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हिन्दी भाषा में प्रतिशत की पुनर्बहाली का एक विनम्र प्रयास
- रंगनाथ सिंह
दिल्ली आने के साल भर बाद इंटर्नशिप के लिए जनसत्ता अखबार में जाने से पहले तक मुझे नहीं पता था कि प्रतिशत कठिन शब्द है और फीसद आसान है। कल एक मित्र ने बताया कि अब वो किसी की पाण्डुलिपि के संपादन के दौरान प्रतिशत की जगह फीसद प्रयोग करने लगी हैं। हम सबने स्कूल में भिन्न और प्रतिशत के सवाल इन्हीं नामों के साथ पढ़े थे। प्रति-शत पर-सेंट का सीधा अच्छा अनुवाद है। प्रति और शत दोनों हिन्दी में लोकप्रिय हैं। इन दोनों से जोड़-घटाकर बने कई शब्द लोकप्रिय हैं। प्रतिशत से प्रति-शत क्या है यह अवधारणा भी साफ हो जाती है।
भाषा का जातिगत शुद्धिकरण केवल वह नहीं करते जो अरबी-फारसी से हिन्दी में आए शब्दों को अछूत मानते हैं। भाषा का शुद्धिकरण वह भी करते हैं जो भारतीय इतिहास एवं संस्कृति से उपजे शब्दों को हिन्दी से बाहर रखने का अभियान चलाते हैं। भाषा का शुद्धिकरण वह भी करते हैं जो यह तय करते हैं कि हार्मफुल हानिकारक से आसान है!
अपने मित्र को जब मैंने कहा कि यह तो सेंसरशिप है तो उन्होंने नहीं माना। मेरा मानना है कि जिसे फीसद लिखना है लिखे, जिसे प्रतिशत लिखना हो लिखे। दोनों शब्द जिन्दा रहें। विभिन्न हिन्दी न्यूजरूम या प्रकाशनों में अंतिम निर्णय लेने वाले पदों पर बैठे सज्जन अपने सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों और वैचारिक परवरिश के आधार पर भाषायी सेंसर लागू करना बन्द कर दें तो बेहतर।
जिन्हें हिन्दी उतनी ही आती है जितने के दम पर वह हिन्दी में काम करके मोटी सैलरी वाली नौकरी ले सकें और फिर कह सकें कि वो तो अंग्रेजी के हैं, हिन्दी वाले तो चोगद होते हैं वो न्यूज रूम में तय करते हैं कि हिन्दी का कौन सा शब्द आसान है और कौन सा कठिन। ऐसे लोगों के अन्दर गहरी बैठी सांस्कृतिक हीनता ग्रन्थि और गुलामजहनियत को कोई इलाज नहीं है लेकिन इतना तो कहना ही होगा कि ऐसे लोग जहनी तौर पर बीमार हैं।