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अमर उजाला ने हिरासत में मौत की खबर नहीं दी, जांच का आदेश भी खबर नहीं है लेकिन एक हत्या की खबर टॉप पर
कल इतवार को मैं घर पर नहीं था, किसी और काम में व्यस्त रहा। रात में अखबार देखा तो संपादकीय लापरवाही का एक गंभीर उदाहरण अमर उजाला की खबर और शीर्षक में दिखा। इतवार के अखबारों में वैसे भी एक सी खबरें नहीं होती हैं औऱ किसे प्रमुखता देना है यह अखबार बनाने वाला ही तय करता है। इसमें यह तो चलता है कि प्रदूषण की खबर को कम महत्व दिया जाये पर 'आतंकी ढेर करने' और पुलिस हिरासत में मौत की खबरों की प्राथमिकता गड़बड़ा जाये तो रेखांकित करने वाला मुद्दा है। पाठकों के साथ-साथ पत्रकारिता के छात्रों और भविष्य के पत्रकारों के लिए भी। द टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार सेना "हिरासत में मौत" के मामले की उच्च स्तरीय जांच करेगी। यह खबर और भी अखबारों में है लेकिन अमर उजाला की खबर देखने के बाद मैंने सबसे पहले द टेलीग्राफ देखा।
दरअसल, हिरासत में मौत की खबर कल द टेलीग्राफ में भी नहीं थी। लेकिन आज उच्च स्तरीय जांच की खबर और उसके साथ घटना का विवरण द टेलीग्राफ ने ही अपनी लीड खबर के जरिये दिया है। मैं जो अखबार देखता उनमें अकेले, द टेलीग्राफ ने इस खबर को लीड बनाया है। अखबार की खबरों के अनुसार हिरासत में मौत के मामले में जिम्मेदारी को लेकर लोग नाराज हैं और सेना ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिये हैं। आज के दूसरे अखबारों को देखने से पहले मैंने अमर उजाला देखा, यह जानने के लिए कि जिन मौतों की खबर उसने दी ही नहीं उसकी जांच के आदेश की 'सरकारी' खबर वहां कैसे छपी है। अमर उजाला में कश्मीर में एक और आतंकी वारदात की खबर है। टॉप पर लगभग सात कॉलम की इस खबर का शीर्षक है, मस्जिद में घुसकर आतंकियों ने की पूर्व एसएसपी की गोली मारकर हत्या। उपशीर्षक भी है, बारामुला में दुस्साहस .... वारदात के समय अजान दे रहे थे 72 वर्षीय शफी, लगी चार गोलियां, हमलावरों की तलाश। नवोदय टाइम्स में इस खबर के शीर्षक का एक बिन्दु, निजी दुश्मनी के पहलू पर भी गौर कर रही है पुलिस - भी है।
इसमें गौर करने वाली बातें हैं, आतंकी ढेर लेकिन शव नहीं मिला (या वे ले गये) , अगले ही दिन दूसरी वारदात हो गई। इसे आतंकी वारदात नहीं लिखा गया है, निजी दुश्मनी का पहलू इसीलिए है। पुलिस-प्रशासन यह सब करे पर अखबार इसे क्यों प्रचारित करें और करें तो अपनी राय भी बतायें लेकिन वह सब अब नहीं होता है। आज लगभग सभी अखबारों में रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया की नवनिर्वाचित कमेटी को निलंबित किये जाने की खबर लीड है। इस खबर के राजनीतिक मायने चाहे जो हों, साफ है कि सरकार ने यह फैसला देश के जाने-माने पहलवानों के दबाव में लिया है। अब वह उनकी मांग सुनने या कार्रवाई का दिखावा कर रही है तो उसका मकसद चुनाव जीतना भी हो सकता है। फिर भी ज्यादातर अखबारों ने इस खबर को प्राथमिकता दी है। इंडियन एक्सप्रेस ने तो फ्लैग शीर्षक में ही बताया है कि यह कदम शिखर के पहलवानों के विरोध के बाद उठाया गया है।
ऐसे में खबर यह भी है कि ब्रजभूषण सिंह ने कहा है, कुश्ती हो ली अब लोकसभा चुनाव पर ध्यान दिया जायेगा। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस में दिल्ली में मीडिया को संबोधित करते हुए उनकी तस्वीर छपी है और लग रहा है कि दबदबा तो है। इससे पता चलता है कि पहलवानों के भारी विरोध के बावजूद ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए बेदाग बना दिया गया है। अब नई समिति को भंग करके पहलवानों के दबाब में आने, कुछ करते दिखने और चुनाव की तैयारियों में गंभीर व व्यस्त दिखने जैसे प्रयास और प्रचार शामिल हैं। फिर भी सभी अखबारों ने इसी खबर को लीड बनाया है। यह अलग बात है कि इसके कारणों को प्रमुखता से नहीं बताकर यह संदेश जाने दिया गया है कि आखिर सरकार ने कुछ किया। जो भले सच है मजबूरी ज्यादा लगती है। आइये पहले कुश्ती फेडरेशन से संबंधित तथ्यों को देख लें उसके बाद कश्मीर की खबरों की चर्चा करूंगा।
इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक में ही बताया गया है कि डब्ल्यूएफआई का कामकाज ब्रजभूषण सिंह के परिसर से चल रहा था, सांसद के आग्रह पर गोंडा में बैठक करने का पैनल का निर्णय अंतिम कारण बना। द हिन्दू ने लिखा है कि मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई की नई समिति को निलंबित किया तो बृजभूषण रिटायर हुए। टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड का शीर्षक है, सरकार ने नवनिर्वाचित डब्ल्यूएफआई को निलंबित किया, आईओए से आगे आने को कहा। खबर का इंट्रो है, स्पोर्ट्स कोड का उल्लंघन किया। पूर्व अधिकारियों द्वारा नियंत्रित था। द टेलीग्राफ का शीर्षक है, विरोध के बाद डब्ल्यूएफआई निलंबित। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है और शीर्षक है, सरकार ने कई उल्लंघनों के नाम पर डब्ल्यूएफआई को निलंबित किया। हिन्दुस्तान टाइम्स ने सरकारी कार्रवाई के तीन कारण बताये हैं। इनमें एक है बैठक में सेक्रेट्री जनरल प्रेम चंद लोचप का ही अनुपस्थित होना। किसी और अखबार के अनुसार उन्होंने चिट्ठी लिखकर इसकी शिकायत की थी। सेकेट्री के अनुपस्थित होने का कारण यह भी हो सकता है कि समिति पुराने कार्यालय (परिसर) से काम कर रही थी और इस कारण पूर्व पाधिकारियों के संपूर्ण नियंत्रण में थी।
आइये, अब कश्मीर की कल की वारदात, हिरासत में मौत की जांच के आदेश और इसकी सूचना से संबंधित खबरों की प्रस्तुति (पहले पन्ने पर) देखें।
1) हिन्दुस्तान टाइम्स
पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड, आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर के रिटायर पुलिस अधिकारी को अजान के समय गोली मारी। खबर में बाकी सब ब्यौरा है लेकिन कुछ हाइलाइट नहीं किया गया है।
2) द टेलीग्राफ
दो खबरें हैं। लीड का शीर्षक है, पुंछ की मौतों की जांच सेना करेगी। दूसरी खबर सिंगल कॉलम में है। इसका शीर्षक है, रिटायर पुलिस वाले की हत्या में आतंकवाद का अंदेशा।
3) टाइम्स ऑफ इंडिया
बारामुला में अजान के समय जम्मू और कश्मीर पुलिस के रिटायर एसपी की मस्जिद में गोली मारकर हत्या।
4) द हिन्दू
सेना द्वारा उठाये गये तीन लोगों की मौत पर जम्मू और कश्मीर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया।
5) दि इंडियन एक्सप्रेस
तीन असैनिकों की मौत : सेना ने सीओआई (कोर्ट ऑफ एनक्वायरी) का आदेश दिया, कमांड के लेवल में परिवर्तन की संभावना। इस खबर का उपशीर्षक है, पुलिस ने सुरणकोटे में एफआईआर दर्ज करवाई, वरिष्ठ अधिकारी पुंछ पहुंचे। अखबार ने इसपर संपादकीय भी लिखा है। इसमें कहा गया है कि इस आरोप की जांच होनी चाहिये और शासन का मतलब है, हत्या का कोई अपराधी बचना नहीं चाहिये। इसके साथ एक खबर है, मारे गये तीन लोगों में दो की पत्नियां गर्भवती हैं। दो ने सुरक्षा बलों के लिए काम किया था। अखबार ने इसके साथ पुंछ में आतंकी हमले में शहीद हुए चार सैनिकों के बारे में बताया है। इसमें कहा है कि दो युवा पिता हैं, एक 28 साल का और शादी से कुछ ही महीने दूर था।
कहने की जरूरत नहीं है कि इंडियन एक्सप्रेस ने इन खबरों को प्राथमिकता दी है तो इसका कारण है। लेकिन खबरें देने की स्थिति या उसका सच दूसरे अखबारों में दिख जाता है। अब तो मोहल्लों में भी दिख रहा है। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम की खबर है, प्रधानमंत्री 30 दिसंबर को अयोध्या में 15 किलोमीटर का रोड शो करेंगे। कल रात और आज सुबह मेरे मोहल्ले में "जय श्रीराम सुनाई" पड़ा तो पता चला कि 22 जनवरी को मंदिर के उद्घाटन का प्रचार है। एक तरफ कश्मीर में जो हो रहा है उसे अखबार ठीक से बता नहीं रहे हैं और दूसरी ओर मंदिर का प्रचार मोहल्ले में लाउडस्पीकर पर हो रहा है। निश्चित रूप से हम सपनों के भारत में जी रहे हैं, अमृतकाल चल रहा है। इसका भी वही होगा तो सोने की चिड़िया का हुआ। बाकी, हिन्दी पट्टी में समर्थन का कारण हिन्दी अखबारों का प्रचार तो हो ही सकता है। कश्मीर में आतंकवादी हरकत पर अमर उजाला का कल का शीर्षक देखिये और आज की खबर। दूसरी ओर, द हिन्दू की खबर का उपशीर्षक है, आतंकी हमले के बाद आठ लोगों को हिरासत में लिया गया था। इनमें से पांच अस्पताल में दाखिल हैं, तीन मारे गये। क्या हुआ होगा, समझना मुश्किल नहीं है। फिर भी आपको लगता है कि विकास हुआ है, कुछ बदला है तो आपको मुबारक।