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जनता के गुस्से के आगे झुकी मोदी सरकार, 14 राज्यों में पांच रुपये सस्ता किया पेट्रोल-डीज़ल

Yusuf Ansari
5 Oct 2018 4:02 AM GMT
जनता के गुस्से के आगे झुकी मोदी सरकार, 14 राज्यों में पांच रुपये सस्ता किया पेट्रोल-डीज़ल
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पेट्रोल-डीज़ल की लगातार आसमान छूती कीमतों से देश भर में उपजे जन आक्रोश के सामने आखिरकार मोदी सरकार को झुकना ही पड़ा. जनता जनार्दन के गुस्से से घबराए पीएम मोदी ने बीजेपी और सहयोगी दलों वाले राज्यों में लोगों को पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में पांच रुपए की राहत दिलवा दी.

यूसुफ़ अंसारी

पेट्रोल-डीज़ल की लगातार आसमान छूती कीमतों से देश भर में उपजे जन आक्रोश के सामने आखिरकार मोदी सरकार को झुकना ही पड़ा. जनता जनार्दन के गुस्से से घबराए पीएम मोदी ने बीजेपी और सहयोगी दलों वाले राज्यों में लोगों को पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में पांच रुपए की राहत दिलवा दी. आज सुबह लोग मुस्कुराते चेहरों के साथ पेट्रोल पंपो पर पहुंचे. मोदी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ने गुरुवार को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 2.50 रुपये प्रति लीटर की कटौती ऐलान किया किया था. उन्होंने राज्य सरकारों से भी इतनी ही कटौती करने की अपील की थी. केंद्र के ऐलान के बाद बीजेपी/एनडीए शासित ज्यादातर राज्यों ने भी कटौती का ऐलान करके लोगों को राहत दे दी।

केंद्र की मोदी सरकार और बेजेपी/एनडीए की राज्य सरकारों के इस क़दम से इससे देश के 14 राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें पांच रुपये प्रति लीटर तक कम हो गई हैं. वहीं बाकी राज्यों में तेल की कीमतें ढाई रुपये प्रति लीटर कम हुई हैं. यह कटौती आज आधी रात से लागू हो गई. वहीं कांग्रेस और अन्य ग़ैर बीजेपी शासित राज्य सरकारों पर भी पेट्रोल-डीज़ल की क़ामते घटाने का दबाव बढ़ गया है. इसे लेकर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार विशेष रुप से दबाव में है.

अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की लगतार बढ़ती कीमतों की वजह से देश में पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छूने लगे थे. इससे रोज़मर्रा की आम ज़रूरतों की चाज़े भी मंहगी हो रही थी. इससे देश भर में मची हाहाकार को देखते हुए मोदी सरकार को पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतो मे कटोती करन पड़ी. उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए केंद्र ने डीजल-पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में 1.50 रुपये की कमी की है और सरकारी कंपनियों पेट्रोलियम को एक-एक रुपये प्रति लीटर भाव कम करने और उसका बोझ खुद वहन करने को कहा गया है. इससे कंपनियों पर 9,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा.

बीजेपी/एनडीए शासित राज्य सरकारों ने अपने यहां वैट/बिक्री कर में इसी के बराबर यानि 2.50 रुपए प्रति लीटर की कमी की है. केंद्र सरकार के ऐलान के बाद गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, जम्मूव कश्मीरर, उत्तदराखंड, गोवा, महाराष्ट्र और हरियाणा राज्यों ने वैट में 2.50 रुपये की कटौती की है. इससे इन राज्यों में पेट्रोल-डीजल की प्रभावी कीमत पांच रुपये प्रति लीटर कम हो गई है.

कर्नाटक और केरल ने पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में कटौती करने से मना कर दिया है. ग़ौरतलब है कि इन राज्यों ने पिछले महीने ही उल्लेखनीय कटौती की थी. राजस्थान, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्य भी ईंधन की कीमतों में पहले कटौती कर चुके हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यममंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि केंद्र सरकार तेल कीमतों में 10 रुपये प्रति लीटर कम करे. वहीं केरल के वित्त मंत्री टी. एम. थॉमस इसाक ने इसे राजस्थान और मध्यप्रदेश के आगामी चुनावों से प्रभावित फैसला बताया है.

मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल में पेट्रोलियम पर उत्पाद शुल्क में दूसरी बार कटौती की गई है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि उत्पाद शुल्क में कटौती से केंद्र सरकारी खज़ाने पर 10,500 करोड़ रुपये का बोझड़ पड़ेगा. उन्होने यह भी बताया कि अगर साल भर यह कटौती जारी रहती है तो सरकारी ख़ज़ाने पर 21000 करोड़ का बोझ बड़ेगा. गौरतलब है कि अगस्त से अब तक पेट्रोल की कीमत में 6.86 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत में 6.73 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हुई है.

सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों के एक रुपये प्रति लीटर का बोझ वहन करने के निर्देश को पेट्रोल-डीजल पर फिर से सरकारी नियंत्रण स्थापित करने के तौर पर देखा जा रहा है. अभी इनकी कीमतें बाजार के आधार पर तय होती हैं. इस घोषणा के बाद इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई है.

सरकारी कंपनियों की आय पर इस एक रुपये प्रति लीटर कीमत वहन करने का सालाना बोझ 10,700 करोड़ रुपये होगा. इसमें करीब आधा बोझ इंडियन ऑयल पर और बाकी का बोझ हिस्सेदारी हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम पर जा सकता है. ब्रेंट क्रूड बुधवार को चार साल के उच्चतम स्तर 86 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया जबकि अमेरिका में ब्याज दर सात साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई.

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