाता है।
रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास कह रहे हैं कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद ख़राब हुए आर्थिक हालात के दुरुस्त करने के लिए हर क्षेत्र मौद्रिक नीति में बदलाव से लेकर तमाम दूसरे क़दम उठाने की ज़रूरत है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिनके सिर पर सरकार के साथ मिलकलर महंगाई रोकने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने की ज़िम्मेदारी है, वो सिर्फ़ सलाह दे रहे हैं। दो हफ्ते पहले उन्होंने आम जनता को महंगाई से राहत देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों से अपने-अपने हिस्से का टैक्स कम करने की अपील की थी। लेकिन अफसोस के उनकी इस अपील पर न मोदी सरकार का दिल पसीजा और न ही किसी राज्य सरकार के कानों पर ही जूं रेंगी।
दरअसल महंगाई बढ़ने का सबसे बड़ा कारण आए दिन बढ़ने वाले पेट्रोल-डीज़ल के दाम हैं। नरेंद्र मोदी 50 रुपए प्रति लीटर से कम में पेट्रोल देने का वादा करके सत्ता में आए थे। लेकिन उनके सत्तासीन होने के साल साल में पेट्रोल 2014 में 71 रुपए प्रति लीटर के मुक़ाबले 10 के पाल चला गया है। पेट्रोल तो पेट्रोल देश के कई हिस्सों में डीज़ल के दाम भी सौ रुपए का आंकड़ा पार कर चुके हैं। 2 मई को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से ही पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतों मे आग लगी हुई है और लगभग हर रोज़ बढ़ने वाली क़ीमतें आम आदमी का तेल निकाल रहीं हैं।