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मोदी सरकार का अंबानी के जियो को नए साल का सबसे बड़ा तोहफा!
गिरीश मालवीय
1 जनवरी 2019 से रेलवे के दो लाख से अधिक (क्लोज यूजर ग्रुप) सीयूजी नम्बर एयरटेल के बजाए रिलायंस जियो के पास चले जाएंगे. इस तरह से जियो को रेलवे के रुप में अपना सबसे बड़ा ग्राहक मिल गया है. अब तक रेलवे हर साल करीब 100 करोड़ रुपये मोबाइल सेवाओं का बिल चुका रहा है. जो सीधे अम्बानी की जेब मे जाएगा. पीएम मोदी ने जिओ को नये साल का सबसे बड़ा तोहफा दिया है.
लेकिन जियो का लाभ सिर्फ नेटवर्क तक ही सीमित नही है. अब तक रेलकर्मी 2 जी मोबाइल सेट पर ही एयरटेल का नेटवर्क चला रहे हैं लेकिन, अब नया जियो सिम 4 जी सेट पर ही कार्य करेगा। ऐसे में सीयूजी को पहली जनवरी से अनिवार्य रूप से संचालित करने के लिए रेलवे कर्मचारियों को जिनके पास 4 जी फोन नही है. उन्हें सिम के साथ रिलायंस का मोबाइल सेट भी खरीदना होगा, बाजार में इस सेट की कीमत 1500 रुपये निर्धारित है इन्हें कुछ कम कीमत में रेलवे कर्मचारियों को उपलब्ध कराने की योजना है लेकिन एनई रेलवे मजदूर यूनियन (नरमू) ने रेलवे की इस व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया है। यूनियन के महामंत्री केएल गुप्त का कहना है कि रेलवे प्रशासन पूर्व की भांति कर्मियों को निशुल्क मोबाइल सेट भी प्रदान करे.
बीते छह वर्षों से रेलवे को सीयूजी की सुविधा दे रहे एयरटेल का दिसंबर महीने में करार खत्म हो रहा है, रेलवे कासीयूजी सबसे पहले बीएसएनएल के पास था, लेकिन बताया जा रहा है कि दिल्ली व मुम्बई में एमटीएनएल का नेटवर्क होने के चलते बीएसएनएल से रेलवे का लम्बे समय तक करार नहीं चल सका, लेकिन अब चूँकि जियो को रेलवे के ठेके को दिया जाना सही सिद्ध करना था इसलिए TRAI ने हाल ही में एक 'इंडिपेंडेंट ड्राइव टेस्ट' कराया था यह टेस्ट देश के 8 हाइवे और 3 रेल रूट्स पर कराया गया ये रेल रूट्स है इलाहाबाद से गोरखपुर, दिल्ली से मुंबई और जबलपुर से सिंगरौली जिसमे जियो के नेटवर्क में सबसे कम कॉल ड्राप हुई इसलिए उसे तरजीह दी गयी.
अब सोचने की बात यह हैं कि यदि किसी ऐसी जगह रेलगाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो जाती है. जहाँ जियो का नेटवर्क नही है. वहाँ कैसे रेलकर्मी दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी की सूचना निकटतम रेलवे स्टेशन को पुहंचा सकेंगे ?
वैसे कमाल की बात तो यह है कि इस नेटवर्क में भी रेलवे के उपयोगकर्ता को पहले की तरह उतनी ही सीमा तक उपयोग की अनुमति मिलेगी जितनी पहले एयरटेल की सिम के साथ मिलती थी यानी वह न व्हाट्सएप चला पाएंगे न अन्य कोई सोशल साइट,ओर सरकार की आलोचना करने की तो पहले से ही मनाही है. तो फिर इतने डाटा की उन्हें जरूरत ही क्या है क्योंकि ऑफीशियल रूप से तो उन्हें ऑन ड्यूटी मोबाइल वो चला ही नही सकते.
वैसे मोदीं सरकार जब से आई है वह शुरू से जियो पर मेहरबान रही है राजस्थान में वसुंधरा सरकार ने भामाशाह योजना ओर छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने रूरल क्षेत्रों में कनेक्टिविटी के नाम पर हजारों करोड़ रुपये का फायदा जियो को पुहंचाया हैं.
इसी मेहरबानी के चलते सरकार ने बीएसएनएल को 4जी स्पेक्ट्रम तक अलॉट नहीं किया ताकि कोई मजबूत कॉम्पिटिशन जियो को न झेलना पड़े, खुद बीएसएनएल के कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार रिलायंस जियो को संरक्षण दे रही है। इससे टेलीकॉम सेक्टर को नुकसान हो रहा है इसके विरोध में वो दिसंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने वाले थे.
रेलवे का ठेका बीएसएनएल को नही दिया जाता लेकिन जब भारतीय सेना को दूरदराज के क्षेत्रों में नेटवर्क की प्रॉब्लम आती है तो हमेशा बीएसएनएल को आगे किया जाता है पिछले दिनों भी भारतीय सेना को लीज्ड सर्किट्स, बेसिक टेलीफोन और पीआरआई आदि सेवाएं प्रदान करने के लिए BSNL से करार किया है.
सच तो यह है कि मोदीजी रिलायंस के प्रमोटर की तरह कार्य करते हैं. यह उनकी पार्टी में भी सब जानते हैं. लेकिन कोई स्वीकार नही करता और न ही कभी इन विषयों पर बहस होती है .
लेखक गिरीश मालवीय आर्थिक मामलों के जानकर है.