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- बहू के खिलाफ तो हर...
लक्ष्मी कुमावत
आज सुबह से ही घर में सब 'बड़े लोग' एकत्रित थे और बैठकर मेरी प्राथमिकताएं तय कर रहे थे क्योंकि उनके अनुसार मैं कोई भी काम समय पर नहीं करती। मैं उन लोगों के अनुसार कभी भी समय पर कार्य नहीं करती इस कारण से शिकायतों का पोटला भी खोला जा रहा था।
जब वे लोग मेरी प्राथमिकताएं तय कर रहे थे, उस समय उन लोगों को चाय नाश्ता पकडा़ने का काम भी मेरा ही था। बस मुझे ऑर्डर दे दिया जाता था और मैं एक आदर्श कर्मचारी की तरह वह सब सामान उन तक पहुंचा देती थी। पर फिर भी मैं कभी इस घर की जिम्मेदार सदस्य नहीं रही।
चलिए मैं आपको अपना परिचय कराती हूं। मेरा नाम सानवी महाजन है। मेरे परिवार में मेरे सास-ससुर प्रदीप महाजन और सुभद्रा महाजन, मेरे पति आलोक महाजन, मेरा देवर अजीताभ महाजन, छोटी ननद दिव्या और मेरे दो बच्चे सावी और सुयश है। एक ननद और है जो मेरे पति से बड़ी है और वह भी अपने पति के साथ आज मेरी प्राथमिकताएं तय करने के लिए घर में मौजूद है।
मेरी शादी आज से सात साल पहले हुई थी। जब मेरी शादी हुई थी उस समय मैं सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी, जो आज भी हूं। उस समय यह इनके लिए गर्व की बात होती थी। पर आज ये उनके लिए मुसीबत बन चुकी है क्योंकि अपना स्टैंडर्ड दिखाने के लिए बहू वर्किंग है बताने बड़ा मजा आता है, पर उसके साथ साथ जो जिम्मेदारियां होती है वह निभाने में रोना आता है। मेरी सैलरी लेना कभी किसी को बुरा नहीं लगा, पर मेरी मदद करना....... । और उसी का नतीजा था कि आज सब लोग एकत्रित हुए थे।
पहले तो बड़े लोगों को कहना था कि इस के माता-पिता को भी बुला लिया जाए तो कम से कम फैसला पारदर्शी रहेगा। फिर पता नहीं क्या सोच कर उन लोगों ने मेरे माता-पिता को नहीं बुलाया। बस मेरे भाई अविरल को बुलाया था जो की उम्र में मुझसे पाँच साल छोटा था और फिलहाल कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था।
स्कूल जाने से पहले जैसे हम हमारा होमवर्क करते हैं, उसी तरह मेरे भाई के आने से पहले किसको क्या बोलना है, उसी पर कार्य किया जा रहा था। सब अपनी-अपनी पोटली में से अपनी अपनी शिकायत बाहर निकाल रहे थे।
सबसे ज्यादा शिकायत की भरमार तो मेरी सासू मां और मेरे पति को ही थी। बाकी सब की शिकायत तो मिर्च मसाले की तरह थी। पर फिर भी मैं चुपचाप काम कर रही थी। पता नहीं क्यों, आज मेरे मन में कोई घबराहट नहीं थी। पर इतना जरूर है कि मेरे मन में कुछ चल तो रहा था जो शायद थोड़ी देर बाद बाहर आने वाला था।
इतने में अविरल घर आ गया। मैं ने ही जाकर दरवाजा खोला। हर बार हंस मुस्कुराकर गले लगने वाला भाई आज चुपचाप मौन होकर मेरी तरफ देख रहा था। उसने कुछ नहीं कहा, मैंने भी कुछ नहीं कहा और उसे लेकर मैं उस कमरे में चली गई जहाँ सब लोग एकत्रित थे।
कमरे में पहुंचते ही उसने सभी को नमस्ते कहा, पर किसी ने भी उसके नमस्ते का कोई उत्तर नहीं दिया। बस आलोक जी ने उसे बैठने का इशारा कर दिया। उसे वहां छोड़कर मैं पानी लेने चली गई। जब रसोई से पानी लेकर आई तो देखा कि सभी लोग अविरल को घेर कर बैठे हुए थे। मुझे देखते ही मेरी सासू मां ने अपनी शिकायत शुरू की,
" माफ करना अविरल बेटा, लेकिन तुम्हारी बहन एक जिम्मेदार बहू नहीं है। कल सुबह ही ये मुझे दवा देना भूल गई। और तो और कई बार इसे याद दिलाना पड़ता है कि ससुर जी की दवा का वक्त हो गया है। कोई काम समय पर नहीं करती। यहां तक कि जब उसकी मदद करो, तब जाकर यह काम करती है। आजकल कोई हिसाब किताब भी नहीं देती। पता नहीं अपनी सैलरी कहां खर्च करती हैं।"
" हाँ, भाभी तो बिल्कुल कामचोर है। बेचारी मेरी मां को इस उम्र में भी काम करना पड़ता है। यह कोई उम्र है उनके काम करने की। कल मेरे कमरे की सफाई भी मां ने ही की थी" छोटी ननद ने कहा।
"और तो और जब हम मायके आते हैं तो ये छुट्टी भी नहीं ले सकती। माँ ही हमें खाना निकाल कर परोसती है। यहां तक की विदाई भी हमें हमारी मनमाफिक नहीं देती है" अबकी बार बड़ी ननद ने कहा।
" भाभी तो इतना कुछ बोल जाती है मां के सामने। अगर मेरी बीवी कल को ऐसा करेगी तो अच्छा सबक सिखाऊंगा उसे। इन्हें तो फिर भी सिर आंखों पर रखा जाता है" अब की बार देवर ने अपनी तरफ से तीर फेंका।
" देखो अविरल, मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन घर में यदि सभी को उससे समस्या है तो जाहिर सी बात है कि तुम्हारी बहन में ही कमी है। जो पहले का काम है वो बाद में करती है, जो बाद का काम है वह पहले। यहां तक कि आजकल अपनी सैलरी का हिसाब किताब तक नहीं देती। बताओ, यह भी कोई बात हुई? कम से कम पता तो होना चाहिए ना कि यह कहाँ क्या खर्चा कर रही है? अब तुम ही बताओ क्या करना चाहिए?"
