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कोरोना के कारण भारत में छाई आजादी के बाद की सबसे गंभीर आर्थिक मंदी
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने मंगलवार को कहा कि भारत अबतक की सबसे खराब मंदी की स्थिति का सामना कर रहा है। उसने कहा कि आजादी के बाद यह चौथी और उदारीकरण के बाद पहली मंदी है जो सबसे भीषण है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के अनुसार कोरोना वायरस महामारी तथा उसकी रोकथाम के लिये जारी 'लॉकडाउन' से अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष में 5 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।
पहली तिमाही में विकास दर 25 फीसदी गिर सकती है
क्रिसिल ने भारत के जीडीपी (GDP) के आकलन के बारे में कहा, ' चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में 25 फीसदी की बड़ी गिरावट की आशंका है।' उसने कहा, 'वास्तविक आधार पर करीब 10 फीसदी जीडीपी स्थायी तौर पर खत्म हो सकती है। ऐसे में हमने महामारी से पहले जो वृद्धि दर देखी है, अगले तीन वित्त वर्ष तक उसे देखना या हासिल करना मुश्किल होगा।
चालू वित्त वर्ष में ग्रोथ रेट -6.8% का अनुमान
अब तक तीन बार आई मंदी का प्रमुख कारण कमजोर मॉनसून
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले 69 साल में देश में केवल तीन बार-वित्त वर्ष 1957-58, 1965-66 और 1979-80...में मंदी की स्थिति आई है। इसके लिये हर बार कारण एक ही था और वह था मॉनसून का झटका जिससे खेती-बाड़ी पर असर पड़ा और फलस्वरूप अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ। क्रिसिल ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कुछ भिन्न है, क्योंकि इस बार कृषि के मोर्चे पर राहत है और यह मानते हुए कि मॉनसून सामान्य रहेगा, यह झटके को कुछ मंद कर सकता है।
25 मार्च को पहले लॉकडाउन की शुरुआत
प्रवृत्ति के अनुसार इसमें वृद्धि का अनुमान है। कोरोना वायरस महामारी और उसकी रोकथाम के लिये 'लॉकडाउन' से आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। सबसे पहले 25 मार्च से देशव्यापी बंद की घोषणा की गयी। बाद में इसे तीन बार बढ़ाते हुए 31 मई तक कर दिया गया। क्रिसिल के अनुसार, 'चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही सर्वाधिक प्रभावित हुई। न केवल गैर कृषि कार्यों बल्कि शिक्षा, यात्रा और पर्यटन समेत अन्य सेवाओं के लिहाज से पहली तिमाही बदतर रहने की आशंका । इतना ही नहीं इसका प्रभाव आने वाली तिमाहियों पर भी दिखेगा। रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों को कामकाज मिला हुआ है।'
रेड जोन में रिकवरी में लगेंगे ज्यादा समय
उन राज्यों में भी आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक प्रभावित रह सकती हैं जहां कोविड-19 के मामले ज्यादा हैं और उससे निपटने के लिये लंबे समय तक बंद जारी रखा जा सकता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने कहा कि इन सबका असर आर्थिक आंकड़ों पर दिखने लगा है और यह शुरुआती आशंका से कहीं अधिक है। मार्च में औद्योगिक उत्पादन में 16 फीसदी से अधिक की गिरावट आयी, अप्रैल में निर्यात में 60.3 फीसदी की गिरावट आयी और नये दूरसंचार ग्राहकों की संख्या 35 फीसदी कम हुई है। इतना ही नहीं रेल के जरिये माल ढुलाई में सालाना आधार पर 35 फीसदी की गिरावट आयी है।
भारत में लॉकडाउन के प्रावधान ज्यादा कड़े
देश में अबतक 68 दिन का 'लॉकडाउन' हो चुका है। एस ऐंड पी ग्लाोबल के अनुसार एक महीने के 'लॉकडाउन' से पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में सालाना जीडीपी में औसतन 3 फीसदी की कमी आने का अनुमान है।, चूंकि भारत में एशिया के अन्य देशों की तुलना में बंद की स्थिति अधिक कड़ी है, ऐसे में आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव अधिक व्यापक होगा। एस ऐंड पी ग्लोबल की अनुषंगी क्रिसिल का अनुमान है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर में 2020-21 में 5 फीसदी की गिरावट आएगी।
कृषि के मोर्चे पर राहत की खबर
क्रिसिल के अनुसार इससे पहले 28 अप्रैल को हमने वृद्धि दर के अनुमान को 3.5 फीसदी से कम कर 1.8 फीसदी किया था। उसके बाद से स्थिति और खराब हुई है। हमारा अनुमान है कि गैर-कृषि जीडीपी में 6 फीसदी की गिरावट आएगी। हालांकि कृषि से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है और इसमें 2.5 फीसदी वृद्धि का अनुमान है। सरकार के 20.9 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज बारे में क्रिसिल ने कहा कि इसमें अर्थव्यवस्था को राहत देने के लिये अल्पकालीन उपायों का अभाव है लेकिन कई महत्वपूर्ण सुधार किये गये हैं, जिनका असर मध्यम अवधि में देखने को मिल सकता है।