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हास्य व्यंग्य : फूफा पर निबंध

Desk Editor
2 July 2021 12:25 PM IST
हास्य व्यंग्य : फूफा पर निबंध
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लोग फूफा के ऐंठने को शादी के दूसरे रिवाजों की ही तरह लेते हैं। वे यह मानते हैं कि यह यही सब करने ही आया था..

*फूफा पर निबन्ध *

*पूर्णांक-१००*

*फूफा किसे कहते हैं ?*

*फूफा एक रिटायर्ड जीजा होता है, जिसने एक जमाने में जिस घर में शाही पनीर खा रखा हो और उसे सुबह शाम धुली मूँग की दाल खिलाई जाय, उसका *फू और फा* *करना वाजिब है, इसलिए ऐसे शख्स को फूफा कहना उचित है।*

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*भूमिका* बुआ के पति को फूफा कहते हैं। फूफाओं का बड़ा रोना रहता है शादी ब्याह में। किसी शादी में जब भी आप किसी ऐसे अधेड़ शख़्स को देखें, जो पुराना, उधड़ती सिलाई वाला सूट पहने, मुँह बनाये, तना-तना सा घूम रहा हो जिसके आसपास दो-तीन ऊबे हुए से लोग मनुहार की मुद्रामें हों तो बेखट के मान लीजिये कि यही बंदा दूल्हे का फूफा है!

ऐसे मांगलिक अवसर पर यदि फूफा मुँह न फुलाले तो लोग उसके फूफा होने पर ही संदेह करने लगते हैं। उसे अपनी हैसियत जताने का आखिरी मौका होता है यह उसके लिये । और कोई भी हिंदुस्तानी फूफा इसे गँवाना नहीं चाहता है !

*करता कैसे है यह सब (ModusOperendi)?*

वह किसी-न-किसी बात पर अनमना होगा। चिड़-चिड़ाएगा। तीखी बयानबाज़ी करेगा। किसी बेतुकी-सी बात पर अपनी बेइज़्ज़ती होने की घोषणा करता हुआ किसी ऐसी जानी-पहचानी जगह के लिये निकल लेगा, जहाँ से उसे मनाकर वापस लाया जा सके!

*अगला वाजिब सवाल यह है, फूफा ऐसा करता ही क्यों है (CAUSE)?*

दर असल फूफा जो होता है, वह व्यतीत होता हुआ, जीजा होता है। वह यह मानने को तैयार नहीं होता कि उसके अच्छे दिन बीत चुके है और उसकी सम्मान की राजगद्दी पर किसी नये छोकरे ने जीजा होकर क़ब्ज़ा जमा लिया है। फूफा, फूफा नहीं होना चाहता। वह जीजा ही बने रहना चाहता है और शादी-ब्याह जैसे नाज़ुक मौके पर उसका मुँह फुलाना, जीजा बने रहने की नाकाम कोशिश भर होती है।

*प्रभाव (EFFECT)*

●फूफा को यह ग़लतफ़हमी होती है कि उसकी नाराज़गी को बहुत गंभीरता से लिया जायेगा। पर अमूमन एेसा होता नहीं। लड़के का बाप उसे बतौर जीजा ढोते-ढोते ऑलरेडी थका हुआ होता है। ऊपर से लड़के लडकी के ब्याह के सौ लफड़े। इसलिये वह एकाध बार ख़ुद कोशिश करता है और थक-हारकर अपने इस बुढ़ाते जीजा को अपने किसी नकारे भाई बंद के हवाले कर दूसरे ज़्यादा ज़रूरी कामों में जुट जाता है।

●बाकी लोग फूफा के ऐंठने को शादी के दूसरे रिवाजों की ही तरह लेते हैं। वे यह मानते हैं कि यह यही सब करने ही आया था और अगर यही नहीं करेगा तो क्या करेगा ?

●ज़ाहिर है कि वे भी उसे क़तई तवज्जो नहीं देते।

फूफा यदि थोड़ा-बहुत भी समझदार हुआ तो बात को ज़्यादा लम्बा नहीं खींचता।

*समाधान (SOLUTION)*

●वह माहौल भाँप जाता है। मामला हाथ से निकल जाय, उसके पहले ही मान जाता है। बीबी की तरेरी हुई आँखें उसे समझा देती हैं कि बात को और आगे बढ़ाना ठीक नहीं। लिहाजा, वह बहिष्कार समाप्त कर ब्याह की मुख्य धारा में लौट आताहै।

●हालांकि, वह हँसता- बोलता फिर भी नहीं और तना-तना सा बना रहता है। उसकी एकाध उम्रदराज सालियां और उसकी ख़ुद की बीबी ज़रूर थोड़ी-बहुत उसके आगे-पीछे लगी रहती हैं। पर जल्दी ही वे भी उसे भगवान भरोसे छोड़-छाड़ दूसरों से रिश्तेदारी निभाने में व्यस्त हो जातीहैं।

*भविष्य (FUTURE)*

●फूफा *बहादुर शाह ज़फ़र* की गति को प्राप्त होता है। अपना राज हाथ से निकलता देख कुढ़ता है, पर किसी से कुछ कह नहीं पाता। मन मसोस कर रोटी खाता है और दूसरों से बहुत पहले शादी का पंडाल छोड़ खर्राटे लेने अपने कमरे में लौट आता है। फूफा चूँकि और कुछ कर नहीं सकता, इसलिये वह यही करता है।

*उपसंहार(The End)*

इन हालात को देखते हुए मेरी आप सबसे यह अपील है कि फूफाओं पर हँसिये मत। आप आजीवन जीजा नहीं बने रह सकते। आज नहीं तो कल आपको भी फूफा होकर मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा हो जाना है।

● *फूफा भी कभी शुद्ध जीजा थे।*

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