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- भाजपा बढ़ी "तृप्तिकरण"...
अपने हिंदुत्ववादी एजेंडा पर राजनीति करने के लिए विश्व विख्यात केंद्रीय सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने अपने रुख में भारी परिवर्तन करते हुए मुसलमानो के "तुष्टिकरण" की ओर कदम बढ़ा दिए हैं हालांकि भाजपा ने नया पैंतरा मारते हुए "मुस्लिम तुष्टिकरण" को "पसमांदा मुस्लिम तृप्तिकरण" का नारा दिया है। देश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को दक्षिणीपंथी राजनीति करने वाली पार्टी माना जाता रहा है जिसके नेता मुसलमान विरोधी बयानों और कार्यकलापों से ही अपने राजनीतिक हित साधते रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी अपनी इसी अतिवादी राजनीति की बदौलत केन्द्र व कई राज्यों की सरकारों पर सत्तासीन होकर देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने का गौरव हासिल कर सकी।
देश के मुसलमानो की 80 प्रतिशत आबादी पसमांदा श्रेणी में गिनी जाती हैं। मुस्लिम जनसंख्या के इतने बड़े हिस्से के लिए भारतीय जनता पार्टी यदि अपना रुख बदलती है तो कहा जा सकता है कि भाजपा पसमांदा का बहाना बना कर अपने अतिवादी एजेंडा से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रही है । भारतीय जनता पार्टी के इस कदम की सराहना और स्वागत भी किया जा रहा है और आलोचना भी की जा रही है। स्वागत और सराहना करने वालों का मानना है कि यदि पसमांदा मुसलमानो के लिए भी भाजपा अपना रुख बदलती है तो वह भी तीन दशकों से चल रही धार्मिक आधार वाली राजनीति की दशा और दिशा बदलने बड़ी भूमिका निभाएगा। लेकिन इन लोगों को भारतीय जनता पार्टी की नीयत पर शक है कि क्या वाकई भाजपा ऐसी राजनीति से पीछे हट जाएगी या फिर अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए पसमांदा मुसलमानो की "घर वापसी" जैसे अभियान चलाए जाएंगे क्योंकि आरएसएस का मानना है कि यह पसमांदा मुसलमान वो भारतीय जातियां हैं जिनके पूर्वज हिन्दू थे और उन्होंने दबाव में इस्लाम स्वीकार किया था इसलिए उन्हें दोबारा घर वापसी करनी चाहिए। और ऐसे अभियान पहले भी चलाए जा चुके हैं।
जबकि आलोचकों का कहना है कि भाजपा ने मुसलमानो की राजनीतिक शक्ति को बांटने के लिए नयी चाल चली है। आलोचकों का मानना है कि भाजपा द्वारा बनाए गए सांप्रदायिक माहौल में हुई हिंसा में ज्यादा नुक्सान पसमांदा मुसलमानो ने उठाया है और लिंचिंग आदि का शिकार होने वाले भी ज्यादातर पसमांदा वर्ग के लोग रहे हैं।
यदि भाजपा को अचानक पसमांदा मुसलमानो से मुहब्बत उमड़ी है तो यह सिर्फ मुसलमानो की राजनीतिक शक्ति खत्म करने का प्रयास मात्र है। आलोचकों की बातों में दम नज़र आता है क्योंकि आजकल सोशल मीडिया पर भाजपा और संघ समर्थित लोग मुसलमानो मे अशरफ वर्ग और पसमांदा वर्ग की चर्चा को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहे हैं। फर्जी आईडी बनाकर दोनों वर्गों को आपस में टकराव बढ़ाने वाले कंटेंट भारी संख्या में डाले जा रहे हैं। हालांकि पसमांदा मुसलमानो की राजनीति करने वाले पसमांदा जातियों के "अशरफ" लोगों को भाजपा के इन बयानों से बहुत खुशी हो रही है और वह भाजपा द्वारा पसमांदा मुसलमानो को सरकारी रेवड़ियां बंटने का इंतजार कर रहे हैं और उनमें हाथ मारने की कोशिश में लग गए हैं , वही लोग इस बहस को मजबूती से बढ़ाने लगे हैं जबकि वह खुद अशरफ जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
कुछ लोग भारतीय जनता पार्टी के इस रुख परिवर्तन के पीछे बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिवेश को भी कारक मानते हैं। इन लोगों का कहना है कि चालू दशक में काफी देशों में दक्षिणपंथी राजनीति सत्ता पर काबिज हुई थी लेकिन धीरे धीरे अब वह खत्म हो रही है। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री आबे शिंजो की दुखद हत्या के बाद ये बहस और तेज हो गई कि दक्षिण पंथी नेताओं के दिन लद चुके हैं और कोई देश इस राजनीति को लंबा नहीं ढो पाएगा।
कोविड के बाद चले रूस यूक्रेन युद्ध से दुनिया में आर्थिक स्थिति खराब होने से अक्सर देश शांति की तलाश में हैं और दक्षिण पंथी राजनीति इसमें सबसे बड़ी रुकावट है। यदि भाजपा वास्तव में मुसलमानो के लिए कुछ करने का विचार रखती है तो आने वाले समय में भाजपा की राजनीति से अंदाजा हो जाएगा कि भाजपा के पसमांदा मुस्लिम प्रेम में कुछ हकीकत है या कोई राजनीतिक चाल है क्योंकि यह घोषणा हैदराबाद में की गई है जहां असदुद्दीन ओवैसी लंबे समय से अपनी राजनीतिक सत्ता संभाले हुए हैं और जिनका आधार ही मुसलमान राजनीति है।