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- हावी होता बहुसंख्यकवाद...
पैगंबर मोहम्मद पर अभद्र टिप्पणी करने वाली नूपुर शर्मा की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्यकांत द्वारा की जाने वाली टिप्पणियों से नाराज होकर एक हस्ताक्षर अभियान चलाया गया है जिसमें इन जज साहब के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की गई है और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की आलोचना का दौर भी चरम पर है। किसी भी लोकतंत्र में न्यायपालिका एक अतिमहत्वपूर्ण और प्रभावी एवं पूर्ण स्वतंत्र अंग होता है और सुप्रीम कोर्ट इस न्यायपालिका का सबसे बड़ा मंदिर है। नूपुर शर्मा वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा जो टिप्पणी की गई वह कानूनन गलत थी या सही यह अलग बात है लेकिन इसके बाद जिस तरह सुप्रीम कोर्ट की आलोचनाएं हो रही है वह लोकतंत्र के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है। दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करने वाले देश भारत में यदि सुप्रीम कोर्ट पर ऐसी टिप्पणियां होने लगेंगी तो देश का संवैधानिक ढांचा बिखर जाएगा और इसका नुकसान पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है। टिप्पणी से नाराज लोग जो कर रहे हैं उनकी मर्जी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के साथ ऐसा क्यों हो रहा है इसका जवाब भी सुप्रीम कोर्ट ही दे सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी छवि ऐसी ही बनाई है कि अब सुप्रीम कोर्ट को न्याय का मंदिर नहीं बल्कि एक पक्षपात करने वाला केंद्र करार दिया जाने लगा यहां तक की सोशल मीडिया पर न्याय के मंदिर के लिए सुप्रीम कोठा लिखा जाना बेहद अफसोसनाक है। सुप्रीम कोर्ट की शान को बट्टा लगाने वाली ताजा घटना पर भी विचार किया जाना चाहिए। कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के खिलाफ फेक न्यूज़ चलाने पर जी न्यूज के पत्रकार रोहित रंजन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ हुआ क्या उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या ये देश के सर्वोच्च न्यायालय में हो रहा है। बिना याचिका दाखिल किए आदेश दिए जाने को तैयार कोर्ट की शुचिता पर सवालिया निशान लगने स्वाभाविक हैं।
नुपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी नुपुर शर्मा के बयान को देश को बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला बताया था। नुपुर शर्मा के समर्थकों द्वारा अजीत डोभाल के खिलाफ तो कोई अभियान नहीं चलाया था। तो अब सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जो हो रहा है उसके पीछे कौन है और कौन भीडतंत्र के जरिए देश के संवैधानिक ढांचा को चुनौती देना चाहता है। कोई भी देश हो जिसमें लोकतंत्र हो उसे बांधे रखने के लिए संवैधानिक व्यवस्था ही एक रस्सी होती है। इसी रस्सी में छोटे बड़े सभी वर्ग और समुदाय बंधे रहते और व्यवस्था सबके हितों, अधिकारों की सुरक्षा करती है। लेकिन वर्तमान में चल रही परिपाटी एक सफल और सुखद संवैधानिक व्यवस्था के लिए चुनौती बन सकती है। आज बहुसंख्यक समाज व्यवस्था को अपनी संख्या से हांकना चाहता है, कल फिर कोई बड़ा वर्ग व्यवस्था को अपने अनुसार चलाने के लिए बंधक बनाएगा, और कोई नहीं जानता कि अगर यह सिलसिला चल पड़ा तो कहां जाकर रुकेगा।
देश में धार्मिक रूप से बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों का बंटवारा किया जाता है लेकिन यहां कोई भी वर्ग किसी ना किसी रूप से अल्पसंख्यक है। यानी हर वर्ग, हर समुदाय अल्पसंख्यक है। कोई भाषाई अल्पसंख्यक है तो कोई क्षेत्रीय अल्पसंख्यक है। देश का कोई ऐसा वर्ग नहीं है जो हर आधार पर बहुसंख्यक हो। जातीय अल्पसंख्यकों की संख्या और टकराव भी कम नहीं है। फिलहाल हिंदू मुस्लिम टकराव में मुसलमान अल्पसंख्यकों के आर्थिक बहिष्कार की सभाएं की जा रही हैं भले ही बहुत छोटे स्तर पर हों लेकिन ऐसे ही अगर ये रिवाज परवान चढ़ता रहा तो फिर धार्मिक अल्पसंख्यकों के बाद भाषाई और जातीय अल्पसंख्यकों का नंबर आएगा और इस टकराव से फिर कोई भी बच नहीं पाएगा। इसलिए कोशिश की जाए कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को बिल्कुल भी छिन्न भिन्न करने की किसी भी तरह की कोशिश ना की जाए, देश के जिम्मेदार नागरिकों को इन सब अनुचित तौर तरीकों का नोटिस लेते हुए खड़े हो जाना चाहिए।
पूरी दुनिया आर्थिक संकट से गुजर रही है, यूरोप के कम जनसंख्या और पैसे वाले देशों की स्थिति बेहद खराब हो रही है, इन परिस्थितियों में बड़ी आबादी वाला भारत जब रुपया रोज़ाना गिर रहा है इन बहुसंख्यकवाद पर आधारित संकटों को कैसे झेल पाएगा। आर्थिक मजबूती के लिए शांति का माहौल बेहद जरूरी है। आर्थिक मजबूती हर व्यक्ति के लिए जरूरी होती है। कम से कम आदमी अपनी व्यक्तिगत लालच के लिए ही देश में शांति कायम करने तथा विभिन्न समूहों के आपसी टकराव के खिलाफ खड़ा होने का प्रयास करें।