अविरल इस बात का जवाब दे ही नहीं पाया और मेरी तरफ देखने लगा। बस उसने इतना ही कहा "दीदी, आपकी प्राथमिकताएं क्या है?"
उसका सवाल सुनते ही अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए मैंनें कहा,
" मैं खुद नहीं जानती कि मेरी प्राथमिकताएं क्या है? मेरी प्राथमिकताएं तो ये लोग तय करते हैं। मेरी सास अभी पचपन साल की है। पहनने ओढ़ने, घूमने, फिरने के मामले में ये अभी भी जवान है। बस, दवाई लेते समय या काम करते समय बुजुर्ग हो जाती है। वो अपनी सुविधा अनुसार मेरी प्राथमिकताएं तय करती है।
मेरी छोटी ननद जो घर में कभी भी काम करना पसंद नहीं करती। यदि एक दिन उसके कमरे की सफाई उसकी मां कर दे तो उसे बुरा लग जाता है। वो मेरी प्राथमिकता तय करती है।
मेरा देवर जो कुछ भी सुना देता है। खुद अपनी मां और बहन को सम्मान नहीं देता। पर अपनी आने वाली बीवी को सबक सिखाने की बात कर रहा है, वो मेरी प्राथमिकताएं तय करता है।
मेरी बड़ी ननद, जो मायके आती है तो अपनी वर्किंग भाभी से ये उम्मीद करती है कि वो छुट्टी लेकर उसके साथ ही बैठी रहे। जबकि खुद अपनी मां के कमरे में बैठकर पंचायती करती रहती है और भूल कर अपनी भाभी की मदद तक नहीं करती। साथ ही जो खुद अपनी ननद को कुछ देना पसंद नहीं करती। अपने घर बुलाना पसंद नहीं करती। वो मेरी प्राथमिकताएं तय करती है।
मेरा पति मेरी ही सैलरी में से हिसाब किताब पूछता है। जबकि उसे अच्छे से पता है कि मेरी सैलरी का आधा हिस्सा इन लोगों के लोन भरने में जाता है। और कुछ हिस्सा बच्चों की फीस में। वो भी मेरी प्राथमिकताएं तय करता है।
सच कहूं तो मेरी प्राथमिकताएं वो है, जो मेरी अपनी है ही नहीं। उसे भी तय करने वाले कोई और। और फिर कहते हैं कि यह कोई काम ढंग से नहीं करती। देख ना भाई, सुबह से ये लोग बैठकर पंचायती कर रहे हैं और मैं अकेले काम में लगी हूं। इन सब ने नाश्ता भी कर लिया, पर मुझे अभी तक चाय भी नसीब नहीं हुई। पर फिर भी ये लोग मेरी प्राथमिकता ढूंढ रहे हैं।
इन सब को सेवा चाहिए, सेवा करने वाली चाहिए, पर बोलने वाली बहू किसी को पसंद नहीं। अब समझ में आ चुका है कि बहू के खिलाफ तो हर किसी को हमेशा ही शिकायत रहती है।
तो सच कहूं भाई, अब मेरी प्राथमिकता मेरा अपना सम्मान है, स्वाभिमान है। अगर उसकी कद्र करोगे तो ही साथ दूंगी। वरना मैं अकेले भी खुश हूँ। सेवा करती हूँ तो सम्मान भी चाहिए। दो बातें ना सुनूंगी। अपनी सैलरी का अधिकतर हिस्सा तुम पर खर्च करती हूं तो कुछ अपने लिए भी रखूँगी, आखिर मेरा भी भविष्य सुरक्षित होना चाहिए।
अब तुम जानो और ये लोग जाने। मैंने अपनी प्राथमिकताएं बता दी हैं और इसमें अब कोई बदलाव ना करूंगी"
मेरे जवाब को सुनकर किसी ने मेरे खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं की। सचमुच, इतना कुछ बोल लेने के बाद दिल में बड़ा सुकून था। साथ ही साथ आज मैं आत्मविश्वास से लबालब भर चुकी थी। क्योंकि अब मैं अपनी प्राथमिकताएं जानती हूं।
धन्यवाद
मौलिक व स्वरचित ✍️लक्ष्मी कुमावत