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आप दोबारा आइये, चौबारा आइये मगर मुझे मत डराइये

रवीश कुमार
27 Feb 2018 9:02 AM GMT
आप दोबारा आइये, चौबारा आइये मगर मुझे मत डराइये
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एक पत्रकार क्या करे जब कोई जज उसके सामने रो रहा हो। क्या आप मुझे बता सकते हैं। मैं क्या करूं।
फोन कीजिए मगर अपनी भावुकता हम पर मत लादिए। हमें पता है इस सिस्टम ने आपको कहीं का नहीं छोड़ा है। लेकिन यह उचित नहीं है कि आप फोन पर रोने लगें, कहने लगे कि हमें न्याय नहीं दिलाएंगेे तो जान दे देंगे। एक दो फोन चलता है, जब संख्या बढ़ जाती है तो फोन रखने के बाद सांस अटकी रहती है कि दूसरी तरफ की आवाज़ खामोश तो नहीं हो गई। एक रिपोर्टर एंकर को इस तरह से सताना ठीक नहीं है। अदालत है, पुलिस है, विधायक है, सांसद है। ये लोग नहीं हैं तो आप सोचिए कि ये लोग क्यों हैं। मैं कितने लोगों का लोड ले सकता हूं। न तो हर स्टोरी दिखा सकता हूं न हर किसी का फोन ले सकता हूं फिर कोशिश रहती है कि सामूहिक रुप से बात उठ जाए। जो मेरे बस में है। आज एक ऐसा ही फोन आया। मन खराब हो गया। उनसे सहानुभूति जितनी नहीं हुई उससे कहीं ज्यादा लगा कि कोई मुझे चीट कर रहा है। मैं उनकी कहानी समझता हूं। जब न्यायपालिका की कुर्सी पर बैठकर किसी की ये हालत हो जाए तो हम क्या करें। एक पत्रकार क्या करे जब कोई जज उसके सामने रो रहा हो। क्या आप मुझे बता सकते हैं। मैं क्या करूं।
वैसे भी सुनता रहता हूं कि नौ बजे यहां प्राइम टाइम बंद कर दिया, वहां से हटा दिया। पांच छह दिनों से लगातार बैंकरों के मेसेज पढ़ रहा हूं। नौकरी से परेशान युवाओं के मेसेज पढ़ रहा हूं। जब हमारे यूथ की यही पोलिटिकल क्वालिटी है कि नेता उसे बर्बाद करके उसी से नारे लगवा लेता है तो मैं उस यूथ का क्या कर सकता हूं। क्या वो मेरे शो से बदल जाएगा, इसका जवाब वही दे सकता है मगर उसे तो हर राज्य के नेताओं ने दोहन किया है। जब चार चार साल तक रिज़ल्ट नहीं निकला इसके बाद भी आप सोशल मीडिया पर नारे लगा रहे थे, किसी न किसी नेता की धोती उठाए हुए थे, जूती सर पर रखकर चल रहे थे तो धीरज रखिए। हज़ारों भर्तियों की बात मैं कैसे अकेले रख सकता हूं। पर कोशिश तो कर ही रहा हूं।
लोगों को नंबर क्या दिया, एक ही मैसेज हज़ार लोग कर रहे हैं। मुझी को रूला दिया है। इसके बाद भी 18 सीरीज तक टिक गया क्या ये कम है। मुझे पता है कि आप देख श्री देवी ही रहे हैं तभी तो आप उसी पर दनादन पोस्ट कर रहे हैं। इसके बाद भी ज़ीरो टीआरपी की हद तक जाकर 18 दिनों से नौकरी सीरीज़ कर रहा हूं। ये किस टाइप के यूथ हैं, कोई इनसे पूछेगा कि इनकी पोलिटिकल क्वालिटी क्या है? बेशक मेसेज कीजिए एक दो मेसेज काफी है। मैं कहां मना कर रहा हूं।
