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आखिर मोदी ने सरदार पटेल स्टेडियम का नाम क्यों बदला - ज्ञानेन्द्र रावत
बीते दिनों गुजरात के अहमदाबाद में सरदार पटेल स्टेडियम के नाम बदले जाने की घटना देश के इतिहास की विलक्षण एवं अविस्मरणीय घटना है। दलितों की नेता बहिन मायावती के बाद यह पहला मौका है जब किसी नेता के जीवित रहते किसी नेता के नाम किसी स्मारक, पार्क या किसी मैदान का नामकरण हुआ हो। खासकर वह भी किसी प्रधानमंत्री के नाम पर। इसीलिए यह ऐतिहासिक घटना है। वह भी इसलिए कि यह घटना भारत के भाग्य विधाता, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के मंदिर के निर्माण के पुरोधा और मां गंगा के असली पुत्र होने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के नाम के साथ जुडी़ है। ऐसी ही घटना तो जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर और ईराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन के साथ जुडी़ है क्योंकि उन्होंने भी ऐसा ही किया था, इसीलिए यह और चर्चा का विषय बना हुआ है।
हुआ यह कि बीती 24 फरवरी को अहमदाबाद में लौहपुरुष व देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल के नाम से विख्यात मोटेरा स्टेडियम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक भव्य समारोह में अपने नाम से नरेन्द्र मोदी स्टेडियम कर दिया।
गौरतलब है कि यह इसलिए भी चर्चा का विषय है कि प्रधानमंत्री मोदी खुद यह कहते नहीं थकते कि सरदार पटेल उनके आदर्श हैं। असलियत यह भी है कि वह उनके नाम की भव्य विशाल प्रतिमा भी लगवाते हैं। लेकिन उनके ही नाम वाले स्टेडियम का नाम अपने नाम क्यों करते हैं इसके पीछे की एक दिलचस्प कहानी है जो भाजपा कहें या इसके पूर्ववर्ती मूल संगठन जनसंघ की मातृ संस्था आर एस एस से जुडी़ है।। इसके लिए दोषी वह कांग्रेस को कोसते नहीं थकते हैं। दरअसल हुआ यह था कि 1948 में जब राष्ट्रपिता बापू की हत्या के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने गांधीजी की हत्या के बाद आर एस एस व हिन्दू महासभा के लोगों द्वारा खुशियां मनाने व मिठाइयां बांटने की जानकारी दी थी व इन संगठनों पर कडी़ कार्यवाही की जरूरत बतायी थी।।उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे पत्र में भी कहा था कि आर एस एस के लोग फासिस्ट और छोटी सोच के हैं और उस नफरत के माहौल को बनाने के जिम्मेदार हैं जिसके कारण गांधीजी की हत्या हुई। ये लोग सरकार और देश के लिए खतरा बन रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गुरू गोलवलकर को भी लिखा कि आर एस एस के भाषणों में सांप्रदायिकता का जहर भरा होता है। हिन्दुओं की रक्षा के नामपर मुसलमानों से नफरत की क्या जरूरत है। इसी की वजह से देश ने अपना पिता खो दिया। यही वह कारण रहा जिसकी वजह से यह लोग पटेल को अपना दुश्मन मानते थे। सरदार पटेल का नाम और उन्हें अपना आदर्श बताना तो केवल सत्ता प्राप्ति के लिए एक बहाना था और सत्ता प्राप्ति के बाद उन्हीं सरदार पटेल के गृह प्रदेश गुजरात में उनके नाम के स्टेडियम को अपने नाम करना उसी दुश्मनी की परिणिति थी।
