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बहुत दिनों बाद पूण्यप्रसून बाजपेयी का मोदी सरकार से बड़ा सवाल?
कोरोना की नई लहर से हर तरफ तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है। तो वहीं दूसरी तरफ देश में वेस्ट बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरला चुनावों को लेकर एग्जिट पोल का दौर चल रहा है। ऐसे में वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर कर मोदी सरकार पर तंज कसा है। पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी वीडियो में सवाल करते नजर आते हैं- 'लाशों पर सवार होकर लोकतंत्र की सवारी कैसे की जा सकती है?' इस वीडियो को शेयर करते हुए वह कैप्शन में लिखते हैं- लोग मरते रहे वो चुनाव लड़ते रहे।
पत्रकार बाजपेयी वीडियो में कहते दिखते हैं- 'मौत के मुंह में इस देश के नागरिकों को धकेल कर लोकतंत्र को जिंदा कैसे रखा जा सकता है? शहर दर शहर, शव दर शव इनको नंगी आंखों से देखते हुए जिनका काम इनको बचाने का है, लेकिन उन सारी परिस्थितियों को नरसंहार की स्थिति में धकेल कर अगर नारे लगने लगें कि लोकतंत्र का मतलब चुनाव है और चुनाव में जनता ही तो वोट डालती है, वही तो अपने नुमाइंदे को चुनती है।
उन्होंने आगे कहा- 'इस देश के भीतर में हर चुनावों के दौरान प्रचार की जो रकम होती है, किसी एक उम्मीदवार की, अगर उस रकम को भारत की मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ दिया जाए और एक के बाद एक चुनाव में होते खर्च की सारी रकम को जोड़ दिया जाए, देश के कैबिनेट मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक जो चुनाव प्रचार की यात्रा में लगे थे, अगर उस रकम को जोड़ दिया जाए तो यकीन मानिए भारत के भीतर में कोरोना महामारी से मरने वालों की जो संख्या है वो- ऑक्सीजन की कमी, वैक्सीन की कमी, दवाइयों का न मिल पाना वेंटिलेटर न होना, अस्पताल में बेड न होना, और अस्पताल भी न होना ये सब सारी चीजें बीते 365 दिनों में पूरी की जा सकती थीं।'
प्रसून बाजपेयी के इस पोस्ट को देख कर कई लोगों के रिएक्शन सामने आने लगे। सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा- सवाल ये है कि इलेक्शन में जनता के लाखों करोड़ों रुपए बर्बाद क्यो किया जा रहा है? आज वैक्सीनेशन फ्री नहीं किया जा रहा। मगर रैलियां और कैंपेनिंग पर लाखों रुपए बहाए जा रहे हैं। क्यों?
उमेश शर्मा नाम के यूजर ने लिखा- आदरणीय बाजपेयी जी, बिल्कुल सही कहा आपने। और भी भयावह स्थिति उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव के दौरान आ रही है जहां 135 शिक्षकों एवं अन्य की संक्रमण से मृत्यु चुनाव कार्य के दौरान हुई है। भोगी+आयोग पर कार्रवाई होनी चाहिए। कहां है वो संज्ञान लेने वाले?
नीरज अग्रवाल नाम के एक यूजर ने पहले यूजर को जवाब देते हुए कहा- शायद आपको यह मालूम नहीं है कि पंचायत चुनाव सरकार की मर्जी से नहीं बल्कि हाईकोर्ट के आदेश पर करवाने पड़े हैं। सरकार तो कोरोना के कारण चुनाव के लिए तैयार ही नहीं थी।