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जुलाई में मचेगी समूचे देश मे मार काट, सभी राज्यो में हालत हो सकती है बेकाबू!
महेश झालानी
अगर केंद्र सरकार ने अभी से कोई प्रभावी कदम नही उठाया तो जुलाई माह में समूचे देश मे मारकाट और हाहाकारी का अभूतपूर्व माहौल उतपन्न हो सकता है जिस पर काबू पाना बहुत दुष्कर कार्य होगा। प्रधानमंत्री के अलावा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को अभी से ऐसी रणनीति बनानी होगी जिससे हाहाकार का माहौल उतपन्न नही हो ।
सबको ज्ञात है कि लॉक डाउन की वजह से पूरी अर्थ व्यवस्था का बेड़ा गर्क हो चुका है। फैक्टरियां खुल तो गई है, लेकिन उत्पादन नही हो रहा है। उत्पादन हो रहा है तो खपत नही है । खपत हो रही है तो भुगतान नही आ रहा है। यही हाल दुकानों का है। खुल अवश्य गई है, लेकिन ग्राहक नदारद है।
कमोबेश यही हाल नौकरी पेशा लोगों का है । हर क्षेत्र में थोक भाव मे लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है। जो नौकरी में है, उनके सर पर धागे से तलवार लटकी हुई है कि कब नौकरी से निकाल दिया जाए। जिनकी नौकरी बरकरार है, उनके वेतन और भत्तो में जबरदस्त कटौती की जा रही है।
वैसे तो हर क्षेत्र में मातम पसरा हुआ है । लेकिन सबसे ज्यादा कबाड़ा पेपर इंडस्ट्री का हुआ है। रोज पत्रकार और गैर पत्रकारों की छटनी की जा रही है। संस्करण बन्द होते जा रहे है और व्यापार को समेट लिया गया है । सरकारी खानापूर्ति के लिए अखबारों की पीडीएफ फाइल ही दिखाई दे रही है । हकीकत में अधिकांश अखबार बन्द हो चुके है । संकट की इस घड़ी में फर्स्ट इंडिया ने पत्रकारों पर रहम का छाता खोल रखा है । उसने एक भी कर्मचारी की छंटनी नही की है।
सरकार ने बिजली, पानी तथा स्कूलों की फीस को तीन महीने के लिए स्थगित कर दिया था। जून के अंत मे तीन माह की मियाद पूरी हो जाएगी। जून के बाद बिल और स्कूल कॉलेजों की छह माह की फीस कैसे जमा होगी, इसका समुचित उत्तर किसी के पास नही है। स्कूल वाले नया सत्र प्रारम्भ होने के साथ ही तीन माह की बकाया तथा तीन माह की अग्रिम फीस जमा करने के लिए उतावले बैठे है। इन्होंने अभी से फीस वसूली का तकादा प्रारम्भ कर दिया है।
मैंने लॉक डाउन के शुरुआती दिनों में ही एक आर्टिकल के जरिये कहा था कि तीन महीने बाद मनेगा स्यापा। यह बात आज भी सौ फीसदी सच है। अपने आर्टिकल में मैंने उल्लेख किया था कि बिजली के बिल, पानी के बिल, ईएमआई तथा स्कूल/कॉलेज की फीस तीन माह स्थगित कर सरकार ने जनता को तात्कालिक राहत तो प्रदान करदी है। लेकिन सवाल यह उत्पन्न होता है कि तीन माह बाद जनता के पास पैसा आएगा कहाँ से जिससे वह इन सबका चुकारा कर देगी।
सारे उद्योग धंधे ठप्प पड़े है। दुकानों के ताले लगे हुए है। कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है। दिहाड़ी मजदूर जो पलायन कर गए है, वापसी के लिए उनके पास पैसे नही। ऐसे में वे वापिस आएंगे तो आएंगे कैसे ? मजदूरों को किराने, मकान किराए और दूध आदि का भुगतान भी करना है। इन हालातों में किसी के पास अल्लादीन का चिराग हाथ लगने वाला नही कि घिसा और चुका दिया सबका पैसा।
आर्टिकल में कहा गया कि अभी कोरोना से लड़ाई लड़नी है। लेकिन कोरोना से बड़ी लड़ाई तो आगे लड़नी है। सारी अर्थव्यवस्था ठप्प होने वाली है। उत्पादन पैंदे बैठेगा। हालत 2008 से भी बदतर होने वाले है। इसलिए शुल्क या किश्त स्थगित होने पर खुश होने की नही, स्यापा मनाने की जरूरत है।
लॉक डाउन के बारे में कोई निर्णय हो, उससे पूर्व प्रधानमंत्री को सभी मुख्यमंत्रियों और अर्थशास्त्रियों से इस समस्या पर मन्त्रणा कर कोई कारगर हल खोजना चाहिए। वरना सरकार के लिए जनता का क्रोध कोरोना विस्फोट से भी ज्यादा घातक सिद्ध हो सकता है।
प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मैंने सुझाव दिया था कि आपने जो 20 लाख करोड़ का जो पैकेज दिया है, उसका तात्कालिक कोई प्रभाव नही हुआ है । लोगों को पानी की आज जरूरत है और आपने कुआँ खोदने का भाषण दे डाला। बेहतर होता कि आप 75 करोड़ लोगो को (नाबालिग, दस लाख से अधिक वेतन पाने तथा उच्च श्रेणी के उद्योगपतियों को छोड़कर) 10 हजार प्रति व्यक्ति नकद राशि खाते में जमा करा देते तो समस्या का काफी हद तक हल निकल सकता था। इस पर कुल 7.5 लाख करोड़ रुपये सरकार को वहन करने होते।