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मसूद अज़हर से राजनैतिक फायदे लिए भारत ने पाकिस्तान और चीन की क्यों मानी शर्तें?

रवीश कुमार
4 May 2019 3:07 AM GMT
मसूद अज़हर से राजनैतिक फायदे लिए भारत ने पाकिस्तान और चीन की क्यों मानी शर्तें?
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इंडियन एक्सप्रेस में शुभाजीत रॉय की एक ख़बर है। आप पाठकों को यह ख़बर पढ़नी चाहिए। इससे एक अलग पक्ष का पता चलता है और इस मामले में आपकी जानकारी समृद्ध होती है। इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि अज़हर पर प्रतिबंध लगाने के लिए कब कब और क्या क्या हुआ।

भारत को मसूद अज़हर पर प्रतिबंध चाहिए था। इस पर भी अध्ययन कीजिए कि इस प्रतिबंध को हासिल करने के लिए भारत को सियासी लाभ के अलावा क्या मिला। बदले में भारत ने पाकिस्तान और चीन की जो बात मान ली, और ईरान से अपना नाता तोड़ा क्या वो करना चाहिए था। चुनाव जीतने के लिए यह सब किया गया या फिर भारत के लंबे हितों के लिए। रिपोर्ट के साथ मेरी भी टिप्पणी साथ-साथ है।

1 मई को अज़हर को ग्लोबल आतंकी की सूची में डाला गया। उसके 10 दिन पहले ही तय हो गया था कि इस बार हो जाएगा। चीन विरोध नहीं करेगा। कूटनीतिक प्रयासों का बड़ा हिस्सा न्यूयार्क में हुआ। सभी छह देशों के अधिकारी इसमें शामिल थे। इसके बहाने हर कोई अपना गेम खेल रहा था। भारत ने तो यही कहा था कि हम आतंक के सवाल पर मोलभाव नहीं करते हैं। लेकिन आगे की रिपोर्ट पढ़ने के बाद ख़ुद तय करें कि भारत ने मोल भाव किया या नहीं।

अज़हर पर बातचीत के लिए चीनी वार्ताकार पाकिस्तान पहुंचता है। चीन भारत को बताता है कि पाकिस्तान ने पांच शर्तें रखीं हैं। ये शर्तें थीं, तनाव कम हो, बातचीत हो, पुलवामा पर हमले को अज़हर से न जोड़ा जाए, कश्मीर में हिंसा न हो। भारत ने पाकिस्तान की शर्तों को नहीं माना।

इस बीच अज़हर को लेकर भारत की बेचैनी को चीन समझ गया। उसने अपनी तरफ से एक शर्त जोड़ दी। भारत से कहा कि वह बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट का समर्थन करे। 2017 में भारत ने विरोध कर दिया था। भारत का तर्क था कि पाकिस्तान और चीन के बीच जो गलियारा बन रहा है वह इसी बेल्ड एंड रोड का हिस्सा है। यह प्रोजेक्ट भारत की भौगोलिक संप्रभुता में दखल देता है क्योंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर से गुज़रता है।

अब इस गेम में चीन अड़ गया। चीन ने यह भी कहा कि वह पाकिस्तान को लेकर कोई स्टैंड नहीं लेना चाहेगा। भारत ने समझाया कि मसूद अज़हर तो सिर्फ एक व्यक्ति है। इसमें पाकिस्तान कहां आता है।

इस बीच आपरेशन बालाकोट होता है। पाकिस्तान भी जवाबी कार्रवाई करता है। विंग कमांडर अभिनंदन को वापस कर दिया जाता है। दोनों देशों के बीच तनाव कम हो जाता है। तनाव कम करने की पाकिस्तान की पहली शर्त पूरी हो जाती है। अब बाकी शर्तों पर बात होनी थी। पाकिस्तान नहीं चाहता था कि पुलवामा और कश्मीर में आतंकी गतिविधियों का ज़िक्र आए। भारत ने पहले मसूद अज़हर के खिलाफ प्रस्ताव पुलवामा के कारण ही बढ़ाया था।

अप्रैल के बीच में बेल्ड एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत आगे बढ़ती है। अमरीका ने चीन से कहा कि जल्दी फैसला करे वर्ना इस पर संयुक्त राष्ट्र में खुला मतदान होगा। चीन इसके लिए तैयार नहीं था।

भारत इधर तैयार हो गया कि वह चीन के बेल्ट एंड रोड के बारे में कोई बयान नहीं देगा मगर अपनी स्थिति से समझौता नहीं करेगा। जिस प्रोजेक्ट को भारत अपनी संप्रभुता में दखल मानता है उस पर बयान क्यों नहीं देगा भारत। क्या इसलिए कि इससे चुनाव नहीं जाता जा सकता है और मसूद अज़हर से चुनावी जीत का रास्ता साफ होता है।

इधर पाकिस्तान संकेत करता है कि उसे मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित होने से एतराज़ नहीं। क्योंकि उसकी बाकी शर्तें पूरी हो चुकी थीं। चीन और पाकिस्तान को लगा कि अज़हर पर प्रतिबंध से पाकिस्तान की स्थिति बेहतर होगी। संदेश जाएगा कि पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए गंभीर पहल कर रहा है। पाकिस्तान ने मसूद अज़हर के खाते सीज़ कर दिए हैं।

22 अप्रैल को अमरीका ने घोषणा कर दी कि भारत को ईरान से तेल आयात की छूट मिली हुई थी, वह 2 मई के बाद वापस ले ली जाएगी। भारत विरोध नहीं करता है। ईरान का साथ देने की बात नहीं करता है।

ईरान ही एक ऐसा देश था जो भारत को उसकी मुद्रा में तेल देता था। अमरीका ने कहा कि आतंक के मसले पर दिल्ली की मदद कर रहा है तो बदले में भारत ईरान पर प्रतिबंध की नीति का सपोर्ट करे। अज़हर के लिए भारत ने ईरान का साथ छोड़ दिया। 22 अप्रैल को विदेश सचिव विजय गोखले बीजिंग जाते हैं। दोनों देशों के बीच डील होती है। मसूद अज़हर से पुलवामा हमले को अलग कर दिया जाता है।

मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी तो घोषित किया गया। मगर इसलिए नहीं कि उसने भारत पर आतंकी हमला किया है। इसलिए कि उसके संबंध अल-क़ायदा से रहे हैं। तालिबान से रहे हैं।भारत इसे अपनी जीत बता रहा है। जीत के पीछे हुए मोलभाव को भारत से ही छिपा रहा है। अब अगर प्रधानमंत्री मोदी इसे तीसरी सर्जिकल स्ट्राइक बताएंगे तो लोगों को जाने का हक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावी लाभ के लिए पाकिस्तान ऐऔर चीन की शर्तें क्यों मानीं। गनीमत है कि ऐसी बातें हिन्दी अख़बारों में नहीं छपतीं और हिन्दी चैनलों पर नहीं बताई जाती। जनता अंधेरे में है। प्रधानमंत्री उसे टार्च दिखा कर सूरज बता रहे हैं।

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रवीश कुमार

रवीश कुमार

रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।

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