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- 2011 में लिखी एक कविता...
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सूखे पत्ते का ज़मीन पर गिरना
हवा का शाख़ों से टकराना
चिटख़ना कली का
फड़कना चिड़िया के पंखों का
पानी का बजरीले किनारों को छू कर लौटना
अंतरिक्ष के इस कोने से उस कोने तक
ऐसी तमाम आवाज़ें --
सुनो इनको
ये कहती हैं
ज़िंदगी की अनगिनत कहानियाँ
और समझो फ़र्क़
पीपल और नीम के पत्तों के गिरने के बीच
दरीचों और दरवाजों से हवा के टकराने के बीच
गुलाब और नागफनी की कलियों के बीच
गौरैया और चील के पंखों की फड़कन के बीच
और ऐसी किन्हीं भी दो आवाज़ों के बीच।
कि, हर आवाज़ की
तारीख़े दास्तान अलग होती है
और ये सभी दास्तान बाहर ही नहीं,
हमारे अन्दर भी होती हैं !
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Desk Editor
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