इन सबके बीच में तीन चार मेसेज आ जाते हैं कि आप कुछ भी कर लो मोदी जी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे। ये तो हद है। जब राजनीति पर चर्चा करता था तब लोग राय देने लगे कि तुम कुछ और कर लो। वो यह नहीं कह पाए कि प्रवक्ता डर के मारे भाग गए हैं। उनकी सांसें फूल जाती हैं। ठीक है भाई राजनीति छोड़ कर यूनिवर्सिटी सीरीज़ की 27 दिनों तक लगातार। किसी ने कुछ बोला, तब भी करता रहा। फिर नौकरी पर आ गया। 18 सीरीज़ कर चुका हूं। हज़ारों की संख्या में लोगों को ज्वाइनिंग के लेटर मिले हैं। कई परीक्षाएं जो खाई में पड़ी थी उन्हें दोबारा से शुरू किया गया है। अब इसी के साथ बैंकरों की सीरीज़ शुरू कर दी है।
अब इन सबसे भी भाई लोगों को परेशानी है। तेरह लाख बैंकरों को ग़ुलाम की तरह रखा जा रहा है, वहां महिला बैंकरों को सताया जा रहा है, क्या इस स्टोरी में मोदी जी के समर्थकों के परिवार के लोग नहीं हैं? तो फिर क्यों मेसेज भेज रहे हैं कि कुछ भी कर लो मोदी जी ही दोबारा आएंगे। मैं क्या करूं वो चौबारा आ जाएंगे तो। हमारे दिमाग में तो ये सब नहीं आता। इन लोगों को क्यों लगता है कि मेरे बैंक सीरीज़ के बाद भी मोदी जी आएंगे या नहीं आएंगे। बैंकरों ने नोटबंदी के दौरान 10,000 से ढाई लाख तक की भरपाई अपनी जेब से की है। जाली नोट आ जाने, सड़े गले नोट आ जाने या ग़लत काउंटिंग हो जाने के कारण। मैं तो मोदी जी की तारीफ करता हूं कि लोगों की जेब से ढाई लाख कट गए तब भी वोट मिले उन्हीं को। किस नेता को यह नसीब हासिल है।
लेकिन एक बात है। आप मोदी जी के समर्थक हैं अच्छी बात है। मगर मुझे डराना बंद कर दीजिए कि वे आ जाएंगे। देखना ही चाहते हैं तमाशा तो ये कल्पना कीजिए कि मैं उनके सामने हूं, कैमरा लाइव हो, पहले से कुछ भी तय न हो और खुल कर सवाल जवाब का दौर चले दो चार घंटा। आप भी याद करेंगे कि भारत का लोकतंत्र इस ऊंचाई को भी छू सकता है। आपके मुल्क में ढंग का एक कालेज तक नहीं है, उन राज्यों में भी नहीं है जहां भाजपा के मुख्यमंत्री 15 साल से राज कर रहे हैं, हमारे बिहार में भी नहीं है जहां नीतीश कुमार 15 साल से राज कर रहे हैं। हम क्या करें. पहले के पत्रकारों ने भी यह सवाल उठाए हैं, मैं फिर से उठा रहा हूं। यह तो बहुत साधारण सा काम है। अब भारत के नौजवानों को अपनी बर्बादी का शौक लग गया है तो हम क्या कर सकते हैं।
तो मोदी जी के समर्थक भाई, आप उन्हें दोबारा ले आइये। आप चाहते हैं तो अग्रिम बधाई दे देता हूं। एक दिन ऐसा आएगा कि हम और मोदी जी चाय पी रहे होंगे और आप छाती कूट रहे होगे। आपकी ज़रूरत ढोल पीटने से ज्यादा की नहीं है। वो काम करो मगर ज़रूरी नहीं कि कान के नज़दीक आकर धम धम करो। वहां आपकी पूछ नहीं है, मेरी है। मैं शो करता हूं तो असर होता है। समझे। सरकार का भला कर रहा हूं। समय से पहले ग़लती सुधारने का मौका दे रहा हूं। आप डराते रह गए मुझे। हद है। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुझी से डर लगता है। चलो कोई नहीं। कह देना कि छेनू आया था।
Ravish Kumar
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