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नोटबंदी का होने लगा उलटा असर, सामने आ रहे हैं ख़तरनाक नतीजे

Special Coverage News
22 Sep 2018 1:59 PM GMT
नोटबंदी का होने लगा उलटा असर, सामने आ रहे हैं ख़तरनाक नतीजे
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ना देश की अर्थव्यवस्था सही हो पाई...ना उम्मीद के मुताबिक ब्लैकमनी पकड़ी गई? और ना ही नकली नोटों पर लगाम लगी? और सबसे बड़ा सवाल कि आखिर आम आदमी को क्या मिला?

नवंबर 2016 मोदी सरकार की नोटबंदी को लेकर ऐतिहासिक फैसला बताया जाता रहा है। नोटबंदी को लगभग 2 साल होने को है और अब जब हम इस ऐतिहासिक फैसले के पीछे के इतिहास में जाते है तो पता चलता है कि नोटबंदी का ये कदम खोखली दलिलों के सिवा कुछ नहीं? नोटबंदी को लेकर पहले दिन से ही ये कहा जा रहा था कि ये फैसला ब्लैकमनी को रोकने के लिए सबसे बड़ा हथियार साबित होगा। जिससे की देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, नोटबंदी के जरिए देश के अंदर जमा कालाधन बाहर आऐगा, लेकिन अब दो साल पूरे होने के बाद पता ये चलता है कि इतना बड़ा पहाड़ खोदने के बाद भी मिला कुछ नहीं। ना देश की अर्थव्यवस्था सही हो पाई...ना उम्मीद के मुताबिक ब्लैकमनी पकड़ी गई? और ना ही नकली नोटों पर लगाम लगी? और सबसे बड़ा सवाल कि आखिर आम आदमी को क्या मिला?

500 और 1000 के नोटों को हटाने का बड़ा मकसद कालेधन और नोटों की जमाखोरी पर लगाम लगाना था। लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट। नोटबंदी के वक्त कुल करैंसी में 500 और 1000 रुपए के नोटों की हिस्सेदारी 86 फीसदी थी, नोटबंदी के अगले साल यानी दिसंबर 2017 में 500 और 2000 के नोटों की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ऊपर चली गई। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि जब बड़े नोट पहले से ज्यादा जारी करने थे तो फिर नोटबंदी का मकसद ही क्या हुआ,2000 के बड़े नोट आने से तो कालेधन को और भी बढ़ावा मिला

नोटबंदी को लगभग दो साल होने को है लेकिन फिर भी इसी साल के अप्रैल-मई में पूरे देश को कैश की किल्लत का सामना करना पड़ा, जिसके बाद सरकार को साफ समझ आने लगा कि दाल में कुछ नहीं बहुत कुछ काला है, जिसके बाद सरकार ने 2000 के नोटों का सर्कुलेशन घटाना शुरू किया। कई आर्थिक और बैंकिंग विशेषज्ञों के मुताबिक 2000 के नोटों के जरिए ब्लैकमनी जमा करना ज्यादा आसान है। यह 500-1000 के नोटों की तुलना में संख्या में कम और कीमत में ज्यादा बैठते हैं।

इन सब के बावजूद दूसरा पहलू ये भी है कि नोटबंदी के बाद जारी हुए 2000 के नोटों की संख्या मार्च 2017 तक 328.5 करोड़ थी। जिसकी कीमत 6 लाख 57 हजार करोड़ रुपए है। देखा जाए तो यह आंकड़ा नोटबंदी के दौरान सर्कुलेशन में मौजूद 1000 रुपए के नोटों के मूल्य 6.32 लाख करोड़ रुपए से कहीं ज्यादा है। सरकार कहती है कि बड़े नोटों से कालाधन बढ़ता है। फिर पुराने हजार के नोटों से ज्यादा कीमत के दो हजार के नोट जारी करने से कालाधन कम कैसे हो गया?

इन तमाम बतो के बाद अब पता ये चल रहा है कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने जिस आनन-फानन में फैसला लिया उसके पीछे सरकार की कोई तैयारी नहीं थी, इस फैसले के लिए ना तो देश की जनता तैयार थी ना ही आरबीआई, आरटीआई के जरिए हुए खुलासे के बाद पता चला है कि नोटबंदी के वक्त आरबीआई के पास 500 रुपए का एक भी नया नोट नहीं था, जबकि आरबीआई को पहले से पता था नोटबंदी होने वाली है। फिर भी नोट छापने का सिलसिला बाद में शुरु हुआ , 500 के नोट तो आरबीई के पास थे ही नहीं और 2000 के नोट थे भी तो वो बहुत ही कम थे, यही वजह थी कि पूरा देश नोटबंदी के तीन महीने बाद तक करंसी को तरसता रहा।

नोटबंदी के पीछे है ये गड़बड़ घोटाला

नोटबंदी को लेकर एक आरटीआई के बाद जो खुलासा हुआ है वो अब मोदी सरकार की नियत पर भी सवाल उठा रहा है, नाबार्ड द्वारा एक आरटीआई में दी गई जानकारी के मुताबिक नोटबंदी के दौरान 10 जिला सहकारी बैंकों में सबसे ज्यादा नोट बदले गए, उनके अध्यक्ष भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के नेता हैं। नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) द्वारा दिए गए आरटीआई के जवाब के अनुसार देश के 370 डीसीसीबी में 10 नवंबर से 31 दिसंबर, 2016 के बीच 22,270 करोड़ रुपए की राशि के 500 और 1000 रुपए के नोट जमा हुए।

• 370 सहकारी बैंकों में जमा हुई 22,270 करोड़ रुपए की राशि का 18.82 प्रतिशत यानी करीब 4,191.39 करोड़ रुपए उन 10 बैंको में जमा हुए, जिनके अध्यक्ष विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक इनमें से 4 बैंक गुजरात, 4 महाराष्ट्र, 1 हिमाचल प्रदेश और 1 कर्नाटक के हैं।

• इन बैंकों की सूची में सबसे ऊपर अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (एडीसीबी) है, जिसके निदेशक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और अध्यक्ष भाजपा नेता अजयभाई एच पटेल हैं। इस बैंक में नोटबंदी के दौरान सर्वाधिक 745.59 करोड़ मूल्य के प्रतिबंधित नोट जमा किए गए। मतलब अब साफ साफ ये कहा जा सकता है कि जिन वजहों से नोटबंदी का कदम उठाया गया था उनमें से एक भी पूरा नहीं हुआ। ब्लैकमनी के स्रोत और बढ़ गए हैं। नोटबंदी को लेकर सरकार के सारे दावे गलत साबित हो रहे हैं। और आखिर में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नोटबंदी का फैसला किसी बड़ी आपदा से कम नहीं है

• नेपाल-भूटान में अटके पड़े हैं 3300 करोड़ रुपए

• नोटबंदी की वजह से सदियों से नेपाल और भूटान में चले आ रहे भारतीय करंसी नोट अब वहां अटके पड़े है कई रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों के मुताबिक इन दोनों पड़ोसी देशों के बैंकिंग सिस्टम में 500 और 1000 रुपए के नोटों के तौर पर 3300 करोड़ रुपए की भारतीय करंसी मौजूद है। अकेले नेपाल में 3200 करोड़ रुपए होने की बात सामने आई है,लेकिन ये पैसा अभी तक वही है और इसे लाने के लिए ना ही सरकार की कोई दिलचस्पी दिखाई दे रही है

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