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किसान आंदोलन पर डी एम मिश्र की ग़ज़ल वायरल, कौन कहता है कि वो फंदा लगा करके मरा ॽ
1- सरकार चेत जाइये , डरिये किसान से
बिजली न कहीं फाट पड़े आसमान से।
चुपचाप है वो इसलिए गूंगा समझ लिया
वो ख़ूब सोच समझ के बोले ज़ुबान से।
मिट्टी का वो माधव नहीं जो सोच रहे हैं
फौलाद का बना है वो देखें तो ध्यान से।
हालात हैं ख़राब मगर हैसियत बड़ी
चिथड़ों में भी हुज़ूर वो रहता है शान से।
सब भेड़िए , सियार भगें दुम दबा के दूर
जब ढोल पीटता है वो ऊंचे मचान से।
गोदाम भरे जिसकी कमाई से आपके
झोला लिए खाली वही लौटा दुकान से।
तकलीफ़देह हों जो किसानों के वास्ते
ऐसे सभी क़ानून हटें संविधान से।
खुद रह के जो भूखा सभी के पेट पालता
आओ तुम्हें मिलायें आज उस महान से।
2
कौन कहता है कि वो फंदा लगा करके मरा ॽ
इस व्यवस्था को वो आईना दिखा करके मरा।
ज़ु़ल्म से लड़ने को उसके पास क्या हथियार था?
कम से कम गुस्सा तो वो अपना दिखा करके मरा।
ख़त्म उसकी खेतियाँ जब हो गयीं तो क्या करे?
दूर तक भगवान की सत्ता हिला करके मरा ।
भूख से मरने से बेहतर था कि कुछ खा कर मरा
चार -छै गाली कमीनों को सुना करके मरा।
रोज़ ही वो मर रहा था , जान थी उसमें कहाँ
आज तो अपनी चिता वो बस जला करके मरा ।
मुफ़लिसों की आह से जो हैं तिजोरी भर रहे
उन लुटेरों को हक़ीक़त तो बता करके मरा।
सुन ऐ जालिम अब वो तेरे ही गले की फॉस है
वो सियासत में तेरी भूचाल ला करके मरा ।
3
कृषकों का जो शोषण करती वह सरकार निकम्मी है
मज़लूमों का ख़ून चूसती वह सरकार निकम्मी है।
कैसा लोकतंत्र है जिसमें जनता भूखी सोती हो
सत्ता के जो मद में रहती वह सरकार निकम्मी है।
मंगल, चन्द्र, बृहस्पति पर जाने की बातें बेमानी
झोपड़ियों तक पहुँच न सकती वह सरकार निकम्मी है।
टैक्स वसूले, भरे तिजोरी, भष्टाचार में लिप्त रहे
कमज़ोरों की मदद न करती वह सरकार निकम्मी है।
पिछले वादे हुए न पूरे होने लगे नये वादे
जनता से जो झूठ बोलती वह सरकार निकम्मी है।
तेरा पर्दाफ़ाश हो चुका बंद भी कर जुमलेबाजी
आँखों में जो धूल झोंकती वह सरकार निकम्मी है।
रोटी माँगो लाठी खाओ ऐसी तानाशाही हो
जिसके डर से काँपे धरती वह सरकार निकम्मी है।
ग्राम सभा से लोकसभा तक देखो खेल सियासत का
कानी कुतिया थू- थू करती वह सरकार निकम्मी है।
फिर ऐसी आँधी आती है सिंहासन हिल उठते हैं
जनता जब यह कहने लगती वह सरकार निकम्मी है।
डा डी एम मिश्र