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तो हुआ ये कि एक दिन छेदीलाल ने तंग आकर धर्म बदलने की ठान ली
असल मे बचपन से छे-दी-छे-दी कहकर दोस्त चिढ़ाते। मा बाप ने जाने ऐसा नाम क्यों रख दिया कि "नाम में ही छेद है"। नाम ही नही, किस्मत में भी छेद ही था। जो काम करते बस फुस्स हो जाता। न्यूमेरोलॉजी, सामुद्रिक शास्त्र के पठन पाठन और सड़क किनारे तोते वाले ज्योतिष ने भी यही बताया। "तेरे नाम मे छेद है बेटा.."
छेदीलाल ने मुल्ला जी से सलाह ली। इस्लाम अपनाने को सारे रिचुअल किए। काट पीट कर्म के बाद, मौलवी साहब अस्फुट स्वर में बुदबुदाये। फिर आसमानी किताब खोली। जो पन्ना खुला उसके पहले अक्षर को नाम बना दिया गया।
मौलवी साहब ने गुंजायमान स्वर में घोषणा की- "पवित्र धर्म मे तेरा स्वागत है सूराख अली ... "
सूराख अली, जिनका कुछ देर पहले काफी खून निकला चुका, अब काटो तो खून नही। किस्मत का छेद अब भी मौजूद था। लेकिन भाई भी डिटर्मिन्ड था। नजरें बचाकर खिसका, और पहुँच गया ग्रन्थी साहिब के पास ..
रिचुअल यहां भी हुए। पोशाक बदल दी गयी। पंच ककार से लादा गया। सिर पर पग डलवाकर ग्रन्थी जी ने किताब खोली। अस्फुट स्वर में बुदबुदाये जो पन्ना खुला उसके पहले अक्षर को नाम बना दिया गया।
भाई "खड्डा सिंग" मुंह बिसूरे नई ड्रेस और शक्ल लिए अगले ठिये की ओर भागे। नुक्कड़ पर चर्च था। आखरी उम्मीद ..
तो खड्डा सिंग चर्च में घुस पड़े। प्रीस्ट को पकड़ा, हाथ पैर जोड़े, और अपने धर्म दीक्षित करने की रिकवेस्ट की। शर्त यही रखी कि नाम शुद्ध अंग्रेजी रखा जाए। छेदी, खड्डा, सूराख कतई नही हो। परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकम्पा से खड्डा सिंग की रिकवेस्ट मान ली गयी।
बपतिस्मा हुआ। तमाम रिचुअल के बाद पवित्र जल इधर उधर फेंकते हुए प्रीस्ट ने किताब खोली। खड्डे का दिल धड़क रहा था। अस्फुट स्वर में मंत्र पढ़ते प्रीस्ट को देखते हुए, उसे दिन भर के दुख याद आ रहे थे। दिल सांय सांय कर रहा था। अब कष्ट का निवारण होने वाला था। प्रीस्ट के होंठ हिले- चर्च में नाम गूँज उठा।
"Mr. Hole Red"
किस्सा काल्पनिक है। इंसान के अपने काम, परिश्रम, मेहनत, मुस्कान उसकी वकत तय करती है। सोसायटी में फेंका गया सत्कर्म, आदमी के कामों में सोसायटी के सहयोग के रूप में वापस आता है। लौटकर आया हुआ सहयोग ही किस्मत कहलाता है।
इस किस्मत और जुबान का धनी व्यक्ति, जेब मे फूटी कौड़ी न रहे, तो भी मां/अम्मी/बेबे के आशीर्वाद से लाखों की डील कर सकता है। अब उस डील के पेपर पर सिग्नेचर छेदीलाल हो, सूराख अली हो, खड्डा सिंग हो या होल रेड..
तो कर्म सही रखिये। एवरिडे लाइफ में आपका धर्म नही, आपका कर्म इज्जत दिलाएगा। इसके अलावे कुछ भी अक बक करते रहिए। न छेदी के अच्छे दिन आएंगे, न सूराख अली के..
वैसे दोनों एक ही हैं, एक जैसे ही हैं - स्टुपिड