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- सब जीते पर दशरथ माँझी...
सब जीते पर दशरथ माँझी हारे, आईपीएस नवनीत सिकेरा ने लिखी पूरी दास्तान
नवादा प्रवास के दौरान मुझे तीन बार श्री दशरथ माँझी द्वारा पहाड़ काटकर बनाये रास्ते से गुजरना पड़ा , मैं हर बार वहाँ रुका और बड़ी शिद्दत से श्री दशरथ माँझी को नमन किया । बहुत से महान लोगों की जीवनियां पढ़ी हैं मैंने लेकिन इस महान जीवनी को मैं साक्षात देख रहा था ।
गाँव गहलौर जिला गया के रहने वाले , दशरथ माँझी जी का जन्म एक बेहद गरीब मजदूर परिवार में हुआ था , गहलौर में मजदूरी का काम भी मिल पाना आसान बात नहीं है आज भी । एक गरीब की जिंदगी कैसे कटती है वोह सिर्फ वह खुद ही जान सकता है । समाज के थपेड़े , भूख की तड़प , जिन्दा रहने की ललक के बीच दशरथ माँझी की शादी फगुनियाँ से हो गयी । दोनों मजदूरी करके अपना पेट पालते थे । गहलौर के सबसे निकट एक कसवा है वजीरगंज जहाँ से छोटी मोटी घर ग्रहस्ती का सामान इत्यादि मिल जाता है , सबसे पास डॉक्टर भी वजीरगंज में ही मिलता है लेकिन गहलौर और वजीरगंज के बीच एक पहाड़ी की श्रंखला है , तो अगर वजीरगंज जाना है तो पूरा पहाड़ पैदल चढ़ कर पार करना पड़ता था । आप सोचिये यदि कोई बीमार है तो उसको चादर में लिटाकर पूरा पहाड़ चढ़ना उतारना पड़ता था और फिर ७ किलोमीटर पैदल तब जाकर सरकारी डॉक्टर तक पहुँच पाते थे ( कोई प्राइवेट डॉक्टर था ही नहीं वजीरगंज में ) । बताते हैं कि दशरथ माँझी की पत्नी फगुनिया पहाड़ चढ़ते समय गिर गयी और उसको बचाया न जा सका ।
उसके बाद दशरथ माँझी ने जो किया वोह मेरी समझ से, इतिहास में एक इन्सान की इच्छाशक्ति का सर्वश्रेस्ठ उदाहरण है । सुनने में अजीब सा लगता है लेकिन एक साधारण से अनपढ़ मजदूर ने ये ठान लिया की ये पहाड़ ही काट दूँगा , रास्ता बनाऊंगा पहाड़ चीर के । निश्चित ही मजाक का पात्र बनना था , माँझी जी का बहुत मज़ाक उड़ाया गया , सबने उनको पागल कहना शुरू कर दिया , और आम सोच के हिसाब से सही था , कौन एक आदमी पहाड़ काट सकता है ( पगला गए हो क्या )
लेकिन माँझी जी की इच्छाशक्ति उस पहाड़ की रॉक से कहीं ज्यादा मजबूत थी , इस साधारण से इंसान से एक छेनी हथोड़ी से वोह पहाड़ काटना शुरू किया और लोगों ने उसका मजाक उड़ाना। मजाक उड़ता गया और दशरथ माँझी का मनोबल उतना ही मजबूत होता गया ।
आप यकीन कर पाओगे , बाइस साल ( 22 वर्ष ) तक ये इंसान इस पहाड़ को काटने में लगा रहा । और वह पहाड़ काटने का काम दिन भर की कड़ी मजदूरी का काम ख़त्म करने के बाद करता , खुद का और अपने दो बच्चों का पेट भरने के लिए मजदूरी करना मजबूरी था , कभी किसी का बोझा ढोना , किसी का कोई भी काम कर देना ताकि जिन्दा बना रहे और अपने सपने को जिए
22 साल तक एक छेनी एक हथोड़ा और हाड़ का बना दुर्बल शरीर लेकिन फौलाद से ज्यादा मजबूत इच्छाशक्ति , भाई साहब पूरा पहाड़ काट कर रास्ता बना दिया । 2007 में फेफड़ों की बीमारी के चलते उन्होंने शरीर का त्याग कर दिया लेकिन आप अमर हो गए , अमरता इसी को कहते हैं , जब तक ये सृष्टि रहेगी आप जीवित रहेंगे हम सब के बीच ।
मेरे विचार से मूवी माँझी एक बार जरूर देखें , मैंने कई बार देखी और मुझे इस मूवी से बहुत प्रेरणा मिली , मिलती है
मैं तीन बार उस पहाड़ को देखने गया , मेरे साथ माइनिंग अफसर श्री मिश्रा जी भी थे उन्होंने रॉक को देखकर बताया कि ये भारत में पायी जाने वाली सबसे मजबूत रॉक है , मैं यकीन नहीं कर पा रहा हूँ कि कैसे इसको छेनी हथोड़े से तोडा गया होगा
आखिरी बार वापस आते समय मैं उनके परिवार से मिलने गया, बहुत बड़े बड़े लोग उनके यहाँ आये , मूवी भी बनी , लेकिन उनके परिवार आज भी भुखमरी की कगार पर है , फोटो में फगुनियाँ और दशरथ माँझी के बच्चे हैं जो गरीबी की मार से समय से पहले ही बूढ़े हो चले हैं , आप ये तस्वीर ध्यान से देख लें , कहते हैं तस्वीरें सच बोला करती हैं आप उनके दर्द को महसूस कर पाएंगे
क्या ऐसे प्रेरणादायी व्यकित्व के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है ?
बड़े बड़े लोग बड़े बड़े वादे कर कर चले गए , लेकिन आज तक हुआ कुछ भी नहीं
क्या हम सब साधारण लोग उनके लिए कुछ कर सकते हैं ?