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औरंगाबाद रेल हादसा, दुर्घटना या साजिश ? उस जगह ट्रैक एकदम सीधा था तो हार्न की आवाज और लाईट क्यों नहीं दिखी!
वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह के फेसबुक वाल से
रेल कर्मचारी की डायरी का यह हिस्सा मेरे पास व्हाट्सऐप्प से आया है। किसका लिखा है, पता नहीं। और रेल कर्मचारी का ही लिखा है यह भी पक्का नहीं है। लेकिन बातें सही लगती हैं। दुर्घटना के समय का पता मुझे नहीं था। इसमें चार बजे लिखा है लेकिन दुर्घटना सूर्योदय के आस-पास ही हुई है जब प्रकाश पूरा नहीं होगा और दूर से लाइट दिखने की बात भी सही है। पटरी पर ट्रेन कीआवाज होती है और कंपन के बावजूद सोए रह जाना सवाल खड़े करता है। हालांकि आखिर में कुछ अन्य उदाहरणों से महाराष्ट्र सरकार को लपेटने की कोशिश नहीं जम रही है। उसे मैंने हटा दिया है। पर सवाल तो हैं।
दुर्घटना या साजिश ?
16 लोग रेल पटरी पे कट के मर गए। हर कोई कहता है सो रहे थे। रेलवे ट्रैक को मैने बहुत नजदीक से देखा है। 9 साल तक ट्रैक पर चला हूँ। कभी पैदल तो कभी ट्रॉली से। मैं खुद ट्रैक इंजीनियर था। अपनी आंखो के सामने कई लोगो को रन ओवर होते हुए देखा हूँ। अपने स्टाफ को कटते हुए देखा हूँ।किंतु जब से ये औरंगाबाद की दर्दनाक घटना सुनी है, सारे सवालो का मैं जवाब नहीं ढूंढ पा रहा। माना कि वो अभागे मजदूर सुबह के लगभग चार बजे रेल लाईन पर पैदल चल रहे थे।
ट्रेन ड्राईवर ने कई बार हॉर्न बजाया। पर उनको सुनाई नहीं दिया। किंतु 4 बजे अंधेरा होता है भाई। हॉर्न नहीं भी सुने...पर ट्रेन के इंजिन की हेडलाइट इतनी तेज होती है कि सीधे ट्रैक पे 10 किमी दूर से दिख जाए। और जहाँ तक मेरी जानकारी है, उस जगह ट्रैक एकदम सीधा था। ना कोई कर्व और ना कोई ढलान। तो फिर क्या 16 के 16 मजदूरो को हॉर्न के साथ साथ इंजिन की हेडलाइट भी नहीं दिखायी दी ?
ये कैसा मजाक है !?
दूसरी संभावना कि मजदूर थक कर ट्रैक पर ही सो गए थे। 50 MM मोटे पत्थरों पर कुछ देर के लिए बैठ कर सुस्ताया तो जरूर जा सकता है। पर उनके ऊपर सोया नहीं जा सकता। वो भी इतनी गहरी नींद में। आपको बता दूँ कि जब पटरी पर ट्रेन 100 किमी की स्पीड में दौड़ती है तो ट्रेन के चलने से पटरी में इतनी जोर से वाइब्रेसन (कंपन) होते हैं कि 5-6 किमी दूर तक रेल पटरी कंपकंपाती है। चर्र चर्र की आवाज आती है अलग से।
तो यदि मान भी लू कि 16 मजदूर थक हार के रेल पटरी पे ही सो गए, तो क्या इनमें से एक को भी ये तेज कंपन और चर्र चर्र की कर्कश आवाज उठा ना सकी ? ये कैसा मजाक है ? दुर्घटना स्थल से खींचे गए फोटो बता रहे हैं कि ट्रैक के किनारे एकदम समतल जमीन थी। तो उस समतल जमीन को छोड़कर भला ट्रैक के पत्थरों पे कोई क्यू सोएगा ? ये कैसा मजाक है ?
कुछ मजदूर जो ट्रैक पर नहीं सोकर, जमीन पर सो रहे थे, वो बता रहे हैं कि ट्रेन के हॉर्न से उनकी आंख खुल गयी और उन्होने उन 16 मजदूरो को उठने के लिए आवाज दी। ये कैसा मजाक है कि हॉर्न की आवाज से इन तीन चार मजदूरो की तो आंख खुल गयी। पर उन 16 में किसी एक की भी नींद नहीं टूटी। ना हॉर्न से, ना लाइट से, ना पटरी के तीव्र कंपन से और ना पटरियों की कर्कश चर्र चर्र से !!
कही ये कोई साजिश तो नहीं ?