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- चलो आज का दिन गुजर...
चलो आज का दिन गुजर गया, सर्दी खांसी नहीं हुई, बुखार नहीं आया, शायद मेरे कर्म अच्छे थे जो आज का दिन गुजर गया
हम भी डरे हुए,
तुम भी डरे हुए ।
हम भी परेशान,
तुम भी परेशान ।
पास नहीं आईए,
हाथ ना लगाइए ।
कीजिए नज़ारा दूर-दूर से,
कीजिए इशारा दूर-दूर से।
चलो आज का दिन गुजर गया, सर्दी खांसी नहीं हुई, बुखार नहीं आया, शायद मेरे कर्म अच्छे थे जो आज का दिन गुजर गया । चेहरे पर मास्क, मास्क के पीछे सूखते होंठ, डरा हुआ चेहरा, माथे पर चिंता की लकीरें, मन में उठते अनगिनत सवाल। ऐसा क्या हो गया फिर से कोरोना हम पर हावी हो गया । अभी कल की ही तो बात है, हमारे देश के बड़े-बड़े नेता मंच पर खड़े होकर हजारों जनता के बीच चुनाव को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे थे । शायद कोरोना भी सरकार बनने का इंतजार कर रहा था, जैसे ही सरकार ने शपथ ली, ओर कोरोना ने टीवी चैनलों के ऑफिस में दस्तक दे दी, कोरोना को भी लगा चुनाव निपट गए,अब टीवी चैनल वालों के पास दिखाने को कुछ नहीं हैं, चलो फिर से अपना जलवा दिखा देते हैं, और इन चैनलों को भी नई सनसनी दे देते हैं ।
कोरोना भी अजीब बीमारी है, रिश्तो को तोड़ता है, माँ को बेटे से जुदा करता है, बेटे को मां से ।
माँ डरती है, बेटे के पास जाने से, यह वही माँ है, जब बेटे की तबीयत खराब होती थी और उसको बुखार चढ़ जाता था,तो रात भर बेटे को गोद में लेकर बैठी रहती थी,और बर्फ की पट्टी माथे पर रखकर बुखार कम करने की कोशिश करती थी, पर अब क्या हो गया माँ को जब से बेटे को कोरोना हुआ है,बेटे से दूरी बना ली है, डरती है पास जाने में, वाह कोरोना वाह तूने भी क्या जलवा दिखाया माँ को बेटे से दूर करवाया । सात जन्मों का साथ निभाने की कसम खाने वाली अर्धांगिनी भी बेबस है, इस वायरस के आगे ।
आज समझ में आया छुआछूत और दूरी से क्या तकलीफ होती है, यह तकलीफ हमारे दलित समाज के लोग पीढ़ियों से सेहते आ रहे हैं, उनके बर्तन अलग, ऊंची जाति के घरों में जाना निषेध, उनका रास्ता अलग, पानी का कुआं अलग, मंदिर अलग । आजकल ऐसी ही तकलीफे झेल रहे कोरोना के मरीज ।
जब कोई दलित ऊंची जातिवालो के घर में प्रवेश कर लेता है, तो उस घर को जल से धोया जाता है, वैसे ही आजकल कोरोना पीड़ित के घर को दवाइयों से सैनिटाइज किया जाता है । इसीलिए लिए किसी ने सही कहा है जो बोएंगे वह ही काटोगे । हमने बहुत दिल दुखाया है हमारे दलित भाइयों का,बहुत ऊंच नीच का खेल खेला है । आज ऊपर वाले ने हमको दिखा दिया की जो हम ऊंच-नीच, छुआछूत का खेल खेल रहे थे, आज वही खेल कुदरत हमारे साथ खेल रही है, जब कोरोना हो जाता है, तो परिवार वाले दूरी बना लेते हैं, उनके बर्तन अलग हो जाते हैं, उनका पलंग बिस्तर अलग हो जाता है, वैसा ही बर्ताव होता है, जैसे दलितों के साथ होता था ।
दलितों को जीते जी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, मरने के बाद भी अंत्येष्टि में परेशानी होती है, ऐसा ही मामला एक दलित के साथ कुछ समय पूर्व मध्यप्रदेश के भिंड में हुआ था ।
भिंड ज़िले के एंडौरी पुलिस थानांतर्गत ग्राम चंदोखर मजरा लोहरी का पुरा में नए श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार नहीं करने देने के विरोध में एक दलित ने कथित रूप से अपने पिता की अंत्येष्टि अपने घर के पास ही कर दी थीं । इस मामले में श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार नहीं करने देने वाले दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था ।
ऐसे ही कुछ कोरोना काल में देखने को मिल रहा है, ऊंची जाति के लोगों की मौत कोरोना के कारण हुई थी और उनकी अंत्येष्टि का विरोध उन्हीं के समाज के लोगों द्वारा किया गया था ।
चेन्नई में कोरोना वायरस संक्रमण से जान गंवाने वाले आंध्र प्रदेश के डॉक्टर के अंतिम संस्कार का इलाके के निवासियों ने विरोध किया था । 56 वर्षीय डॉक्टर की मौत कोरोना से हो गई थी। डॉक्टर के शव को तमिलनाडु के अम्बत्तूर क्षेत्र के श्मशान घाट ले जाया गया था, जहां स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था और कहा था कि इससे उनके क्षेत्र में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की आशंका है। इसके बाद नेल्लोर के रहने वाले डॉक्टर के शव को वापस अस्पताल के मुर्दाघर में ले जाया गया था।
इसलिए कहा जाता है,अपने पापों का प्रायश्चित कर लो, ऊपर वाले से माफी मांग लो, ऊंच-नीच खत्म कर दो,जात पात की दीवार गिरा दो,ऊपर वाले से माफी मांग लो,ऊपरवाला ना करें अगर कोरोना पीड़ित हो गए तो लोग आपसे भी दूरी बना लेंगे,आप से दूर भागेंगे, बीमारियां आती रहेगी जाती रहेगी पर आपका व्यवहार हमेशा याद रहेगा,तो ऐसा काम करो जो लोग सालो साल याद रखें।
कोरोना से लड़ने के लिए
जिगर में हौसला सीने
में जान बाकी है ।
कोरोना को हारकर जो तुम
घर वापस लौटे हो ।
अभी भी एहतियात
करो क्योंकि ।
अभी तो कोरोना की दवा
आना बाकी है ।
मोहम्मद जावेद खान