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- हजूर आते-आते बहुत देर...
विनय मौर्य
हजूर आते-आते बहुत देर कर दी....!
जब कोरोना से लोग बिलबिला रहे थे उस वक्त साहेब,हजूर बंगाल चुनाव निपटा रहे थे।
जब बनारस के लोग हास्पिटल बेड और दवाई-दवाई चिल्ला रहे थे। उस वक्त हजूर " दीदी ओ दीदी " की आवाज़ लगा रहे थे।
जब स'रकार और सिस्टम फेल्योर मार चुका था। उस वक्त हजूर दिल्ली दरबार में राग दरबारी गाने वालों से घिरे थे।
जब माँ गंगा के घाटों पर लाशों का अंबार लगा था। और माँ गंगा अपने 2014 वाले बेटे को बेकरारी से ढूंढ रहीं थीं।तब माँ गंगा के स्वघोषित बेटे अपने सां'सद हजूर "अता पता लापता" खेल रहे थें।
अब बात बीती हो गई है, तो हजूर आ गए हैं। उन्हें लगता है बनारस के लोग...कोरोनाकाल के दौर को भुला गये हैं।
स्वागत है हजूर...स्वागत है...थोड़ा टिका चन्नन लगाईये...किसी को पकड़ धकड़ के फोटो सोटो खींचवाईये...मीडिया में हाइप पाईये।
मगर ई भी याद रहे हजूर... हम बनारसी हैं...पान...प्यार...प्रतिज्ञा...परवाह...पराए को भी दिल से लगाये रहते हैं।
मगर अवसरवादी, मतलबी लोगों को दिमाग में बिठाये रखते हैं।