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- अपने देश में चिताएं...
अपने देश में चिताएं जला कर बांटी दुनिया को रोशनी !
जब दिल्ली और मुंबई जैसे देश के अहम महानगर कोविड से जूझ रहे थे और देश के बाकी हिस्सों में कोविड का प्रकोप बेहद कम था, उस वक्त जनवरी 2021 से मोदी सरकार ने विदेशों में भारत में बनी कोविड वैक्सीन भेजनी शुरू कर दी थी. वैक्सीन मैत्री के नाम से शुरू की गई दरियादिली की यह मोदी की योजना के लिए बनी सरकारी वेबसाइट के आंकड़े खुद बता रहे हैं कि अब तक लगभग साढ़े छह- सात करोड़ वैक्सीन दूसरे देशों में भेजी जा चुकी हैं. इनमें से एक करोड़ से ज्यादा वैक्सीन तो कूटनीति के तहत कई देशों को मुफ्त दी गई है.
मोदी सरकार की दरियादिली जैसे जैसे बढ़ती जा रही थी, वैसे वैसे भारत में भी दिल्ली और मुंबई से निकल कर मामले पूरे देश में फैलते जा रहे थे. आज हालात यह हैं कि दिल्ली गिड़गिड़ा रही है कि उसे 60 लाख वैक्सीन एक महीने में भी दे दो तो वह तीन महीने में पूरी दिल्ली को वैक्सीन लगा देंगे. यूपी जैसे 21 करोड़ की आबादी वाले प्रांत में महज साढ़े तीन लाख वैक्सीन अभी एक दो दिन पहले भेज कर मोदी सरकार ने इसका खूब डंका पीटा है.
सोच कर देखिए कि अगर मोदी सरकार यह छह सात करोड़ वैक्सीन विदेश न भेज कर दिल्ली, मुंबई जैसे केवल महानगरों / नगरों या प्रांतों में वैक्सिनेशन करवा देती, जहां उस वक्त कोरोना का प्रकोप था जो शायद आज देश में यह हाहाकार और इतनी मौतें न होती.
मगर मीडिया में मोदी सरकार की इस अक्षम्य गलती के लिए कहीं कोई सवाल नहीं पूछे जा रहे.. बल्कि यह कहा जा रहा है कि मोदी ने दुनिया को बांटा तभी आज दुनिया हमारी मदद कर रही है. मगर इन आंकड़ों को देखने के बाद क्या किसी की समझ में यह बात नहीं आ पा रही कि हमें तो मदद की जरूरत ही नहीं थी. हमारे पास खुद इतनी वैक्सीन थी कि हम अपने यहां इतनी मौतें होने से खुद ही बच सकते थे.
अमेरिका जैसी वैश्विक महाशक्ति ने अपने यहां स्पष्ट नीति रखी थी कि वह किसी को कोई वैक्सीन नहीं देगा, जब तक उसके सभी नागरिकों को वैक्सीन नहीं लग जाती. कनाडा, यूके और दुनिया का हर देश अमेरिका की तरह सिर्फ और सिर्फ अपने नागरिकों की चिंता पहले कर रहे थे. फिर मोदी ने भारत के सात करोड़ नागरिकों के हिस्से की वैक्सीन छीन कर दुनिया में क्यों बांटी? क्या उन्हें अपने नागरिकों के मरने की चिंता नहीं थी?
अभी तक जितने मारे गए और वैक्सीन लगने में देरी से जितने और मारे जाएंगे, उनकी हत्याओं का जिम्मेदार आखिर कौन है? मेरी समझ से तो वैक्सीन मैत्री को भारत के नागरिकों की हत्या का कार्यक्रम कहना ज्यादा उचित होगा. बाकी भक्तगण जैसा समझें, वैसा इसे नाम दें. भारतीय नागरिकों की सात करोड़ वैक्सीन छीन कर अगर विदेशों से मिल रही भीख और भारत की दुर्दशा पर तरस खा रही दुनिया की छवि इससे हासिल होने को वह मोदी की कूटनीति की कामयाबी मानते हैं तो उन्हें कुछ कह भी नहीं सकता...क्योंकि भक्त हैं वे.
मगर वैक्सीन उन्हें या उनके परिजनों को देर से मिले और कोरोना इसी तरह हाहाकार मचाता रहे तो मोदी की इस कूटनीति पर प्रशंसा के दो शब्द जरूर उनसे सुनना चाहूंगा...बाकी जिनके अपने मारे गए हैं, उनको भी जाकर इस कूटनीति की तारीफ अगर कर देंगे तो राष्ट्र पर यह एक बड़ा एहसान होगा भक्तों का...