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संभावित नफा और नुकसान वित्तीय वर्ष बदलने का, मध्यम वर्ग को सीधे लाभ देने की संभावित योजना
मनीष कुमार गुप्ता
वित्तीय वर्ष बदलना और उस से जुड़ी हुई आयकर में राहत मोदी सरकार के लिए एक ऐसा हेलीकाप्टर शॉट है जिसको उसे जरूर लगा लेना चाहिए . यह वह दांव है जिससे भाजपा अपने परंपरागत मध्यम वर्ग को बेहद आसानी से सीधे-सीधे लाभ पहुंचा सकती है. विश्वस्त सूत्रों द्वारा ऐसी जानकारी प्राप्त हो रही है कि मोदी सरकार इस बार के बजट में या अगले एक माह में भारत का वित्तीय वर्ष बदल सकती है जिसमें सरकार द्वारा अप्रैल से मार्च के स्थान पर जनवरी से दिसंबर वित्तीय वर्ष करने की संभावना है. जैसा की हम जानते हैं यह लोकसभा चुनावों का वर्ष है और चुनावों की घोषणा होनी बाकी है ऐसे में मोदी सरकार के पास पूरा मौका है कि देश में इतने आमूल चूल सुधार किए जाएं जिससे कि विकास की राष्ट्रगाथा लिखी जा सके.
अगर मोदी सरकार अपना अगला वित्तीय वर्ष जनवरी से दिसंबर कर लेती है तो यह वित्तीय वर्ष 9 महीने यानि अप्रैल 2019 से दिसंबर 2019 तक का होगा. और इसके साथ अगर मोदी सरकार यह घोषणा कर देती है कि वित्तीय वर्ष के छोटा होने पर भी इनकम टैक्स की छूटों को आनुपातिक रूप से काम नहीं किया जायेगा अर्थात 2.5 लाख की कर मुक्त आय और सेक्शन 80 की डिडक्शन में आनुपातिक रूप में कमी नहीं की जाएगी. इससे मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के व्यक्तियों और हिन्दू अभिवाजित परिवार के करदाताओं को भारी लाभ होगा. उनका इनकम टैक्स सीधे सीधे लगभग आधा या उस से भी कम रह जायेगा. ऐसे व्यक्तियों का TDS काफी कम कटेगा या एडवांस टैक्स कम जमा करना होगा हालांकि यह लाभ निजी कंपनियों, पार्टनरशिप फर्म या अन्य को नहीं मिलेगा.
वित्त वर्ष का इतिहास और समस्याएं
लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी यह परंपरा अंग्रेजों ने सन 1867 में प्रारंभ की थी उस समय की बात है जब अंग्रेज देश पर राज्य कर रहे थे. उससे पहले तक हमारे देश में वित्तीय वर्ष विक्रम संवत से चलता था और व्यापारियों की पुस्तकें दिवाली से दिवाली तक की लिखी जाती थी. यह तरीका हमारे देश की कृषि के फसलों के अनुसार था और बेहद वैज्ञानिक था जो धार्मिकता का लबादा ओढ़े हुए था जबकि अंग्रेजों ने बिना सोचे समझे सिर्फ अपनी सुविधाओं के लिए वित्त वर्ष को बदल डाला था. वर्तमान में लगभग समूचा विश्व इस समय जनवरी से दिसंबर अर्थात कैलेंडर ईयर इस्तेमाल करता है जबकि भारत में वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च तक माना जाता है हालांकि कोई भी व्यापारी अपनी पुस्तकों को कैलेंडर वर्ष के मुताबिक बना सकता है. लेकिन उसे आयकर, अन्य करों और अन्य उद्देश्यों के लिए लेखा पुस्तकें वित्तीय वर्ष के अनुसार भी बनाना आवश्यक है. ज्यादा समस्या अंतराष्ट्रीय व्यापार करने वालों को होती है क्योंकि अंतराष्ट्रीय कार्यों के लिए भी लेखा पुस्तकों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए उन्हें अपनी बैलेंस शीट और एकाउंट्स को जनवरी से दिसंबर वाले साल बदलना पड़ता है और इस काम में दिक्कत आती है.
