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एयर इंडिया की ब्रांडिंग और ब्रिटिश एयरवेज तथा साउथवेस्ट एयरलाइंस के टक्कर में लाने की कोशिश
अजिंक्य कावले
टाटा समूह के स्वामित्व वाले ‘सरकारी’ एयर इंडिया की रीब्रांडिंग चल रही है और यह एक पड़ाव पर पहुंचने वाला है। इससे पहले विमान सेवा ने इस महीने कई सारे बदलावों की घोषणा की है। इनमें एक नये फौन्ट से डिजाइन किया गया बिल्कुल नया लोगो जिसे, ‘द विस्टा’ कहा जाता है और खासतौर से डिजाइन किया गया फौन्ट (अंग्रेजी के अक्षरों के डिजाइन का एक नया समूह) शामिल है। इसे एयर इंडिया सैन्स के नाम से स्थापित किया गया।
एयरलाइन ने कहा कि आधुनिक नये ब्रांड की पहचान में एक निर्भीक नये भारत का सार समाहित है।
एक नया फौन्ट पेश किये जाने से एयर इंडिया कुछ अन्य वैश्विक एयरलाइन के वर्ग में आ गया है जो अपने खास टाइपफेस (फौन्ट या अक्षर का सामने वाला हिस्सा) को सपोर्ट करते हैं। इनमें ब्रिटिश एयरवेज और साउथवेस्ट एयरलाइंस उल्लेखनीय है। एयरलाइन ने एक बयान में कहा है कि नये फौन्ट में "आत्मविश्वास और गर्मजोशी का मेल है जो एयर इंडिया को प्रीमियम, इनक्लूसिव (समावेशी) और ऐसेसेबल (सुलभ) के रूप में स्थापित करने के लिए गर्मजोशी के साथ आत्मविश्वास" जोड़ा है।
राष्ट्रीय विमानसेवाओं के लिए फौन्ट जैसे ‘एयरलाइन पहचान’ अपेक्षित रूप से कुछ ऐसी चीज है जिसके बारे में हर किसी की एक राय होती है क्योंकि वे जहां भी उड़ान भरते हैं, देश के राजदूत के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी एयरलाइन की पहचान कराने वाली सबसे आम चीज लोगो का फौन्ट या टाइपफेस है। ज्यूरिख स्थित वैश्विक ब्रांड कंसलटेंसी एक्सेंट के अध्यक्ष और मुख्य रचनात्मक अधिकारी एडविन श्मिडहेनी ने कहा, “यह नाम बताता है और इसे हमेशा, सबसे पहले एक मजबूत छाप छोड़ना चाहिए।''
हालाँकि, पहचान बताने में इतनी सूक्ष्म भूमिका से परे, किसी ब्रांड के लोगोटाइप और समग्र पहचान के हिस्से के रूप में एक टाइपफेस स्थापित करना कई अन्य उद्देश्यों को पूरा करता है।
दिल्ली, गोवा और मुंबई जैसे शहरों में टाइपोग्राफी और अनुभव डिजाइन में विशेषज्ञता रखने वाली एक रचनात्मक कंपनी ब्रांड न्यू टाइप के सह-संस्थापक और कार्यकारी रचनात्मक निदेशक, आनंद नाओरेम ने कहा, "बड़े ब्रांड के लिए किसी फाउंड्री या किसी विशेष फौन्ट के निर्माता को वार्षिक लाइसेंस शुल्क का भुगतान करने की तुलना में कस्टम-निर्मित टाइपफेस के निर्माण का कमीशन देना अधिक किफायती है।"
एजेंसियां, टाइपोग्राफर और टाइपफेस डिजाइनर एक कठिन रचनात्मक प्रक्रिया के बाद फौन्ट का एक परिवार या समूह तैयार करते हैं और अपने ग्राहकों से विकास शुल्क लेते हैं। शर्तों को स्पष्ट करने के लिए टाइपफेस के डेवलपर और क्लाइंट के बीच एक समझौते या अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाते हैं। नाओरेम ने सुझाव दिया कि ग्राहक टाइपफेस के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार हासिल करने के लिए डेवलपर के साथ एक समझौता करके वार्षिक लाइसेंस शुल्क से छुटकारा पा सकते हैं।
“एक छोटे टाइपफेस के लिए, विकास लागत 20 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक जा सकती है और जटिल स्क्रिप्ट के लिए कुछ करोड़ रुपये की आवश्यकता हो सकती है। ब्रांडन्यूटाइप के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक, सिद्धार्थ लॉयल ने कहा, फौन्ट के लिए बौद्धिक संपदा (आईपी) प्राप्त करने की लागत फाउंड्री से फाउंड्री में भिन्न होती है।
