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मुस्लिम आरक्षण पर भड़के दलित यूट्यूबरस, दलित चिंतक और स्कॉलर!
अंसार इमरान
जितने भी बड़े दलित यूट्यूबरस है या जो भी बड़े दलित चिंतक या स्कॉलर हैं सभी खुलकर दलित मुस्लिम आरक्षण के विरोध में आ चुके हैं। तर्क वितर्क का दौर जारी है। बस कुल मिलाकर मुद्दा यह है कि मुसलमानों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
कल तक जो लोग यह साबित करते थे कि मुसलमानों में भी पसमांदा वर्ग है वो आज उनके अस्तित्व को ही नकार रहे हैं। कोई भी ऐसा बड़ा दलित नाम नहीं बचा है जिसने दलित मुसलमानों के आरक्षण के विरोध में कुछ ना बोला हो।
इतना सब होने के बावजूद सबसे हैरानी की बात यह है कि मुस्लिम समुदाय अभी भी एकता का झंडा लिए दरी बिछाने में व्यस्त है। उसकी नजर में तो अभी भी आरक्षण की कोई अहमियत नहीं है जबकि आरक्षण ही एकलौती वह कड़ी है जो मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर को मुख्यधारा में वापस लाने का काम कर सकती है।
मुसलमान तो आज भी उस ट्रौमा से बाहर निकलने को तैयार ही नहीं है जिसमें उसका राजनीति में सिर्फ एक ही काम है भाजपा को हराना। उसके लिए उसे वोट करना है एक वोट बैंक की तरह। उसके चक्कर में चाहे उसका राजनीतिक प्रतिनिधित्व जीरो ही क्यों ना हो जाए। उसके चक्कर में चाहे उसका कारोबार तबाह क्यों ना हो जाए। उसके चक्कर में चाहे उसकी सामाजिक स्थिति इतनी खराब क्यों ना हो जाए तो उसे नॉर्मल समाज छोड़कर एक घेटो या संकरे मुहल्लों में क्यों न रहना पड़े।
मुसलमान उस कबूतर की तरह है जो भारतीय समाज को जानता तो है कि यहां पर जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं और इसका शिकार वह खुद भी हैं इसके बावजूद कबूतर की तरह हर बार इस बात से इनकार करता है और आरक्षण की बात पर मौन धारण कर लेता है।
आरक्षण ही मुसलमानों के सामाजिक, राजनीतिक हालात को बदलने की कुंजी है और इसके लिए आवाज बुलंद करना मुसलमानों के ऊपर ही फर्ज है। कोई दूसरा समुदाय इसके लिए आवाज बुलंद करने नहीं आएगा। उल्टा जो इस वक्त आरक्षण का लाभ ले रहा है उसके विरोध में जरूर खड़ा हो जाएगा और हो भी चुका है।
मेरा फर्ज है मैं तो आवाज बुलंद करूंगा और मुस्लिम आरक्षण #MuslimReservation के लिए बोलता लिखता रहूंगा। बाकी अब आपको तय करना है कि आप इस सामाजिक न्याय की लड़ाई में भागीदार बनेंगे या केवल दर्शक की भूमिका में ही बने रहेंगे।