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फिर भी लोकप्रियता बढ़ रही है तो भविष्य बन रहा है!
संजय कुमार सिंह
मेरा मानना है कि भाजपा को मिला बहुमत झूठ, जुमलों जाति धर्म की राजनीति के अलावा आरएसएस के 50 साल से भी ज्यादा के प्रयासों का फल है। नरेन्द्र मोदी को नायक जिस प्रचार से बनाया गया उससे किसी को बनाया जा सकता था किसी असली यानी याद में चाय बेचने वाले को भी। पर वह अलग मुद्दा है। छह साल का सुशासन, कोरोना से निपटने की रणनीति, पीएम केयर्स की अर्थ नीति और नोटबंदी की राजनीति सब दर्ज हो रही है।
मैं नहीं जानता कि भारत के भविष्य पर इस राजनीति या मिलीभगत का क्या असर होगा। पर कुछ तो होगा, होना चाहिए. ये बच्चे और इनके अभिभावक नहीं चाहेंगे कि उनके समय की सरकारें भी ऐसी ही लाचार (या लोकप्रियता पाने वाली) हों। असल में हार्डवर्क कर चुके लोगों का विश्वास हार्डवर्क पर से उठ सकता है। या फिर और प्रगाढ़ हो सकता है। लोग पढ़ने-पढ़ाने का महत्व समझने लगे तो क्या होगा और ये लोग इसी से खुश रहे तो क्या होगा? कुछ तो होगा। ऐसे ही नहीं चलता रह सकता। ये हजारों लाखों लोग ता उम्र इस मजबूरी का सच नहीं जानेंगे - मुझे यकीन नहीं है। और जानकर भी कुछ नहीं कर पाएंगे - इतनी लाचारी नहीं है।
अगर कोई सरकार अपने नागरिकों को इतना लाचार देख सकती है या बिना देखे रह सकती है तो सरकार आखिर होती किसलिए है? अगर ट्रेन चलने वाली है तो ये हफ्ते भर बाद भी चलकर एक दिन में पहुंच सकते हैं और नहीं चलने वाली तो आखिर क्यों? इन्हें रोका क्यों नहीं जा रहा है और इनके जाने का इंतजाम क्यों नहीं किया जा सकता है? इसके बावजूद लोकप्रियता बढ़ रही है तो भविष्य डरावना है। अपना नंबर भी तो आएगा ही ....