नाओरेम ने कहा कि अंतर्निहित बौद्धिक संपदा अधिकार फौन्ट बनाने वाले व्यक्ति के पास है। एक विशिष्ट अनुबंध की शर्तें बाद में ग्राहक को अधिकार हस्तांतरित करती हैं।
श्मिडहेनी ने कहा, “खास-डिज़ाइन में स्वामित्व वाला फौन्ट बनाना अक्सर रीडिज़ाइन प्रोग्राम का हिस्सा होता है, लेकिन यह कई डिज़ाइन तत्वों में से एक है। लोगो डिज़ाइन, जो अक्सर एक अद्वितीय लेटरफॉर्म पर आधारित होता है, अगर स्वामित्व वाले फौन्ट से किया जाये तो सभी लिखित संचार के चरित्र को बढ़ाने में मदद कर सकता है। और चूंकि कंपनी इसकी मालिक है, इसलिए फ़ॉन्ट के लिए कोई अतिरिक्त लाइसेंस शुल्क देय नहीं है।”
इसके अलावा, टाइपफेस में मेटा-डेटा एमबेड किया हुआ है। इससे दुरुपयोग की स्थिति में इसके मालिक को पहचान की एक परत प्रदान हासिल होती है।
“मेटा-डेटा जैसे आईपी, मालिकों के नाम और इसके रचनाकारों के नाम टाइपफेस के भीतर एम्बेडेड हैं। दुरुपयोग के मामले में यानी ग्राहक की अनुमति के बिना उसके फौन्ट का उपयोग कानूनी नोटिस को आमंत्रित कर सकता है क्योंकि व्यक्ति के पास इसका उपयोग करने के लिए पर्याप्त अनुमति नहीं है। दूसरी ओर, कोई भी कंपनी खास तौर से निर्मित अपने पूर्ण स्वामित्व वाले फौन्ट का दुरुपयोग करने के लिए किसी पर मुकदमा कर सकती है, जब उसे बॉट्स द्वारा सतर्क किया जाता है तो वह ट्रैक करता है कि फौन्ट का डिजिटल रूप से उपयोग कहां किया जाता है,” नाओरेम ने चेतावनी दी।
एक नया टाइपफेस बनाने की पूरी रचनात्मक प्रक्रिया में ग्राहक के संक्षिप्त विवरण को समझना, काम का दायरा निर्धारित करना, एक फॉन्ट के रफ स्केच बनाना और अंततः एक संपूर्ण टाइपफेस तैयार करना शामिल है।
“यह अनुशासन विज्ञान और कला के बीच एक संतुलन है। किसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि फौन्ट पढ़ने योग्य है और इसका उपयोग मोबाइल, वेब और प्रिंट जैसे विभिन्न माध्यमों में किया जा सकता है। नाओरेम ने कहा, एक फौन्ट परिवार बनाने की मानक समय सीमा छह से आठ महीने तक होती है।
श्मिडहेनी ने कहा, परिणामस्वरूप, एक खास तरह का फौन्ट ब्रांड को प्रतिस्पर्धा से अलग करने में मदद करता है और ब्रांड के चरित्र या विशिष्ट संस्कृति को व्यक्त करता है। इसके अलावा, कस्टम फ़ॉन्ट में निवेश करना केवल एक रचनात्मक निर्णय नहीं है। यह बाज़ार में प्रतिष्ठा और प्रतिस्पर्धा का मामला है।
“यह सिर्फ एक विपणन निर्णय नहीं है, यह (एक ब्रांड के लिए) एक व्यावसायिक निर्णय है। यह सभी हितधारकों को एक साथ लाने के बारे में है,” लॉयल ने कहा।
श्मिडहेनी ने कहा, "जब अच्छी तरह से किया जाता है, तो टाइप डिज़ाइन पर अक्सर किसी का ध्यान नहीं जाता है, लेकिन जब बहुत बुरी तरह से किया जाता है, तो यह एक दुखते अंगूठे की तरह सामने आता है।"
कुल मिलाकर, री-ब्रांडिंग प्रक्रिया के तहत एयर इंडिया के नए फॉन्ट और लोगोटाइप की घोषणा को सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है।
श्मिडहेनी ने आगे कहा, “एयर इंडिया का पुराना लोगो ऐसा लगता था जैसे यह बिल्कुल अलग युग का हो, बहुत भारी और औद्योगिक, तथा विशेष रूप से दूर से पढ़ने में कठिन (जो अक्सर टरमैक पर विमान के मामले में होता है)। नया लोगोटाइप अधिक परिपक्व है और इसमें अधिक विशिष्ट चरित्र है। जहां तक एयर इंडिया सैन्स फॉन्ट का सवाल है, इसे कैसे लागू किया जाएगा, यह इसकी सफलता तय करेगा”।