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संजय कुमार सिंह
रेल मंत्री जी को चिन्ता है कि 250 ट्रेन बर्बाद चली गईं। 850 (शायद 848) बसें भी तो बेकार गई थीं। अब जो ट्रेन थीं वो तो आपने वीडियो में देखा ही है और जिन लोगों ने यात्रा की वो जानते हैं कि कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा से भानुमति ने कुनबा जोड़ा है। ये भटक तो जाती ही है, भयंकर देर से चलती है।
गर्मी के इस मौसम में इनमें एसी कोच नहीं हैं और जब देश भर में लॉक डाउन चल रहा है तो इनमें पैन्ट्री कार भी नहीं है। ऐसा कोई उपाय तो नहीं ही है कि आदमी हफ्ते भर का खाना-पानी बांध कर चले।
ऐसे में ये ट्रेन मौत का कुंआ साबित हुई हैं और कारण चाहे जो रहे हों 80 से ज्यादा यात्री रेल गाड़ियों या परिसर में मर चुके हैं। पता नहीं मंत्री जी को उसकी कितनी चिन्ता नहीं है। पर उन्हें ट्रेन के बर्बाद चले जाने की चिन्ता भी है और वे राज्य सरकारों पर दोष दे रहे हैं कि वह उनके लिए आत्महत्या के इच्छुक नहीं तलाश रही है।
मुझे नहीं लगता कि इस ट्रेन में चलने की हिम्मत कोई करेगा। पैदल जाने वाला तो फिर भी मन का मालिक होगा इस ट्रेन में बैठने के बाद खुदको भगवान भरोसे कौन छोड़ेगा। वह भी तब जब समय उतना ही लग रहा हो। और राज्य सरकारें रेलवे का ट्रैवेल एजेंट क्यों बनें?