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गिरीश मालवीय
RBI द्वारा नियुक्त येस बैंक के नए कर्ताधर्ता प्रशांत कुमार ने कुछ दिनों पहले कहा कि बैंक पूर्व घोषित कार्यक्रम के मुताबिक 14 मार्च को दिसंबर तिमाही के नतीजे घोषित करेगा. अभी तक यस बैंक ने तीसरी तिमाही के नतीजे घोषित नही किये हैं अभी ये भी नही पता है कि कितना NPA हो गया है और एसबीआई को बलि का बकरा बनाया जा रहा है कई विशेषज्ञों ने अनुमान जता रहे हैं कि बैंक का वास्तविक एनपीए 30 प्रतिशत से भी ऊपर पहुंच गया है. यह एक भयानक आंकड़ा है.
कुछ ही देर में कैबिनेट और CCEA की बैठक होनी है. सूत्र कह रहे हैं कि इस बैठक के दौरान कैबिनेट में यस बैंक के रिस्ट्रक्चरिंग प्लान को मंजूरी दे दी जाएगी. इस प्लान के ही तहत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कल गुरुवार को 7,250 करोड़ रुपए में यस बैंक के शेयर खरीदने का ऐलान किया है, जबकि कुछ दिनों पहले SBI के चेयरमैन रजनीश कुमार कह रहे थे कि स्टेट बैंक YES Bank में अधिकतम 10 हजार करोड़ रुपये का निवेश कर सकता है मजे की बात यह है कि जब यस बैंक के धड़ाम होने की खबर आयी थी तो अगले दिन स्टेट बैंक 12 हजार करोड़ डालने के प्लान बना रहा था.
यानी अब एसबीआई भी बड़ी रकम निवेश करने से पीछे हट रहा है उसके शेयरों के दाम भी गिरते जा रहा है. कल रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का बड़ा बयान सामने आया. उन्होंने कहा कि यस बैंक ने अपनी दिक्कतों के बारे में कई बार सूचित किया था और इन दिक्कतों को दूर करने की योजना बनाने के लिये पर्याप्त समय उपलब्ध था। लेकिन उचित कदम नही उठाए गए..
राणा कपूर ने जिस तरह यस बैंक की बैलेंस शीट को कमजोर किया,उसमें गड़बड़ी की और कई आवश्यक जानकारियां छिपाने की कोशिश की थी, उसे देखते हुए बहुत पहले उनकी विदाई हो जानी चाहिए लेकिन मोदी सरकार सिर्फ आंखों पर पट्टी बांधकर बैठी रही. रिजर्व बैंक ने भी राणा कपूर के मामले में ढुलमुल रवैया अपनाया अगस्त 2018 में कपूर को हटाए जाने के लिए 31 जनवरी 2019 तक की समयसीमा तय करना रिजर्व बैंक के लचर प्रशासनिक फैसले का ही एक उदाहरण था.
यहाँ तक कि आरबीआई की तरफ से यस बैंक को पिछले साल फरवरी में फंड डायवर्जन और प्रॉविजनिंग के मामले में क्लीन चिट तक दे दी गई जब वित्त वर्ष 2018-19 में भी यसबैंक ने करीब 3,277 करोड़ रुपये के एनपीए को छिपा लिया तब आरबीआई को होश आया ओर उसने अपने एक पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी को बैंक के बोर्ड में भेजा लेकिन रिजर्व बैंक का धैर्य तब टूटा जब अक्टूबर-दिसंबर 2019 के तिमाही नतीजे जारी करने में यस बैंक की ओर से देरी की जाने लगी। उसने 14 मार्च की तारीख दे दी लेकिन उसकी कोई तैयारी नही होती देख आरबीआई को निर्णायक फैसला लेना पड़ा.
जेपी मॉर्गन के एक अनुमान के मुताबिक बैंक का फंसा कर्ज 45,000 हजार करोड़ रुपये तक बढ़ सकता है। बैंक का 36 फीसदी कैपिटल बैड लोन में फंसा हुआ है। अभी बैंक के लोन डूबने की आशंका ज्यादा है यस बैंक का 10 बड़े कारोबारी समूहों से जुड़े लगभग 44 कंपनियों के पास कथित तौर पर 34,000 करोड़ रुपये का कर्ज फंसा हुआ है। अनिल अंबानी समूह की नौ कंपनियों ने 12,800 करोड़ रुपये तथा एस्सेल ग्रुप ने 8,400 करोड़ रुपये का कर्ज ले रखा है। इसके अलावा डीएचएफएल ग्रुप, इंडिया बुल्स, जेट एयरवेज, कॉक्स ऐंड किंग्स तथा भारत इन्फ्रा ने भी यस बैंक से अच्छा-खासी रकम लोन ले रखी है.
यह इधर कुआं ओर उधर खाई वाली स्थिति है आरबीआई को भी अच्छी तरह से पता है कि यदि तीन जुलाई से पहले जमाकर्ताओं में यह भरोसा नहीं बैठाया गया कि यस बैंक में जमा उनकी रकम सुरक्षित है तो उसमें जमा करीब दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम निकालने की होड़ मच जाएगी. ओर जिस तरह से मार्केट के हाल है यह होना अवश्यंभावी है भारत की बैंकिंग प्रणाली इतिहास के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है.
अब देखिये किस किस सरकारी संस्थान के फंसे है पैसे
हिमाचल प्रदेश सरकार के 1,909 करोड़ रुपये यस बैंक में फंसे हुए हैं गुजरात की राजकोट महानगर पालिका के यस बैंक में 164 करोड़ रुपये जमा हैं गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी के 150 करोड़ रुपये बैंक में अटके हुए हैं। हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम के कर्मचारियों के प्रोविडेंट फंड का करीब एक हजार करोड़ रुपये Yes Bank में फंसा हुआ है. हरियाणा सरकार ने स्थानीय निकायों के साथ ही विभिन्न सरकारी विभागों, बोर्ड-निगमों और विश्वविद्यालयों से पूछा गया है कि किस-किस निजी बैंक में सरकारी रकम जमा है और कितनी. किसकी मंजूरी से प्राइवेट बैंक्स में यह पैसा जमा कराया गया.
यस बैंक मामले के बाद देश के तमाम प्राइवेट बैंक शक की निगाहों से देखे जाने लगे हैं। ऐसा माहौल बन रहा है कि जमाकर्ता प्राइवेट बैंक से पैसा निकाल कर सरकारी बैंकों में जमा कर रहे हैं। कुछ राज्य सरकारों ने भी प्राइवेट बैंक में जमा पूंजी को निकालना शुरू कर दिया है, जिसके बाद रिजर्व बैंक ने आकर सफाई दी है. आरबीआई ने राज्य सरकारों से ऐसा नहीं करने की अपील की है. रिजर्व बैंक ने इस बाबत सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को चिठ्ठी लिखी है प्राइवेट बैंकों को लेकर जो आशंकाएं पैदा हुई हैं वह बेतुकी है. अगर राज्य सरकारें इस तरह प्राइवेट बैंकों से पैसा निकालना शुरू कर देती हैं तो इससे बैंकिंग और फाइनेंशल सेक्टर पर बुरा असर होगा.