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किसानों के लिए अवसर में तब्दील हुआ कोरोना काल: कैलाश चौधरी
कोरोना काल पूरी दुनिया के लिए संकट का काल है, लेकिन देश में कृषि क्षेत्र की उन्नति और किसानों की समृद्धि के लिए यह उषा काल साबित हुआ है क्योंकि भारत सरकार ने अध्यादेशों के माध्यम से कई ऐसे नीतिगत सुधारों को अमलीजामा पहनाया है जिनका इंतजार दशकों से किया जा रहा था। किसान अब बिना की रोक-टोक देशभर में कहीं भी अपनी उपज बेच सकते हैं। किसानों को अपनी अपनी मर्जी से फसल बेचने की आजादी मिली और कृषि उत्पादों के लिए एक देश एक बाजार का सपना पूरा हुआ।
महामारी के संकट के दौर में देश की करीब 1.30 अरब आबादी को खाने-पीने चीजों समेत रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में कृषि एवं संबद्ध क्षे.त्र की अहमियत सिद्दत से महसूस की गई। यही वजह थी कि कोरोनावायरस संक्रमण की रोकथाम को लेकर जब देशव्यापी लाॅकडाउन किया गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने कृषि व संबद्ध क्षेत्रों को इस दौरान भी छूट देने में देर नहीं की। फसलों की कटाई, बुवाई समेत किसानों के तमाम कार्य निर्बाध चलते रहे।
मगर, लाॅकडाउन के शुरुआती दिनों में कई राज्यों में एपीएमसी द्वारा संचालित जींस मंडियां बंद हो गई थीं, जिससे किसानों को थोड़ी कठिनाई जरूर हुई। इस कठिनाई ने सरकार को किसानों के लिए सोचने का एक मौका दिया और इस संबंध में और सरकार ने और अधिक विलंब नहीं करते हुए कोरोना काल की विषम परिस्थिति में किसानों के हक में फैसले लेते हुए कृषि क्षेत्र में नए सुधारों पर मुहर लगा दी।
मोदी सरकार ने कोरोना काल में कृषि क्षेत्र की उन्नति और किसानों के समृद्धि के लिए तीन अध्यादेश लाकर ऐतिहासिक फैसले लिए हैं, जिनकी मांग कई दशक से हो रही थी, इन फैसलों से किसान और कारोबारी दोनों को फायदा मिला है क्योंकि नए कानून के लागू होने के बाद एपीएमसी का एकाधिकार समाप्त हो जाएगा और एपीएमसी मार्केट यार्ड के बाहर किसी भी जींस की खरीद-बिक्री पर कोई शुल्क नहीं लगेगा जिससे बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी। कृषि बाजार में स्पर्धा बढ़ने से किसानों को उनकी फसलों को बेहतर व लाभकारी दाम मिलेगा।
केंद्र सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव किया है जिससे खाद्यान्न दलहन, तिलहन व खाद्य तेल समेत आलू और प्याज जैसी सब्जियों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से दिया है। इस फैसले से उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को लाभ किलेगा। अक्सर ऐसा देखा जाता था कि बरसात के दिनों में उत्पादक मंडियों में फसलों की कीमतें कम होने से किसानों को फसल का भाव नहीं मिल पाता था जबकि शहरों की मंडियों में आवक कम होने से उपभोक्ताओं को उंचे भाव पर खाने-पीने की चीजें मिलती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि कारोबारियों को सरकार की ओर से स्टाॅक लिमिट जैसी कानूनी बाधाओं का डर नहीं होगा जिससे बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच समन्व बना रहेगा।
दूसरा सबसे अहम कानूनी बदलाव कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 के माध्यम से हुआ है जिससे कृषि उत्पादों के लिए एक राष्ट्र एक बाजार का सपना साकार हुआ है क्योंकि इससे पहले किसान एपीएमसी के बाहर किसी को अपनी उपज नहीं बेच सकते थे। अगर कोई किसानों से सीधे खरीदने की कोशिश करता भी था तो एपीएमसी वाले उसके पीछे लगा रहता था और उसे टैक्स देना होता था, लेकिन अब एपीएमसी के बाहर किसान किसी को भी अपनी मर्जी से फसल बेच सकते हंैं। हालांकि इस कानूनी बदलाव से एपीएमसी कानून और एपीएमसी बाजार के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है लेकिन एपीएमसी का एकाधिकार जरूर समाप्त हो जाएगा। इस कानून ने किसानों को बाधामुक्त होकर अपने उत्पाद बेचने की आजादी दी है, जिससे किसानों को अच्छा भाव मिलेगा और उनकी आय बढ़ेगी क्योंकि बाजार में प्रतिस्पर्धा होने से उनको औने-पौने दाम पर फसल बेचने की मजबूरी नहीं होगी। किसानों की आमदनी दोगुनी करने के मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में यह फैसला सहायक साबित होगा।