जहां तक जीते जी अपने नाम से किसी स्मारक, मैदान का नामकरण करने का सवाल है, इस संदर्भ में वह यह भूल जाते हैं कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब मध्य प्रदेश ,जो अपने अस्तित्व में आने से पहले भोपाल रियासत था, में खोले जाने वाले पालीटैक्निक कालेज का नाम तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद ने उनसे यानी पंडित नेहरू के नामपर रखने का प्रस्ताव किया था, तब पंडित नेहरू ने मौलाना आजाद से कहा था कि -"या तो आप उसका नाम भोपाल पालीटैक्निक कालेज ही रखियेगा या फिर नाम ही रखना है तो फिर हाल ही में हमने अपने सबसे प्रिय साथी सरदार पटेल को खोया है, उस कालेज को उनका नाम दे दीजिए। मैं जीवित हूं और जीते जी अपने नामपर ही कोई संस्थान खोलूं ऐसा कैसे हो सकता है। बल्लभ भाई के प्रति उनका प्रेम और ऐसा दृढ़ निश्चयी सोच देखकर आनंद आ गया।" इसका उल्लेख जब भोपाल उस कालेज का उद्घाटन करने मौलाना आजाद आये थे तब उद्घाटन करते वक्त उन्होंने किया था। गौरतलब है कि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस शासन में नेताओं या विभूतियों के नामपर मूर्तियां न लगी हों, डिग्री कालेज, इंजीनियरिंग, मेडीकल कालेज, शोध संस्थान आदि अनेकों संस्थान न खोले गये हों, लेकिन वह नामकरण उन नेताओं-महापुरुषों की मृत्यु के बाद किया गया, उनके जीवित रहते ऐसा कुछ किया गया, उसका कोई उदाहरण नहीं मिलता।
गौरतलब है कि मोदी जी ने अयोध्या में राम मंदिर की आधार शिला कहें या शिलान्यास किया जबकि हकीकत यह है कि राम मंदिर तो लौह पुरुष कहे जाने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के ही संघर्ष का प्रतिफल है, उसमें मोदी जी का कोई योगदान नहीं है। जिन अटल बिहारी जी के व्यक्तित्व-कृतित्व के कसीदे पढ़ते वह थकते नहीं, उन्होंने भी जीते जी अपने नामपर किसी संस्थान का नामकरण नहीं किया। विडम्बना देखिए जिन भगवान राम के मंदिर का शिलान्यास करने वह अयोध्या गये थे, उन भगवान राम ने भी जीते जी अपने नाम का मंदिर नहीं बनवाया। इस बारे में कुछ भी कहा जाये यह इतिहास की अविस्मयणीय किन्तु अभूतपूर्व घटना तो है ही, इसे नकारा नहीं जा सकता।
बहरहाल यह देश वासियों के लिए गर्व की बात है । हो जो भी लेकिन है यह काबिले तारीफ है और यह भी कि देशवासियों के लिए 24 फरवरी का दिन महान दिवस के रूप में जाना जायेगा। यह कहावत बिलकुल सही है कि मोदी हैं तो सब मुमकिन है। यह देश के इतिहास में स्वर्णाच्छरों में लिखा जायेगा और आने वाली पीढी़ याद करेंगी कि हमारे देश का एक प्रधानमंत्री ऐसा भी था जो न केवल जगहों के नाम बदलता था, उनका नाम बदलकर अपने नामपर रखता था बल्कि विकास के लिए देश की संपत्ति यथा संस्थान, ऐतिहासिक किले, बस अड्डे, रेलवे, हवाई अड्डे, बंदरगाहों,को भी पूंजीपतियों के हाथों में बेचा करता था। अब तो अन्नदाता किसान की जमीन का नम्बर है। है ना विकास पुरुष का करिश्मा। असलियत तो यह है कि ऐसा विकास पुरुष देश की सत्ता पर दशकों रहे, युगों-युगों तक रहे,तभी इस देश का कल्याण संभव है अन्यथा ऐसी हिम्मत और किसी व्यक्ति में हो ही नहीं सकती। असलियत में यह देश का भाग्य नहीं बल्कि परम सौभाग्य है कि हमें ऐसा योग्य, कुशल, ईमानदार,सामर्थ्यवान, परिवार विहीन और महाभट विद्वान प्रधानमंत्री मिला है जो दावा करते नहीं थकता कि देश नहीं बिकने दूंगा। वह बात दीगर है कि सब कुछ धीरे-धीरे वह बेचता जा रहा है। इन हालात में वह दिन दूर नहीं जब देश की सारी संपत्ति पूंजीपतियों के हाथ में होगी। वह दिन भी देश का स्वर्णिम दिवस होगा। इसलिए देश की जनता को परमपिता परमात्मा का शुक्रगुजार होना चाहिए। जय हो देश की जनता की और भारत माता की.....।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)