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राजनीतिक चौपाल: अब कहाँ है भाजपा का 'नारी सम्मान' ? रेपिस्ट हो रहे हैं 'आजाद'
बहरहाल मोदी जी को अवतार मान लिया गया है और उनके शब्द आकाशवाणी से कम नहीं हैं इसलिए जो बोल दें वही हकीकत है चाहे उनकी पार्टी रेपिस्टों को आजाद कर दे और चाहे निर्भया कांड में फांसी पर चढ़ा दें, देखना यह है कि पीड़िता का धर्म क्या है, अगर पीड़िता मुसलमान है और दोषी हिंदू धर्मावलंबी हैं तो फिर राष्ट्रवाद के चलते उन्हें ऐसा मुजरिम नहीं माना जा सकता जिसकी माफी ना मिल सके।
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल किले से लोगों को मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखा रहे थे उसी समय उनके राज्य गुजरात में एक चर्चित बिलकीस बानो बलात्कार केस में हाईकोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद काट रहे अपराधियों को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया और इसका आधार उनका अच्छा आचरण बताया, क्या कोई औचित्य है कि बलात्कार के आरोपियों को सदाचारी घोषित कर उन्हें रिहा कर दिया जाए। गुजरात में गोधरा कांड के बाद 2002 में बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषी सोमवार को गोधरा उप कारागार से रिहा हो गए। गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत सभी दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी। मुंबई में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को 21 जनवरी 2008 को सामूहिक बलात्कार और बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए देश में ऐसी घटना भी होगी यह भी चौंकाने वाली बात थी।
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने और खासतौर से उसकी महिला नेताओं ने एक बार बड़े जोर शौर से नारा लगाया था कि नारी के सम्मान में, भाजपा मैदान में और इसी नारे की बदौलत बहुमत की सरकार बनाई थी लेकिन अब शायद यह नारा भाजपा के लिए ज्यादा उपयुक्त है "रेपिस्टों के सम्मान में, भाजपा मैदान में"। बलात्कारियों को रिहा करने पर भाजपा समेत महिला आयोग और हिजाब जैसे मुद्दे पर महिला अधिकारों के लिए भांड बन जाने वाले लोग और संस्थाएं गूंगी बनी हुई न्यायिक व्यवस्था का तमाशा देख रही हैं।
भाजपा के हिंदुत्व से डरकर हिंदूवाद के रास्ते पर कामयाबी खोजने वाली विपक्षी पार्टियां भी अंधी बहरी बनी भाजपा से अपनी जान बख्शी की डील में लगी हैं। पीड़िता मुसलमान थी और भारत में मुसलमान होना खुद एक अपराध बन चुका है और मुसलमान अब इन बातों पर विचलित होना इसलिए छोड़ चुका है कि जब राज्य की मति मर गई हो तो किसी फैसले पर अफसोस कैसा और दुख कैसा। मेरा सवाल उन मुस्लिम चिंतकों से भी है कि जब किसी घटना में आरोपी मुसलमान होता है तो तब वह पूरे समुदाय को कटघरे में खड़ा कर देते हैं और मीडिया समेत पूरे देश में मुसलमानो के खिलाफ माहौल बना दिया जाता है और मानवाधिकार का भी शौर मचाया जाता है लेकिन अब इस घटना पर किसी को ना तो बिलकीस और उसके परिवार के साथ हुई चिंता है और बिलकीस बानो के मानवाधिकारों की भी किसी को चिंता नहीं होगी। इस अन्यायपूर्ण युग में मानवाधिकार दोषियों के होते हैं और पीड़ित के मानवाधिकार कभी जेरे गौर नहीं लाए जाते। वैसे तो रेप की सख्त से सख्त सज़ा का विरोध करने वाले सदा रेपिस्टों से हमदर्दी रखते रहे हैं लेकिन इस मामले ने तो नाइंसाफी की चरम सीमा को पार कर दिया है और देश का संजीदा तबका चुप्पी साध गया है जो किसी सभ्य समाज की पहचान नहीं हो सकती।
देश के बहुसंख्यक समुदाय को तो धार्मिक राजनीति की ऐसी चाशनी चटाई गई है कि उसके लिए अब ये कोई मुद्दा ही नहीं है जिसमें पीड़ित मुस्लिम समुदाय से संबंध रखता हो। किसी भी अनुचित घटना या फैसले के खिलाफ खड़ा होना बहुसंख्यक वर्ग की ही जिम्मेदारी होती है लेकिन वर्तमान समय में बहुसंख्यक वर्ग ने ठान लिया है कि वह सिर्फ तभी खड़ा होगा जब उसे यह खतरा महसूस होगा कि अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय द्वारा उसे नुकसान पहुंचाया जा रहा है। बहुसंख्यक वर्ग के भी गंभीर वर्ग से हम ये उम्मीद करते हैं कि वह इन मामलों में चुप्पी ना साधे, अगर ये नाइंसाफियां चलन में आ गयी तो इसका सभी समाजों को नुकसान उठाना होगा।