आर्थिक

चंद्रग्रहण तो चला गया लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था पर लगा ग्रहण कब समाप्त होगा!

Shiv Kumar Mishra
6 Jun 2020 5:07 PM IST
चंद्रग्रहण तो चला गया लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था पर लगा ग्रहण कब समाप्त होगा!
x
ऐसे में बैंकों का पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. जहां तक ग्राहकों की बात है तो वे अभी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. ''

गिरीश मालवीय

कल चंद्रग्रहण था जो कुछ देर चला फिर समाप्त हो गया लेकिन कल जो अर्थव्यवस्था को लेकर खबरें सामने आई है उससे पता लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर लगा ग्रहण जल्द समाप्त होने वाला नही है. कल दोपहर में रिजर्व बैंक ने अपना कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे रिलीज किया जिसके अनुसार 'मई 2020 में उपभोक्ताओं का भरोसा पूरी तरह टूट चुका था. मौजूदा स्थिति इंडेक्स (सीएसआई) अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गया है. इसके अलावा एक साल आगे का भविष्य की संभावनाओं इंडेक्स में भी भारी गिरावट आई है और यह निराशावाद के क्षेत्र में पहुंच चुका है.

फिर कल रात रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास एक बार फिर सामने आए उन्होंने वह बेहद गंभीर बात कही उन्होंने कहा कि इकॉनमी पर असर उम्मीद से कहीं ज्यादा है और सुधार में कई साल लग सकते हैं,

इससे पहले सुबह सरकार की यह घोषणा भी सामने आई थी कि कोई भी सरकारी योजनाओं को इस साल स्वीकृति नहीं दी जाएगी। पहले से ही स्वीकृत नई योजनाओं को 31 मार्च, 2021 या फिर अगले आदेशों तक स्थगित किया जाता है.

लेकिन असली मुद्दे की बात तो दो दिन पहले देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कही थी जिससे आप मार्केट की हालत का अंदाजा लगा सकते हैं उन्होंने कहा कि 'बैंक कर्ज देने को तैयार हैं, लेकिन ग्राहक कर्ज लेने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं'. ''हमारे पास फंड है, लेकिन कर्ज की मांग नहीं है. ऐसे में बैंकों का पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. जहां तक ग्राहकों की बात है तो वे अभी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. ''

आप खुद सोचिए कि सिर्फ लॉकडाउन में रिजर्व बैंक ने दो बार रेपो रेट में कटौती की है. वर्तमान में रेपो रेट 4 फीसदी पर है, जो अब तक का सबसे निचला स्‍तर है. वहीं, बैंकों ने भी लोन लेने की प्रक्रिया को पहले के मुकाबले आसान बना दिया है. सरकार MSME क्षेत्र को तीन लाख करोड़ का लोन देने के लिए विशेष पैकेज दे रही है. इन तमाम कोशिशों के बावजूद लोग कर्ज लेने को तैयार नहीं हैं. ऐसा क्यों है ? रजनीश कुमार कहते हैं . ''हमारे पास फंड है, लेकिन कर्ज की मांग नहीं है. ऐसे में बैंकों का पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. जहां तक ग्राहकों की बात है तो वे अभी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. ''

इन कुल जमा चार खबरों से ही आप ठीक ठीक अंदाजा लगा सकते हैं कि वास्तव में अर्थव्यवस्था के मामले में हम किस कहर का सामना कर रहा है कोरोना काल के पहले जो देश की आर्थिक स्थितियां थी वह बहुत खराब थी. मोदी सरकार अपने प्रचार तंत्र के जरिए इसे चमकाने का प्रयास करती रही थी लेकिन अंदर ही अंदर सबको पता था कि घड़ा भर चुका है कभी भी छलकने वाला है अब भी नया कुछ नही हुआ है दरअसल कोरोना ने इस सरकार को एक बहाना प्रदान कर दिया है जिसमे कोरोना के ऊपर वह अपनी आर्थिक असफलताओं का दोष मांड कर बरी होने के प्रयास कर रही है और जोरशोर से कर रही है.

Next Story