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हावर्ड में की गयी मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी जजों की नियुक्ति पर संदेह को गहरा करता है
लखनऊ: प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के मद्रास हाई कोर्ट में विवादित जज विक्टोरिया गौरी की नियुक्ती पर उसे उचित ठहराते हुए की गयी टिप्पणी को न्यायपालिका की निष्पक्षता पर आम लोगों में बढ़ते संदेह को और पुख़्ता करने वाला और सुप्रीम कोर्ट के ही पुराने फैसलों का उल्लंघन बताते हुए उन्हें हर ज़िले से ज्ञापन भेजा है।
गौरतलब है कि मद्रास हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों ने विक्टोरिया गौरी को फरवरी में मद्रास हाई कोर्ट का जज नियुक्त करने पर रोक लगाने के लिए वकील के बतौर सोशल मीडिया पर अतीत में दिए गए उनके मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ़ हेट स्पीच के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में प्रतिवेदन दिया था। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था। पिछले दिनों जस्टिस चंद्रचूड़ से हावर्ड लॉ स्कूल में बातचीत के दौरान लोगों ने इस नियुक्ति पर चिंता ज़ाहिर की थी। जिसपर उन्होंने कहा था कि वकील के रूप में रखे गए विचारों के आधार पर जजशिप पर आपत्ति नहीं जताई जा सकती है।
अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति (एनजेएसी) पर 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए उस राय के खिलाफ़ है जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि अभ्यर्थी की सिर्फ़ प्रैक्टिस और बार में उसकी प्रतिष्ठा ही नहीं देखी जाएगी बल्कि उसकी पूरी पृष्ठभूमि से जुड़े तथ्य भी देखे जाएंगे।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ अगर कहना चाहते हैं कि बतौर वकील किसी के विचारों के आधार पर जज बनने पर आपत्ति नहीं की जा सकती तो फिर उन्हें बताना चाहिए कि जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल को सुप्रीम कोर्ट में कैसे जज बना दिया गया जिन्होंने सार्वजनिक तौर संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर शब्द की मौजूदगी को देश की छवि धूमिल करने वाला बताया था। क्या उनके नेतृत्व वाले कॉलेजियम में संविधान के ढांचागत मूल्यों के प्रति जजों की प्रतिबद्धता भी नहीं परखी जा रही है?
उन्होंने कहा कि इसी तरह जस्टिस अकील कुरैशी को यह कॉलेजियम मोदी सरकार के दबाव में वरिष्ठता के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में जज नहीं बना पायी क्योंकि उन्होंने अमित शाह को सोहरबुद्दीन शेख फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में सीबीआई की कस्टडी में जेल भेजा था।
शाहनवाज़ आलम ने यह भी कहा कि मुख्य न्यायाधीश को यह भी बताना चाहिए कि उनकी कॉलेजियम ने मद्रास हाई कोर्ट में आर जॉन सत्यन को केंद्र सरकार द्वारा सिर्फ़ इसलिए जज बनाने से इनकार कर देने पर कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर द क्विइंट में छपे आलोचनात्मक लेख को शेयर किया था क्यों सरकार के सामने मजबूती से नहीं लड़ पायी? क्या कॉलेजियम के इस आचरण से न्यायपालिका पर अविश्वास नहीं बढ़ेगा।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि किसी जज या वकील का किसी पार्टी या विचारधारा से जुड़ा होना मुद्दा नहीं है लेकिन जो अपने ट्विटर एकाउंट पर अपने को 'चौकीदार' बताते हुए इस्लाम को 'हरा आतंक' और ईसाई धर्म को 'सफ़ेद आतंक' बताने जैसे हेट स्पीच का अपराधी हो उसे जज कैसे बनाया जा सकता है? क्या हेट स्पीच के पीड़ित कभी ऐसे जजों से न्याय पाने की उम्मीद कर सकते हैं? सबसे अहम कि विक्टोरिया गौरी ने अपने हेट स्पीच को सोशल मीडिया से हटा दिया है। यानी वो ख़ुद मानती हैं कि उन्होंने कुछ गलत किया था लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर कॉलेजियम उसे गलत नहीं मानता या उसे नज़रअंदाज़ करने योग्य मानता है। यह दोनों स्थितियाँ न्यायपालिका की विश्वसनीयता को धूमिल करती हैं।
उन्होंने कहा कि विक्टोरिया गौरी जैसे लोगों के जज बनने से अब शायद दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले जैसे फैसले और सुनने को मिलेंगे जिसमें जस्टिस चंद्रधर सिंह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलनकारियों को 'गोली मारो सालों को' कहते हुए दी गयी धमकी को यह कहते हुए अपराध मानने से इनकार कर दिया था कि यह धमकी हँसते हुए दी गयी थी।