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- मुसलमानों की बर्बादी...
माजिद अली खां, वरिष्ठ पत्रकार
रामनवमी पर निकले जुलूस के बाद बिहार में हुई हिंसा और एक ऐतिहासिक महत्व रखने वाला मदरसा अजीजिया और उसमें रखी नायाब सैकड़ों किताबें और कुरान की प्रतियों को जलाकर राख कर देने के बाद राजनीतिक दलों की गंभीर प्रतिक्रिया ना आने से बहुत से सवाल पैदा हो गये हैं। बिहार में चूंकि कथित सिकुलर दलों के गठबंधन की सरकार है इसलिए सवाल और गहरा हो जाता है कि आखिर भाजपा को कोसते हुए फिर किस मुंह से सिकुलर दलों की तारीफ की जाए जब गैर भाजपा दलों की सरकारों में भी व्यवस्था उसी तरह काम करती है जैसे सांप्रदायिक घोषित की जा चुकी भाजपा की सरकारें मुसलमानो के खिलाफ काम करती रहती हैं। यदि भाजपा के मुस्लिम मुक्त भारत बनाने के अभियान की आलोचना की जा सकती हैं तो फिर धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाले दलों को क्लीन चिट भी नहीं दी जा सकती।
केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी बड़ी तसल्ली से देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की ओर गामज़न है तो दूसरे दल उसके इस अभियान में दिलो जान से सहयोग करने में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। देश की दूसरे नंबर की बड़ी पार्टी और धर्मनिरपेक्षता के अलंबरदार होने का दावा करने वाली कांग्रेस जिसके शहजादे राहुल गांधी कुछ महीनों पूर्व ही भारत जोड़ो यात्रा निपटाकर बैठे हैं उसकी तरफ से भी दो तीन घटनाएं ऐसी हुई हैं जैसे वो भारत जोड़ो यात्रा नहीं बल्कि हिन्दू समुदाय जोड़ो यात्रा करके निपटे हों। कुछ दिनों पहले कांग्रेस पार्टी ने एक पोस्टर जारी किया था जिसमें किसी मुसलमान नेता को जगह नहीं मिली थी और उस पर हंगामे के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम नरेश ने ट्वीट कर गलती मान कर मामले को खत्म कर दिया था लेकिन कांग्रेस ने गलती सुधार कर कोई दूसरा पोस्टर भी जारी करने की हिम्मत नहीं जुटाई थी, इसका मतलब कांग्रेस में भी अंदरुनी तौर पर भाजपा के मुस्लिम मुक्त भारत अभियान और हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के सामने घुटने टेक दिए हैं।
पिछले सप्ताह राजस्थान में बम विस्फोट के आरोप में बंद कुछ मुस्लिम युवकों को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया तो राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कही जबकि वहां कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस के वरिष्ठ युवा नेता सचिन पायलट ने बाकायदा इस फैसले पर अफसोस जताया। बिहार में भी सत्तारूढ़ धर्मनिरपेक्ष दलों के गठबंधन में कांग्रेस शामिल है लेकिन हिंसक घटनाओं और मुसलमानो के भारी जानी व माली नुकसान पर पूरी पार्टी गूंगी बनी हुई है और दूसरे दल भी लगभग गूंगे ही हो गये हैं, जब कांग्रेस का हाल यह है तो क्षेत्रीय दलों की तो औकात ही नहीं क्योंकि सीबीआई और ईडी बड़ी सक्रियता से अपने काम पर लगी हुई हैं। यदि वाकई कांग्रेस और राहुल गांधी धर्मनिरपेक्षता को बढ़ाना चाहते हैं तो पार्टी स्तर पर इन बातों से बचना ही होगा। तो बात समझ में आई कि मुस्लिम मुक्त भारत अभियान में सिर्फ भाजपा ही शामिल नहीं है बल्कि सभी दल पूर्ण रूप से सहयोग दे रहे हैं और हिन्दू राष्ट्र की घोषणा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अब सवाल पैदा होता है कि राजनीतिक दल तो जो कर रहे हैं वह कर रहे हैं लेकिन मुस्लिम कयादत क्या कर रही है। एक हकीकत तो यही है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा की सरकार आने के बाद मुस्लिम राजनीतिज्ञ वैसे ही उदासीन हैं और वह भयभीत होकर घर बैठ चुके हैं और कमोबेश यही स्थिति धार्मिक रहनुमाओं की है कि वह भी अपने अपने निज स्वार्थ के चलते बोलने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहे। अब रहा मुस्लिम समाज और उनके संगठन तो दोनों की एक दूसरे से शिकायत बहुत हैं जो वाजिब भी हैं, संगठनों की शिकायत ज्यादा सही है क्योंकि मुस्लिम समाज के ना के बराबर लोग ही मुस्लिम तंजीमो से वास्ता रखे हुए हैं समाज की बहुसंख्या को किसी संगठन से लेना देना नहीं है इसलिए कोई संगठन किसी दबाव डालने के लायक ही नहीं है जबकि लोकतंत्र में जनसमर्थन से ही बड़ा दबाव बनता है और जब उन्हें जनसमर्थन नहीं मिलता तो वह भी ठंडे पड़े रहते हैं।
इस दशा में पूरा मुस्लिम समाज एक अजीब कैफियत में मुब्तिला होकर बेचैनी का शिकार हो रहा है दूसरी तरफ विरोधी लहर तेजी से बढ़ रही है और सरकारें और व्यवस्था अपनी शक्ति से मुसलमानो के हौसले तोड़ने में जी जान से मसरूफ हैं। इन सब हालात को देखते हुए यह भी नहीं कहा जा सकता कि एक बड़ा समुदाय मानसिक खुदकुशी कर ले बल्कि समाज के नौजवानों को अपने ढर्रे बदलने होंगे और अपनी एक कयादत खड़ी करनी होगी साथ ही कयादत का दावा ठोकने वाले नेताओं से तीखे सवाल भी करने होंगे जो किसी भी चुनाव के नज़दीक विभिन्न राजनीतिक संगठनों के भौंपू बनकर समाज को बरगलाने का काम शुरू कर देते हैं। हकीकत यह है कि यह लोग कयादत के लायक हैं ही नहीं सिर्फ मुसलमान अपने छोटे छोटे फायदों के लिए नेताओं के झांसे में आ जाते हैं और अपना वक्त, पैसा और कीमती वोट भी उन्हें सौंप देते हैं। मुस्लिम समाज को छोटी छोटी सभाएं करके मुहल्ले स्तर पर यह विमर्श करना होगा कि आने वाले कठिन समय की चुनौतियों का मुकाबला करना है या परंपरागत तौर तरीकों से गर्दन डाल देनी है। अपने अपने मुहल्ले में इत्तिहाद कायम करना होगा और अपनी प्रतिभाओं की कद्र भी करनी होगी।
हालांकि भाजपा ने अपने मुस्लिम मुक्त भारत अभियान के साथ साथ पसमांदा मुसलमानो का ऐसा कार्ड खेला है जिसके झांसे में कई पढ़े लिखे लोग भी आते दीख रहे हैं जबकि उन्हें समझ लेना चाहिए कि मुसलमानो को अछूत बना कर शुद्र बनाने के प्रयास से ज्यादा कुछ नहीं है। ये समय मुस्लिम समाज के लिए निर्णायक समय है इसलिए जितनी जल्दी इस पर गौर फिक्र शुरू हो जाए तो अच्छा है नहीं तो फिर अछूत बनने के लिए तैयार हो जाएं।