द मेकिंग आफ अमेरिका, द ब्रेकिंग आफ इंडिया

Special Coverage News
2023-10-11 05:03:20

द मेकिंग आफ अमेरिका,

द ब्रेकिंग आफ इंडिया ...

कहानी है गिल्डेड एज की। वाण्डरबिल्ट, कार्नेगी, और रॉकफेलर की। जो मामूलीयत उठकर बने दुनिया के सुपर रिच।

और इस क्रम मे अमेरिका को अपने पैरो पर खड़ा कर दिया।

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अमेरिका के बनने, और भारत के बिगड़ने मे निजी उद्योंगो की भूमिका को समझना, बड़ा दिलचस्प है। वाण्डरबिल्ट के पिता की एक नौका थी। न्यूयार्क मे सवारी ढोते थे। उसने मां से 100 डॉलर उधार लिए। एक नाव खरीदी, एक्स्ट्रा सीट फिटिंग कराई।

सस्ती टिकट और,ज्यादा फेरे, और सिर्फ एक रूट पर फोकस। उस रूट के सारे कस्टमर तोड़ लिए। दूसरे काम्पटीटर्स को खरीद लिया। फिर दूसरा रूट, और तीसरा। 25 की उम्र मे वह न्यूयार्क का सबसे सबसे बड़ा फेरी ऑपरेटर था। अब उसने एक बड़ा शिप लिया। पूरे अमेरिका मे माल और सवारी ढोने लगा।

सेम टेक्नीक, सस्ती दर, ज्यादा कैपेसिटी ..

थके कम्पटीटर बरबाद हो गए। उनको भी खरीदकर, वाण्डरबिल्ट सबसे बड़ा शिपिंग लाइनर बन गया। बेहद रिच .. फिर एक दिन सारी शिपिंग बेच दी। अब एक रेलरोड कंपनी खरीद ली। रेल नया ट्रांसपोर्ट मॉडल थी, फ्यूचर था। सस्ता.. और समुद्र-नदियों से दूर भी कारगर। अगले 15 साल मे उसने अमेरिका के कोने कोने मे रेल बिछा दी। सस्ती दरें, ज्यादा बस्तियों तक पहुंच, काम्पटीशन क्रश्ड, वो सबसे बड़ा रेल नेटवर्क बन गया।

अमेरिका की शिपिंग, और पूरा रेलवे ... वाण्डरबिल्ट ने खड़ा किया है। न्यूयार्क का ग्रांड सेन्ट्रल स्टेशन सहित 70% रेल लाइन, रेल्वे स्टेशन, हजारों ब्रिज। मेरिका का पूरा ट्रांसपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर, वाण्डरबिल्ट की देन है।  और एण्ड्रयू कार्नेगी की भी।

एंड्रयू कार्नेगी, आयरिश इमिग्रेंट था। जो बाप के साथ एक कॉटन मिल मे काम करता। फिर एक रेलरोड कंमनी जॉइन कर ली।

25 की उम्र मे डिवीजन हेड बन गया, मालिक का चहेता।

लेकिन जल्द ही नौकरी छोड़ी। रेलरोड ब्रिज बनाने का ठेका लेने लगा। रेल बढ़ रही थी, तो ब्रिज चाहिए थे। रेल कम्पनी वाली पुरानी नौकरी के संपर्क से, उसने ठेके पाए।

कंपनी चल निकली।

तभी मिसीसीपी मे पुल बनाने का प्लान हुआ। ये अमेरिका का सबसे बड़ा ब्रिज होने वाला था। गहरी नही, अथाह पानी.. और लोहे का पुल।

आम लोहे का पुल कुछ ही बरसों में जंग खाकर गिर ही जाना था।

कार्नेगी ने स्टील यूज करने का तय किया। एक नई मिश्रधातु, जिसमे जंग नही लगता।

उसे खुद स्टील का कोई उसे ज्ञान न था। इसलिए तो ज्ञानियों को नौकरी दी। सस्ती स्टील बनाने की विधि निकाली। कर्जा वर्जा लिया और छोटी सी स्टील फैक्ट्री डाल ली।

स्टील का अविश्वसनीय ब्रिज बन गया। पर अब कार्नेगी का धंधा बदल गया। अब वह फुल टाइम स्टील प्रोड्यूसर बन गया।

कार्नेगी के रेलरोड संपर्क काम आने वाले थे। क्योकि स्टील फैक्ट्री, रेलरोड के किनारे लगती। लोहा-कोयला रेल से आता। फिनिश गुड्स रेल से जाते।

और प्रोडक्ट खरीदने वाली भी, मुख्यतः रेल कंपनी होती। उन्हे पटरी, पुल, स्टेशन हर चीज के लिए स्टील चाहिए था।

मगर स्टील ने स्थायी असर डाला निर्माण उद्योग पर। बड़ी बहुमंजिली इमारतें बननी शुरू हो गई, इस इस नए सस्ते स्टील की वजह से। करोड़ो को घर मिला, लाखों को जॉब ..

छोटे बस्तीनुमा शहर, चमचमाते बहुमंजिली इमारतो मे बदल गए।

एण्ड्रयू कार्नेगी रिच से सुपर रिच बन गया।

पर तीसरा खिलाडी इन दोनो का बाप था। जॉन डी रॉकफेलर। वो एक "नकली तेल" बेचने वाले ठग का बेटा था।

लेकिन बाप के उलट मेहनतकश था।

तब बिजली का अविष्कार हुआ न था। ढिबरी जलाने के लिए व्हेल का तेल उपयोग होता था। महंगा था। लेकिन अब एक नई चीज खोजी जा चुकी थी - रॉक आयल याने पेट्रोलियम।

जुआरी "तेल खोजते है", व्यापारी "तेल प्रोसेस करते है" - ये रॉकफेलर ने सोचा।

तेल शोधन की एक प्लांट लगाया। रेल रोड के किनारे, तेल मंगाता, साफ करता, केरोसिन बनाता, रेल से बिकने भेजता।

लेकिन तब तकनीक कमजोर भी - 40% तेल बरबाद होता। फेंक दिया जाता।

रॉकफेलर ने बरबादी रोकी।

केरोसिन के बाद जो बचा, उससे वैक्स, लुब्रिकेटिंग आयल, पेट्रोलियम जेली बनाई, उससे भी जो बचा- कोलतार बनाया, जो सड़क निर्माण का आधार हुआ। 

स्टेण्डर्ड आयल कंपनी ने केरोसिन को, खास लग्जरी की जगह आम लोगों की हाउसहोल्ड जरूरत बना दिया।

और रॉकफेलर बेहद अमीर हो गया।

(थक गए, तो पढना छोड़ दीजिए)

तो वाण्डरबिल्ट अब इस रॉकफेलर नाम के प्राणी से मिलना चाहता था।

वो रेलवे किंग, मास्टर ट्रांसपोर्टर था। रॉकफेलर का केरोसिन ढोने मे, एकछत्र ठेका चाहता था। रॉकफेलर मिला, भाड़े मे 30% डिस्काउंट लिया, और डील पक्की कर ली।

पर ये औकात से बड़ी डील थी।

जितना ढुलाई का ठेका दिया, प्रोडक्शन उसका आधा भी न था। रॉकफ़ेलर को नया धमाका करने की जरूरत थी।

(जारी)

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