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हिंदी माध्यम से 1 फीसदी छात्र यूपीएससी पास हुए हैं, लोगों का विरोध इसी आंकड़े से है
संजय झा
देश में लगभग 70 करोड़ आबादी हिन्दी बोलती अथवा समझती है। प्रतिशत देखें तो पचास फीसदी से भी अधिक लोग हिन्दी बोलते हैं। समझने का आंकड़ा हो तो वह कहीं अधिक होगा।
लेकिन दुर्भाग्य से हिंदी माध्यम से 1 फीसदी छात्र यूपीएससी पास हुए हैं। लोगों का विरोध इसी आंकड़े से है। लोगों का मानना है कि अंग्रेजी वाले इतना रिजल्ट क्यों दे रहे हैं। क्षेत्रीय भाषा से हर बार सफलता का प्रतिशत घटता क्यों जा रहा है?यह कुछ-कुछ वैसा ही साउंड करता है कि सवर्ण छात्र जनसंख्या में इतने कम है। रिजल्ट कैसे अधिक आ जा रहा है।?
आबादी के हिसाब से नौकरियों में प्रतिनिधित्व क्यों नहीं मिलता है? जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी क्यों नहीं होती है? तो ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए कि हर भाषा-बोली बोलने वाले की प्रतिशत के हिसाब से यूपीएससी भी रिजल्ट जारी करे? हिन्दी बोलने वाले लोग भले ही ग्रुप डी की तैयारी करने में सारा जीवन लगा दें मगर उन्हें यूपीएससी निकालने का सौभाग्य क्यों नहीं मिलना चाहिए?
न न कोई तर्क नहीं बस भावना की बात की जाए। देश भर में बीस हजार से भी अधिक बोलियां एवं भाषाएं हैं। हर भाषा एवं बोली से एक यूपीएससी का रिजल्ट होना चाहिए। जब तक यह समानता नहीं आ जाता यह क्रम चलते रहना चाहिये। भारत में चार लाख से भी अधिक जातियां-उपजातियां हैं। जब तक सरकारी नौकरियों में हर जाति-उपजाति को प्रतिनिधित्व नहीं मिल जाता, मेरिट को भूल जाना चाहिए। इस देश में मेरिट और मेहनत की बात करने वालों पर गोलियां बरसा देनी चाहिए। तभी देश तरक्की कर पायेगा। लोकतंत्र सफल माना जायेगा।