आइए जानते हैं कि वित्त वर्ष बदलने से क्या क्या फायदे और बदलाव होंगे
जैसा कि हम जानते हैं वर्तमान प्रथा के अनुसार इस बार लेखानुदान पास होना है. हालाँकि ऐसे भी संकेत सरकार की ओर से मिले हैं कि सरकार पूर्ण बजट भी ला सकती है और नई सूचना के अनुसार वित्त मंत्रालय को अब पीयूष गोयल जी संभालेंगे और बजट भी वही पेश करेंगे तो ऐसे में उनके पास पूरा मौका है कि इस बार वित्त वर्ष को बदलें जिसका अर्थ यह होगा कि सरकार लेखानुदान की जगह पूरा बजट पेश करेगी जो कि मात्र 9 महीने का होगा और उनको वित्त वर्ष की वजह बताने का मौका मिल जाएगा. सरकारी मंत्रालयों और विभागों को सारे खर्च 31 दिसंबर से पहले करने पड़ेंगे। आयकर रिटर्न फाइल करने की तारीख भी बदल जाएगी और बजट पेश होने का समय भी बदल जाएगा.
सबसे पहले फाइनेंस एक्ट के द्वारा इनकम टैक्स में बदलाव होगा और वित्तीय वर्ष 2019 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न अप्रैल 2019 से दिसंबर 2019 तक यानि 12 महीने की जगह 9 महीने की भरी जाएगी. इसके अलावा सभी व्यापारियों, व्यवसायियों, कंपनी, फर्म आदि को अपनी बैलेंस शीट 9 महीने की बनानी पड़ेगी और कर छूट लेने के लिए तैयारी अगले साल मार्च की जगह दिसंबर में ही करनी होगी. जीएसटी में ज्यादा समस्या नहीं आएगी क्योंकि वह तो पहले में मासिक और त्रैमासिक भरी जाती है. सभी सरकारी विभाग जो किसी भी प्रकार की सालाना कर, शुल्क, ड्यूटी आदि बसूल करते हैं उन्हें अपनी व्यवस्था में बदलाव करना होगा जिसके लिए उनके पास समुचित समय है. जहाँ कोई कर फीस या शुल्क का भुगतान एडवांस में होता है वहां पर यह परिवर्तन अगले साल की और शिफ्ट हो जाएगा.
इसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में सरकार दिसंबर से पहले ही बजट की सारी रकम खर्च कर सकेगी और इस सेक्टर को लाभ होगा क्योंकि ज्यादातर फसलों की बुवाई नवंबर के आसपास ही होती है.
कारोबारियों को अपनी प्लानिंग में बदलाव करना होगा क्योंकि शुरु में ऑडिट, इनकम टैक्स और आर्थिक चिट्ठा से जुड़े भ्रम हो सकते हैं. क्योंकि जिस साल वित्त वर्ष जनवरी से शुरू होगा तो साल में 12 की बजाय 9 महीने के हिसाब से लेखा-जोखा तैयार करना पड़ेगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियों को इससे निश्चित रूप से लाभ होगा क्योंकि ज्यादातर देशों में वित्त वर्ष जनवरी से दिसंबर ही है और अकाउंटिंग का समय एक जैसा होने से बहुराष्टीर्य कंपनियों को तिमाही नतीजे के साथ कंसोलिडेटेड वार्षिक नतीजे पेश करने में आसानी हो जाएगी और दोनों देशों के लिए वही रिजल्ट्स काम आएंगे और यह सुविधा बढ़ने से भारत की Ease of doing business की रैंकिंग अच्छी हो जाएगी. अपने देश की अर्थव्यवस्था के आंकड़ों की दूसरे देशों के आंकड़ों से तुलना आसान हो जाएगी. रिसर्च के क्षेत्र में और शिक्षा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय जगत से तुलनात्मक अध्ययन अत्यंत ही आसान और उचित होगा यह अध्ययन न केवल आय और व्यय के मदों का होगा बल्कि विभिन्न प्रकार की और देशों की तुलनात्मक स्थितियों पर सही अध्ययन हो सकेगा.
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार