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- चुन्नी बाबू और जनवाद
बाजार में चुन्नी बाबू मिल गए।बहुत गुस्से में थे।मुझे पकड़ लिया,चलिए मेरे घर।आज आपको एगो बड़का बात बताएंगे।
मैं क्या करता।उनके साथ उनके घर चला गया।वे अपनी चौकी पर पालथी मारकर प्रवचन की मुद्रा में बैठ गए और मैं सामने कुर्सी पर।एक मात्र श्रोता।
वर्माजी आये हैं।...मलकिनी!...तनी चाय बनाव।
मैं समझ गया।आज सेशन लंबा चलनेवाला है।
पत्नी को चाय के लिए कहकर मुझसे प्रश्नवाचक मुद्रा में बोले,जानते हैं सबसे बड़ा पाखंडी कौन होता है?
मैंने पूछा, कौन होता है?
यही तो आप नहीं समझते हैं।आप सीधे आदमी हैं।लोग पूजा-पाठ करनेवाले को पाखंडी कहता है।...आपको भी ई मुहल्ला में पाखंडी कहता है।आप रोज जल ढारने मंदिर जाते हैं न!...मुहल्ला में कई लोग हमको बोला,बड़का पाखंडी है।
मैंने कहा,जाने दीजिए।सबका मुँह खुला है।बोलने दीजिये।मैं बुरा नही मानता।
आप बुरा नही मानते हैं।हमको बुरा लगता है।हम जानते हैं। आप सीधे-सच्चे आदमी हैं।ईमानदारी से बैंक का नौकरी किये।रिटायर हो गए।पूजा-पाठ करते हैं।कोई नशा पानी नहीं।कोई गलत साथ संगत नही।केतना अच्छा बात है।...
लेकिन नही।लोग आपको पाखंडी बोलेगा।और जो असली पाखंडी है उसको नही बोलेगा।हमको इसी बात का दुख है।..
देखिए!हम बताते हैं।असली और सबसे बड़ा पाखंडी कौन है?वह है वामपंथी।
मैं घबड़ाया।कई वामपंथी मेरे अच्छे मित्र हैं।मैंने कहा,हर पंथ में कुछ पाखंडी होते हैं।उसमें भी कुछ हैं।
ऐसा नही है वर्माजी!चुन्नी बाबू अपनी जांघ पर ताल ठोककर बोले,हर पंथ में कुछ पाखंडी है।मगर वामपंथ में पूरा का पूरा पाखंडिये है सब।...
हम आपको एक बड़का वामपंथी का किस्सा बताते हैं।
उसके बाद चुन्नी बाबू धाराप्रवाह शुरू हो गए।
जवानी का दिन था।हमको भी साहित्य का चस्का लगा था।बेवस्था के खिलाफ कविता लिखते थे।वामपंथी सबसे दोस्ती हो गया था।एक दिन मालूम हुआ हिंदी के एगो बड़का वामपंथी आलोचक दिल्ली से हमारे शहर में आ रहे है।उनका गांव हमारे शहर से बीस मील दूर एगो देहात में था।हमलोग उनको स्टेशन पर रिसीव किये।एगो गाडी ठीक किये और उनको गांव भिजवा दिये।...
गाँव पर उनके बेटा की शादी थी।हमलोगों को भी निमंत्रण मिला।जबानिये।कौनो कार्ड,नेवता नही।फिर भी,हमलोग गए।अटल देहात में शादी हो रहा था।बाजा तो नहिये था।बत्तियो भुकभुका रहा था।एकदम सादा-सादी बियाह हो रहा था।...
हम अपने मन मे बहुत खुश हुए।सही में असली वामपंथी है।कोई तड़क-भड़क नही है।..
लेकिन उहाँ एगो अउर बात मालूम हुआ कि पोरफेसर साहब दु गो बियाह किये हैं।एगो दिल्ली में रहती है और एगो गांव में।...
ई गांव वाली के बेटा का बियाह है इसीलिए कौनो तड़क-भड़क नही है।...
तबो हम मान लिए कि कौनो बात होगा।दू गो बियाह कर लिए तो का?..रेणुजी दू गो बियाह नही किये थे।अब लतिका जी उनका जाने बचाई थीं, तो उनसे बियाह कर लिए तो का गलत किये।साहित्यकार तो बड़का थे न!...
सो हम ई बात घोंट गए।
असली बात तो अब बता रहे हैं।हमलोग लौटने लगे तो पोरफेसर साहब बोले कि मेरे लिए दिल्ली का टिकट करा दीजिये आपलोग।...
हमलोग टिकट करा दिए स्लीपर क्लास का।स्लीपर का टिकट देखकर भड़क गया।...आंय!हम स्लीपर में चलते हैं?हम ए सी में चलते हैं।उ भी टू टिअर में।...
साला!एगो पैसा पॉकेट से नही दिया।अउर भड़का ओतना।
फिर हमलोग ए सी का टिकट करवाये।ए सी टू टियर में चढ़ के गया दिल्ली।...
जन चलता है जेनरल में और जनवादी चलता है ए सी में।
यही जनवाद है।...
चुन्नी बाबू का प्रवचन समाप्त हुआ।
- मनोज कुमार वर्मा
अयोध्यापुरी श्रीनगर सीवान(बिहार).