नए कानून में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और इससे जुड़े हुए मामलों या आकस्मिक उपचार के लिए एक सुविधाजनक ढांचा प्रदान करने का भी प्रावधान है।
वहीं, मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता (अधिकार प्रदान करना और सुरक्षा) और कृषि सेवा अध्यादेश 2020 कृषि समझौतों पर एक राष्ट्रीय ढांचा प्रदान करता है जो कृषि-व्यवसाय फर्मों, प्रोसेसर, थोक व्यापारी, निर्यातकों या कृषि सेवाओं के लिए बड़े खुदरा विक्रेताओं और आपस में सहमत पारिश्रमिक मूल्य ढांचे पर भविष्य में कृषि उपज की बिक्री के लिए स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से और इसके अतिरिक्त एक उचित रूप से संलग्न करने के लिए किसानों की रक्षा करता है और उन्हें अधिकार प्रदान करता है।
कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने में यह कानून काफी अहम साबित होगा क्योकि व्यावसायिक खेते वक्त की जरूरत है। खासतौर से छोटी जोत वाले व सीमांत किसानों के लिए ऐसी फसलों की खेती नामुमकिन है जिसमें ज्यादा लागत की जरूरत होती है और जोखिम ज्यादा होता है। इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम अपने कॉरपोरेट खरीदारों के हवाले कर सकते हैं। इस प्रकार, व्यावसायिक खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
मोदी सरकार ने इन कानूनी बदलावों के साथ-साथ कृषि क्षेत्र के संवर्धन और किसानों की समृद्धि के लिए कोरोना काल में कई अन्य महत्वपूर्ण फैसले भी लिए हैं जिनमें कृषि क्षेत्र में बुनियादी संरचना तैयार करने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कोष की व्यवस्था काॅफी अहम हैं। इस कोष से फार्म गेट इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने का प्रावधान है। दरअसल, खेत से लेकर बाजार तक पहुंचने में कई फसलें व कृषि उत्पाद 20 फीसदी तक खराब हो जाती हैं। इन फसलों व उत्पादों में फल व सब्जी प्रमुख हैं। इसलिए सरकार ने फाॅर्म गेट इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने पर जोर दिया है ताकि फसलों की इस बर्बादी को रोककर किसानों को होने वाले नुकसान से बचाया जाए।
खेतों के आसपास कोल्ड स्टोरेज, भंडारण जैसी बुनियादी सुविधा विकसित किए जाने से कृषि क्षेत्र में निजी निवेश आकर्षित होगा और खाद्य प्रसंस्करण का क्षेत्र मजबूत होगा। खेतों के पास अगर प्रसस्ंकरण संयंत्र लगने से एक तरफ उनकी लागत कम होगी तो दूसरी तरफ किसानों को उनकी उपज का अच्छा दाम मिलेगा। इतना ही नहीं, इससे कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्या भी दूर होगी।
कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की समस्या विकराल बन गई, जिसपर राजनीति तो सबने की लेकिन इस समस्या के समाधान की दृष्टि किसी के पास नहीं थी। दरअसल, गांव से शहर की तरफ या एक राज्य से दूसरे राज्य की तरफ श्रमिकों का पलायन रोजगार की तलाश में ही होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समस्या का स्थाई समाधान तलाशने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के विकास पर कोरोना काल में जोर दिया है ताकि गांवों के आसपास वहां के स्थानीय उत्पादों पर आधारित उद्योग लगे और लोगों को रोजगार मिले।
इस प्रकार, कोरोना काल को भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए अवसर में बदलने की कोशिश की है जिसके नतीजे आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश के आर्थिक विकास की धुरी बनेगी।